अप्रैल में कच्चे तेल के भारतीय बास्केट की औसत कीमत घटकर 68.34 रुपये प्रति बैरल पर आ गई, जो पिछले 45 महीनों का सबसे निचला स्तर है। मार्च में यह कीमत 72.47 रुपये प्रति बैरल थी, यानी इसमें करीब 5.6 प्रतिशत की गिरावट दर्ज की गई है। पेट्रोलियम प्लानिंग और एनालिसिस सेल (PPAC) के आंकड़ों के अनुसार, यह स्तर मई 2021 के बाद सबसे कम है, जब कोविड-19 महामारी की वजह से वैश्विक अर्थव्यवस्था में बड़ी मंदी आई थी और तेल की मांग कम हो गई थी। विशेषज्ञों का मानना है कि हाल के महीनों में अंतरराष्ट्रीय बाजार में मांग में सुस्ती और आपूर्ति में स्थिरता के चलते कीमतों में गिरावट आई है। इसके साथ ही, वैश्विक आर्थिक अनिश्चितताओं और कई देशों में धीमी ग्रोथ की वजह से भी कच्चे तेल की कीमतों पर दबाव बना हुआ है।
इसके अलावा, सरकारी आंकड़ों से यह भी पता चलता है कि वित्त वर्ष 2023-24 में ओमान और दुबई जैसे सोर ग्रेड कच्चे तेल की कीमतें अनुपातिक रूप से स्वीट ग्रेड ब्रेंट ऑयल की तुलना में काफी ऊंचे स्तर पर पहुंच गई थीं। भारतीय रिफाइनरियां आमतौर पर कच्चे तेल के दो प्रमुख प्रकारों सोर ग्रेड (जैसे ओमान और दुबई) और स्वीट ग्रेड (जैसे ब्रेंट डेटेड)—का मिश्रण उपयोग करती हैं।
भारतीय रिफाइनरियों में कच्चे तेल का मिश्रण और लागत पर असर
वर्तमान में भारतीय रिफाइनरियों द्वारा इस्तेमाल किए जाने वाले कच्चे तेल का अनुपात लगभग 78.5% सोर ग्रेड और 21.5% स्वीट ग्रेड है। सोर ग्रेड तेल में सल्फर की मात्रा ज्यादा होती है, जिससे इसका शोधन (रिफाइनिंग) महंगा और जटिल होता है, जबकि स्वीट ग्रेड साफ और कम सल्फर वाला होता है, जिसे रिफाइन करना आसान होता है।
जब सोर ग्रेड की कीमतें स्वीट ग्रेड के बराबर या उससे ऊपर पहुंच जाती हैं, तो रिफाइनरियों की लागत और रिफाइनिंग मार्जिन पर सीधा असर पड़ता है। इसी को ध्यान में रखते हुए संसद की पेट्रोलियम पर बनी स्थायी समिति ने सुझाव दिया कि भारत को कच्चे तेल के विभिन्न ग्रेड का आयात बढ़ाना चाहिए, जिससे क्रूड बास्केट की औसत लागत घटे और आम लोगों पर बोझ कम हो।
एशियन प्रीमियम और भारतीय क्रूड बास्केट पर असर
संसद की पेट्रोलियम पर बनी स्थायी समिति ने बताया कि भारत को पश्चिम एशिया से कच्चा तेल आमतौर पर एशियन प्रीमियम के साथ खरीदना पड़ता है। यह एक अतिरिक्त शुल्क है, जिसे OPEC देश एशियाई ग्राहकों से वास्तविक बिक्री मूल्य से अधिक वसूलते हैं। इसी कारण भारत जैसे देशों को वही तेल अधिक कीमत पर खरीदना पड़ता है, जबकि पश्चिमी देशों को वही तेल सस्ते में मिलता है।समिति का मानना है कि अगर भारत विभिन्न देशों और ग्रेड से तेल का आयात बढ़ाए, तो इससे क्रूड बास्केट की औसत लागत कम होगी, ऊर्जा सुरक्षा मजबूत होगी और अंतरराष्ट्रीय बाजार में भारत की बर्गेनिंग पावर (मोलभाव की ताकत) भी बढ़ेगी।
भारतीय क्रूड बास्केट में रूसी तेल की हिस्सेदारी और गणना पद्धति पर सवाल
उद्योग से जुड़े कुछ विशेषज्ञों ने भारतीय क्रूड बास्केट की कीमत की गणना के तरीके में बदलाव की मांग की है, क्योंकि वर्तमान प्रणाली में रूसी कच्चे तेल, जो अब भारत के आयात का बड़ा हिस्सा बन चुका है, को पूरी तरह से शामिल नहीं किया गया है। यूक्रेन युद्ध के बाद भारत ने रूस से सस्ती दरों पर बड़ी मात्रा में कच्चा तेल खरीदना शुरू किया। मई 2023 में रूस, भारत का सबसे बड़ा तेल आपूर्तिकर्ता बन गया, जब रोजाना करीब 19.6 लाख बैरल (MB/D) का आयात हुआ। मार्च 2025 तक के ताज़ा आंकड़ों के अनुसार, रूस से आयात लगातार बना हुआ है और वोर्टेक्सा के अनुसार मार्च में रोजाना 1.66 लाख बैरल तेल भारत आया। इस बदलते रुझान को देखते हुए, विशेषज्ञों का मानना है कि भारतीय क्रूड बास्केट में रूसी तेल की भूमिका को स्पष्ट रूप से शामिल किया जाना चाहिए, ताकि बास्केट की कीमत असल लागत के ज्यादा करीब हो और नीति निर्धारण अधिक सटीक हो सके।