भारत सरकार 1 अप्रैल से चने पर आयात शुल्क फिर से लागू करने जा रही है। वित्त मंत्रालय के राजस्व विभाग ने इस संबंध में अधिसूचना जारी की है। इसके अनुसार, केंद्र सरकार का मानना है कि यह इंपोर्ट ड्यूटी जनहित में जरूरी है, और इसलिए इसे बहाल किया जा रहा है। हालांकि, उद्योग जगत इस फैसले से नाखुश है, क्योंकि उनका मानना है कि आयात को कम करने के लिए यह टैक्स पर्याप्त नहीं है। इस साल चने की अधिक पैदावार की उम्मीद के बीच, इस पर 10 प्रतिशत की इंपोर्ट ड्यूटी लगाई गई है।
इस निर्णय के बाद, किसानों को उम्मीद है कि घरेलू चने की कीमतों में वृद्धि होगी, जबकि व्यापारी और उद्योगपतियों को चिंता है कि इससे उनके लिए उत्पादन लागत बढ़ सकती है, जिससे उनके व्यवसाय पर नकारात्मक असर पड़ सकता है। सरकार का मानना है कि इस कदम से भारतीय किसानों को प्रतिस्पर्धात्मक लाभ मिलेगा और चने के घरेलू उत्पादन को बढ़ावा मिलेगा, जिससे आयात पर निर्भरता कम होगी। इसी के साथ लोगों का कहना है की चने की खेती का इस्तेमाल करके उद्योग जगत में हम अच्छा खासा फसल ऊगा सकते हैं।
चना उत्पादन में वृद्धि
गौरतलब है कि पिछले सीजन में अल नीनो के कारण असामान्य मौसम के प्रभाव से चने की फसल प्रभावित हुई थी, जिसके कारण केंद्र सरकार ने मई 2024 से चने पर आयात शुल्क को शून्य कर दिया था। हालांकि, इस साल, यानी फसल साल 2023-24 में, चने का उत्पादन 11.04 मिलियन टन के मुकाबले 12.61 मिलियन टन तक बढ़ने का अनुमान है। बढ़ी हुई पैदावार के अलावा, भारत ने अप्रैल 2024 और फरवरी 2025 के बीच मुख्य रूप से ऑस्ट्रेलिया और तंजानिया से 1.25 मिलियन टन से अधिक चने का आयात किया है, जबकि पिछले साल इसी समय में आयात केवल 0.16 मिलियन टन था।
इस बढ़ौतरी के बावजूद, घरेलू मांग को पूरा करने के लिए आयात पर निर्भरता बनी हुई है, खासकर उन क्षेत्रों में जहां उत्पादन कम है या बाजार की मांग ज्यादा है। आयात में बढ़ोतरी के कारण, चने की कीमतों पर दबाव बढ़ सकता है, लेकिन सरकार ने आयात शुल्क में बदलाव किया है ताकि किसानों को लाभ मिल सके और आयात के असर को नियंत्रित किया जा सके। साथ ही, यह कदम घरेलू उत्पादकों के लिए एक प्रतिस्पर्धात्मक लाभ सुनिश्चित करने की कोशिश है, जिससे उन्हें बेहतर मूल्य मिल सके।
किसानों को मिला इस फैसले से फायदा
भारत सरकार ने चने पर 10 प्रतिशत आयात शुल्क लगाने का निर्णय उस समय लिया है जब चने की फसल की कटाई चल रही है और इसका औसत बाजार मूल्य 5,461 रुपये प्रति क्विंटल है, जबकि सरकार द्वारा निर्धारित न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) 5,650 रुपये है। यानि कि बाजार में चने की कीमतें एमएसपी से कम हैं। खासकर मध्य प्रदेश और महाराष्ट्र में चने की कीमतें एमएसपी से नीचे चल रही हैं। इस स्थिति में सरकार का यह निर्णय चने की कीमतों में और गिरावट को रोकने की संभावना पैदा करता है, जिससे किसानों के लाभ की रक्षा हो सकेगी।