केंद्र सरकार ने एक नया नियम लागू किया है, जिसके तहत अब चीनी मिलों को अपनी पैकिंग का 20 प्रतिशत हिस्सा जूट की बोरियों या थैलों में करना होगा। यह नियम कपड़ा मंत्रालय द्वारा 1987 में अधिसूचित किए गए जूट पैकेजिंग सामग्री अधिनियम के तहत है। खाद्य मंत्रालय ने सभी चीनी मिलों को इस नियम का पालन करने के लिए एक पत्र भेजा है। इस कदम को इसलिए उठाया गया है क्योंकि कुछ मिलें सरकार के इस आदेश का पालन नहीं कर रही थीं, और इसलिए सरकार ने इसे अनिवार्य बना दिया है।
निर्देशों की अवहेलना पर होगी सख्त कार्रवाई
खाद्य मंत्रालय ने चेतावनी दी है कि अगर चालू चीनी सीजन (अक्टूबर 2024 – सितंबर 2025) के दौरान चीनी निदेशालय द्वारा जारी निर्देशों का पालन नहीं किया गया, तो संबंधित चीनी मिलों के खिलाफ कानूनी कार्रवाई की जाएगी। यह कदम इसलिए उठाया गया है क्योंकि कुछ मिलों द्वारा सरकार के आदेश का पालन नहीं किया जा रहा था। मंत्रालय ने यह भी स्पष्ट किया कि जूट पैकेजिंग के नियमों का उल्लंघन करने वाली मिलों पर सख्त जुर्माना और अन्य दंडात्मक कार्रवाई की जा सकती है।
इसके अलावा, पिछले साल अक्टूबर में मंत्रालय ने सभी चीनी मिलों को यह निर्देश दिया था कि वे अपनी मासिक रिपोर्ट (पी-2 शीट) में जूट पैकेजिंग के बारे में जानकारी पेश करें, ताकि सरकार यह सुनिश्चित कर सके कि पैकेजिंग में जूट का अनुपात बढ़ रहा है और मिलें नियमों का पालन कर रही हैं। सरकार का यह प्रयास पर्यावरणीय कारणों से भी महत्वपूर्ण है, क्योंकि जूट एक प्राकृतिक और बायोडिग्रेडेबल सामग्री है, जो प्लास्टिक की बजाय अधिक पर्यावरण विकल्प है।
मिलों ने कोर्ट में दाखिल की याचिका
इस अनिवार्य नियम के कारण चीनी मिलों और चीनी उद्योग को कई मुश्किलों का सामना करना पड़ रहा था, जिसके बाद कुछ मिलों ने जूट पैकेजिंग आदेश पर रोक लगाने के लिए न्यायालय का रुख किया है। इन मिलों का दावा है कि जूट की बोरियों में पैकिंग करने से चीनी की गुणवत्ता पर नकारात्मक असर पड़ता है, क्योंकि जूट में नमी नहीं रुक पाती, जो चीनी को खराब कर सकती है। इसके अलावा, उन्होंने यह भी कहा कि उनके ग्राहक और थोक उपभोक्ता चाहते हैं कि चीनी को प्लास्टिक की थैलियों और बोरियों में पैक किया जाए, क्योंकि इससे चीनी की गुणवत्ता बनी रहती है।