पंजाब सरकार ने इस वर्ष धान की रोपाई 1 जून से शुरू करने का निर्णय लिया है, जो पिछले साल की तुलना में 10 दिन पहले होगा। मुख्यमंत्री भगवंत मान ने संगरूर जिले के धुरी में इसकी घोषणा की। इसका उद्देश्य किसानों को उनकी फसल में नमी की अधिकता से होने वाली समस्याओं से बचाना और खरीद प्रक्रिया में होने वाली कठिनाइयों को कम करना है।
मुख्यमंत्री ने यह भी बताया कि राज्य को छह से सात जिलों में बांटा जाएगा और इन जिलों को चार अलग-अलग जोनों में विभाजित किया जाएगा, ताकि धान की रोपाई अधिक व्यवस्थित तरीके से की जा सके। इसके अलावा, पंजाब कृषि विश्वविद्यालय (पीएयू) द्वारा सुझाए गए चार विशेष किस्मों (पीआर 126, 127, 128, 129) की सरकारी खरीद भी सुनिश्चित की जाएगी। नकली बीजों की बिक्री पर कड़ी कार्रवाई की जाएगी, ताकि किसानों को धोखा ना हो।
किसानों के लिए जल्द ही होगा बड़ा ऐलान
सरकार जल्द ही इस फैसले के बारे में एक औपचारिक अधिसूचना जारी करेगी। यह निर्णय पंजाब की स्थायी कृषि रणनीति का हिस्सा है, जो मुख्य रूप से भूजल संरक्षण और बिजली की खपत को कम करने के लिए लिया गया है। सरकार को उम्मीद है कि इस संशोधित रोपाई कार्यक्रम से किसानों को फायदा होगा और पर्यावरण पर भी सकारात्मक प्रभाव पड़ेगा। इसके अलावा, नकली बीजों की बिक्री को रोकने के लिए सख्त कदम उठाए जाएंगे। उच्च गुणवत्ता सुनिश्चित करने के लिए हाइब्रिड धान की किस्मों को नियमित किया जाएगा, और केवल प्रमाणित बीजों का वितरण किया जाएगा।
पानी और पराली की समस्या से मिलेगी राहत
सरकार उच्च गुणवत्ता वाली हाइब्रिड धान की किस्मों को नियमित करने और केवल प्रमाणित बीजों का वितरण करने की योजना बना रही है। कृषि विशेषज्ञों का मानना है कि अगर धान की रोपाई पहले की जाती है, तो इससे पराली जलाने की समस्या में कमी आ सकती है। ऐसा इसलिए होगा क्योंकि इससे धान की कटाई और गेहूं या अन्य रबी फसलों की बुवाई के बीच ज्यादा समय मिलेगा, जिससे पराली जलाने की जरूरत कम हो जाएगी।
संयुक्त निदेशक कृषि गुरमेल सिंह ने बताया कि वर्तमान में 23 हाइब्रिड किस्मों में से केवल तीन या चार को ही आधिकारिक मंजूरी मिली है। पंजाब के कृषि निदेशक जसवंत सिंह के अनुसार, राज्य को चार कृषि जोन में बांटा जाएगा, जो जल की उपलब्धता पर आधारित होंगे। इन जोनों में उन जिलों को प्राथमिकता दी जाएगी, जहां नहर जल की आपूर्ति सीमित है।
धान की खेती के लिए अत्यधिक पानी की आवश्यकता ने पंजाब में जल संकट को और बढ़ा दिया है। भूजल का अत्यधिक उपयोग करने के कारण जल स्तर लगातार गिर रहा है, और अगर यह स्थिति बनी रही, तो भविष्य में पानी की भारी कमी हो सकती है। इस समस्या का समाधान नहरों के माध्यम से पानी की आपूर्ति को सुधारने, सिंचाई के लिए ज्यादा प्रभावी और पानी बचाने वाली तकनीकों को अपनाने, और किसानों को वैकल्पिक फसलों की खेती के लिए प्रेरित करने में हो सकता है। इसके अलावा, जल पुनर्चक्रण और वर्षा जल संचयन जैसे उपायों को बढ़ावा देने से इस संकट को कम किया जा सकता है। अगर जल्द ही सुधारात्मक कदम नहीं उठाए गए, तो यह न केवल पंजाब की कृषि बल्कि पूरे क्षेत्र की जल आपूर्ति पर गंभीर असर डाल सकता है।