इन्फोसिस के सह-संस्थापक और आधार के जनक, नंदन नीलेकणि ने एक अनोखा आइडिया पेश किया है, जो भारत के लाखों भूस्वामियों के लिए एक महत्वपूर्ण सुझाव हो सकता है। क्यूंकि भारत में ऐसे कई लोग हैं, जो अपनी जमीन को न तो बेच सकते हैं और न ही उसे गिरवी रख सकते हैं। नीलेकणि के अनुसार, भारतीयों की कुल संपत्ति का 50% हिस्सा जमीन के रूप में है, लेकिन इसमें से ज्यादातर जमीनों का सही तरीके से उपयोग नहीं हो पाता है। कुछ जमीनें ऐसी होती हैं, जिसे न तो बेचा जा सकता है, न ही लोन के लिए इस्तेमाल कर सकते हैं। जिससे यह सारी जमीनें मालिकों के लिए एक बेकार संपत्ति बनकर धरी की धरी रह जाती है।
इस स्थिति को देखते हुए नीलेकणि का मानना है कि अगर इस जमीन को टोकन में बदला जाए, तो उसकी उपयोगिता बढ़ाई जा सकती है। टोकन बनाने से जमीन के कागजात डिजिटल हो जाएंगे, और फिर उन्हें शेयर या बॉन्ड की तरह बेचा जा सकता है। नीलेकणि के इस सुझाव पर जोहो के संस्थापक श्रीधर वेम्बु ने आपत्ति जताते हुए कहा है कि जमीन को एक ऐसी संपत्ति में बदलने से आसानी से खरीदा और बेचा जा सकता है। जिससे, कुछ संभावित खतरे भी पैदा हो सकते हैं।
नीलेकणि ने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म ‘एक्स’ पर एक वीडियो शेयर करते हुए लिखा था, जमीन को टोकन में बदलने का सही समय आ गया है।इसके जवाब में, वेम्बु ने कहा कि जमीन को लिक्विड एसेट की तरह इस्तेमाल करने से कई समस्याएं उत्पन्न हो सकती हैं। उन्होंने कहा कि हर संपत्ति को आसानी से बदलने और व्यापार योग्य बनाने से हमेशा फायदे नहीं होता, कभी-कभी भरी नुक्सान बह हो जाता है। वेम्बु ने इसे ‘वित्तीयकरण का मूल सिद्धांत’ करार दिया और कहा कि अगर हर संपत्ति को पैसे की तरह बदला जा सकता है, तो आखिर में सारा धन सिर्फ कुछ चुनिंदा लोगों के पास ही जमा हो पायेगा।
नीलेकणि का यह बयान इस विचार को व्यक्त करता है कि अगर जमीन को टोकन में बदला जाए, तो यह एक महत्वपूर्ण कदम होगा, जिसे वह ‘अनलॉक’ कह रहे हैं। इसका मतलब है कि जमीन की जो मौजूदा आर्थिक क्षमता है, वह अब पूरी तरह से उपयोग में लाई जा सकेगी। इससे लाखों भूस्वामियों को अपनी जमीन को एक सक्रिय और मूल्यवान संसाधन में बदलने का मौका मिलेगा, यानी वे अपनी ज़मीन को आर्थिक रूप से लाभकारी बना सकेंगे।
उनका मानना है कि इस प्रक्रिया से ग्रामीण इलाकों में लोगों को वित्तीय सहायता मिलेगी, क्योंकि वहां के लोगों के पास जमीन तो है, लेकिन वे उसे सही तरीके से इस्तेमाल नहीं कर पाते। टोकनाइजेशन के जरिए वे अपनी ज़मीन को आर्थिक रूप से उपयोगी बना सकते हैं और इससे उन्हें अच्छा मुनाफा भी मिल सकता है।
वेम्बु ने उदाहरण से किया खतरे को उजागर
उदाहरण के तौर पर, वेम्बु ने कहा कि अगर किसी व्यक्ति को जुए या शराब की लत है, तो वह अपनी ज़मीन का कुछ हिस्सा बेचकर अपनी आदत को पूरा कर सकता है। वेम्बु ने यह भी कहा कि वित्तीय लेन-देन अक्सर लालच का रूप ले लेता है, और कंपनियां किसानों या मकान मालिकों को तुरंत पैसे देने के लिए जमीन के टोकन खरीदने लगेंगी। वेम्बु को चिंता है कि यह रास्ता गलत दिशा में जा सकता है। उन्होंने यह भी बताया कि पुराने अनुभवों से यह साफ है कि वित्तीय व्यवस्था को नियंत्रण में रखना चाहिए, क्योंकि अगर ऐसा नहीं किया गया, तो यह नुकसान और बर्बादी का कारण बन सकता है।