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The Industrial Empire - उद्योग, व्यापार और नवाचार की दुनिया | The World of Industry, Business & Innovation > अस्वर्गीकृत > स्टील सेक्टर में हलचल: प्रमुख विनिर्माता फिर लगाएंगे बोलियां
अस्वर्गीकृत

स्टील सेक्टर में हलचल: प्रमुख विनिर्माता फिर लगाएंगे बोलियां

Industrial Empire
Last updated: 05/05/2025 12:34 PM
Industrial Empire
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स्टील सेक्टर में निवेश की तैयारी में प्रमुख भारतीय स्टील कंपनियां, निजीकरण और बोली प्रक्रिया के बीच उभरता औद्योगिक परिदृश्य
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BY – NISHA MANDAL

Contents
उद्योग में हो रही नई हलचलबोली लगाने वाली स्टील कंपनियाँनीतियों का प्रभावनिजीकरण और विनिवेशविदेशी निवेशकोंबोली प्रक्रियासंभावनाएं और चुनौतियांतकनीकी बदलाव और नवाचारस्टील बाजार का विश्लेषणनए निवेश और रोजगारविनिर्माणस्टील उद्योग और एमएसएमईउद्योग विशेषज्ञों

भारत दुनिया का दूसरा सबसे बड़ा स्टील उत्पादक देश बन चुका है। यह उपलब्धि देश की औद्योगिक प्रगति का प्रतीक है। स्टील सेक्टर ने बीते दशकों में निरंतर विकास किया है, लेकिन हाल ही में वैश्विक मंदी, महामारी और आपूर्ति श्रृंखला में बाधाओं के कारण इस उद्योग की रफ्तार थोड़ी धीमी हो गई थी। अब एक बार फिर इस सेक्टर में हलचल देखी जा रही है, जहां प्रमुख स्टील निर्माता नई परियोजनाओं और सरकारी उपक्रमों के अधिग्रहण के लिए बोली लगाने की तैयारी में जुटे हैं।

उद्योग में हो रही नई हलचल

वर्तमान में स्टील सेक्टर में जो गतिविधियाँ तेज हुई हैं, उसके पीछे कई कारण हैं। सबसे बड़ा कारण है सरकार की विनिवेश और निजीकरण नीतियों में तेजी। सरकार सार्वजनिक क्षेत्र की कुछ कंपनियों को निजी हाथों में सौंपने की योजना पर काम कर रही है। इसके अलावा, भारत में आधारभूत ढांचे के विकास पर जोर दिया जा रहा है जिससे स्टील की मांग तेजी से बढ़ रही है। वैश्विक बाजार में भी भारत से स्टील के निर्यात में वृद्धि देखी जा रही है। साथ ही, ग्रीन स्टील की ओर झुकाव और नई तकनीकों के आने से उद्योग में एक नई ऊर्जा का संचार हुआ है।

बोली लगाने वाली स्टील कंपनियाँ

देश की कई दिग्गज स्टील निर्माता कंपनियां इस हलचल में सक्रिय भूमिका निभा रही हैं। इनमें जेएसडब्ल्यू स्टील, टाटा स्टील, जेएसपीएल, आर्सेलर मित्तल निप्पॉन स्टील इंडिया और सैल जैसी कंपनियां शामिल हैं। ये कंपनियां सरकारी कंपनियों के निजीकरण में हिस्सा लेने के लिए रणनीति बना रही हैं। साथ ही, नई परियोजनाओं के लिए भी ये कंपनियां निवेश और विस्तार की योजना पर काम कर रही हैं। इन कंपनियों की बोली लगाने की इच्छा यह संकेत देती है कि स्टील सेक्टर में एक बड़ा बदलाव आने वाला है।

नीतियों का प्रभाव

भारत सरकार की औद्योगिक नीतियों का स्टील उद्योग पर गहरा असर पड़ता है। हाल के सालों में सरकार ने आत्मनिर्भर भारत अभियान, मेक इन इंडिया योजना और राष्ट्रीय अवसंरचना पाइपलाइन जैसी योजनाओं के माध्यम से स्टील उद्योग को मजबूती प्रदान की है। फाइनेंसियल ईयर 2025 के बजट में भी बुनियादी ढांचे पर खर्च बढ़ाने की घोषणा की गई है। यह सब मिलकर स्टील उद्योग के लिए अनुकूल वातावरण बना रहा है, जिससे कंपनियों को नई परियोजनाओं में बोली लगाने का अवसर मिल रहा है।

निजीकरण और विनिवेश

सरकार द्वारा कुछ सार्वजनिक क्षेत्र की स्टील कंपनियों के निजीकरण की घोषणा ने उद्योग में नई प्रतिस्पर्धा और गतिविधियों को जन्म दिया है। राष्ट्रीय इस्पात निगम लिमिटेड (RINL) जैसे उपक्रमों के लिए अब निजी कंपनियों द्वारा बोली लगाई जा रही है। इससे जहां सरकार को राजस्व प्राप्त होगा, वहीं निजी कंपनियों को इन कंपनियों की क्षमताओं और संसाधनों का लाभ मिलेगा। इस प्रक्रिया से उत्पादन क्षमता बढ़ेगी, प्रबंधन में सुधार होगा और उद्योग को नई दिशा मिलेगी।

विदेशी निवेशकों

विदेशी कंपनियां भी भारतीय स्टील सेक्टर में बढ़ती संभावनाओं को देखकर रुचि दिखा रही हैं। विशेष रूप से जापान, दक्षिण कोरिया, अमेरिका और यूरोप की कंपनियां भारत में निवेश करने के लिए इच्छुक हैं। वे उन्नत तकनीक, पर्यावरण-अनुकूल उत्पादन और वैश्विक मांग को पूरा करने में भारत के साथ साझेदारी करना चाहती हैं। इससे भारत में तकनीकी उन्नयन के साथ-साथ विदेशी पूंजी का भी आगमन हो रहा है, जो उद्योग के विकास के लिए बेहद लाभकारी है।

बोली प्रक्रिया

स्टील सेक्टर में जब कोई सरकारी उपक्रम या परियोजना निजी क्षेत्र को सौंपनी होती है, तो उसके लिए एक निश्चित प्रक्रिया के तहत बोली आमंत्रित की जाती है। कंपनियों को अपनी तकनीकी और वित्तीय क्षमता के आधार पर प्रस्ताव देना होता है। उसके बाद सरकार द्वारा एक पारदर्शी प्रक्रिया के तहत उच्चतम और योग्य बोलीदाता का चयन किया जाता है। यह प्रक्रिया उद्योग में प्रतिस्पर्धा को बढ़ावा देती है और सर्वश्रेष्ठ प्रतिभागी को अवसर प्रदान करती है।

संभावनाएं और चुनौतियां

स्टील सेक्टर में अपार संभावनाएं हैं, लेकिन साथ ही कुछ महत्वपूर्ण चुनौतियाँ भी हैं। एक ओर जहां आधारभूत ढांचे के विकास से मांग में तेजी आ रही है, वहीं दूसरी ओर कच्चे माल की कीमतों में बढ़ोतरी, पर्यावरणीय प्रतिबंध, तकनीकी बदलाव और वैश्विक बाजार की अनिश्चितता जैसे कारक उद्योग के सामने चुनौती बनकर खड़े हैं। इन चुनौतियों से निपटने के लिए कंपनियों को नवाचार, लागत नियंत्रण और सतत उत्पादन की दिशा में प्रयास करने होंगे।

तकनीकी बदलाव और नवाचार

स्टील उद्योग में अब पारंपरिक कोयला आधारित उत्पादन की जगह पर्यावरण अनुकूल और ऊर्जा कुशल तकनीकों का प्रयोग बढ़ रहा है। इलेक्ट्रिक आर्क फर्नेस, हाइड्रोजन रिडक्शन प्रक्रिया और स्क्रैप आधारित उत्पादन जैसे उपायों को अपनाया जा रहा है। इससे कार्बन उत्सर्जन में कमी आएगी और उत्पादन की लागत भी घटेगी। साथ ही, ये तकनीकें भारत को वैश्विक ग्रीन स्टील बाजार में प्रतिस्पर्धा के लिए तैयार करेंगी।

स्टील बाजार का विश्लेषण

भारत में वर्तमान में लगभग 135 मिलियन टन स्टील का वार्षिक उत्पादन होता है। सरकार का लक्ष्य है कि साल 2030 तक यह उत्पादन 300 मिलियन टन तक पहुँचे। 2024 में भारत का स्टील निर्यात लगभग 13 मिलियन टन रहा, जो 2025 में बढ़कर 15 मिलियन टन तक पहुँचने की उम्मीद है। घरेलू खपत में भी हर साल 7% से 8% की वृद्धि दर्ज की जा रही है। यह आंकड़े उद्योग की बढ़ती क्षमता और मांग को दर्शाते हैं।

नए निवेश और रोजगार

स्टील परियोजनाओं में होने वाले नए निवेश से न केवल उद्योग का विकास होता है, बल्कि बड़ी संख्या में रोजगार के अवसर भी सृजित होते हैं। एक बड़े स्टील प्लांट में लगभग 10,000 लोगों को प्रत्यक्ष रूप से और 50,000 से अधिक लोगों को अप्रत्यक्ष रूप से रोजगार मिल सकता है। साथ ही, सप्लाई चेन, परिवहन, कंस्ट्रक्शन और एमएसएमई सेक्टर को भी इसका लाभ मिलता है।

विनिर्माण

स्टील उत्पादन से होने वाला प्रदूषण एक बड़ी चिंता है। इसे ध्यान में रखते हुए अब कंपनियाँ ग्रीन स्टील उत्पादन की दिशा में कदम बढ़ा रही हैं। इसके लिए हाइड्रोजन तकनीक, स्क्रैप रीसाइक्लिंग, सोलर एनर्जी और कार्बन कैप्चर जैसी तकनीकों को अपनाया जा रहा है। इससे पर्यावरण संरक्षण भी होगा और अंतरराष्ट्रीय मानकों के अनुरूप उत्पादन सुनिश्चित किया जा सकेगा।

स्टील उद्योग और एमएसएमई

स्टील उद्योग के विकास से एमएसएमई सेक्टर को भी व्यापक लाभ होता है। छोटी और मध्यम इकाइयाँ स्टील प्लांट्स के लिए कलपुर्जे, सहायक मशीनरी, पैकेजिंग और रखरखाव सेवाएं प्रदान करती हैं। स्टील कंपनियों में निवेश बढ़ने से इन इकाइयों की मांग भी बढ़ती है, जिससे स्थानीय अर्थव्यवस्था को बल मिलता है और रोजगार के अवसर सृजित होते हैं।

उद्योग विशेषज्ञों

उद्योग विशेषज्ञों का मानना है कि आने वाले पांच वर्षों में भारत का स्टील सेक्टर दोगुना हो सकता है, अगर नीतियाँ स्थिर रहें और तकनीकी नवाचार को बढ़ावा मिले। उनका मानना है कि भारत को ग्रीन स्टील के क्षेत्र में वैश्विक नेतृत्व की ओर बढ़ना चाहिए और घरेलू मांग के साथ-साथ निर्यात पर भी ध्यान देना चाहिए। साथ ही, उन्हें लगता है कि निजीकरण से कंपनियों की दक्षता बढ़ेगी और प्रतिस्पर्धा को बल मिलेगा।स्टील सेक्टर में वर्तमान में जो हलचल देखी जा रही है, वह आने वाले बदलावों का संकेत है। प्रमुख कंपनियों द्वारा बोली लगाने की तैयारी, सरकार की सहयोगी नीतियाँ, विदेशी निवेशकों की रुचि, ग्रीन स्टील की ओर बढ़ता झुकाव और तकनीकी नवाचार – ये सभी मिलकर यह संकेत देते हैं कि भारत का स्टील उद्योग एक नए युग में प्रवेश करने जा रहा है। यदि यह रफ्तार बनी रही, तो भारत न केवल स्टील उत्पादन में विश्व नेता बन सकता है, बल्कि टिकाऊ विकास की दिशा में भी एक मिसाल कायम कर सकता है।

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