BY- NISHA MANDAL
TRAI की नई सिफारिश से सैटेलाइट क्षेत्र में हलचल
भारतीय दूरसंचार नियामक प्राधिकरण (TRAI) ने सैटेलाइट सेवाओं से जुड़े ऑपरेटरों पर 4% का शुल्क लगाने की सिफारिश की है। यह शुल्क सकल समायोजित राजस्व (AGR) पर आधारित होगा और इसका मकसद सरकार के राजस्व में वृद्धि करना है। इस प्रस्ताव के लागू होने से जहां सरकार की कमाई बढ़ेगी, वहीं सैटेलाइट कंपनियों के लिए यह एक नई वित्तीय चुनौती बन सकती है।
इस सिफारिश के जरिए ट्राई ने स्पष्ट संकेत दिया है कि अब सैटेलाइट कम्युनिकेशन क्षेत्र को भी अन्य दूरसंचार सेवाओं की तरह राजस्व हिस्सेदारी के दायरे में लाया जाएगा। यह कदम डिजिटल संचार और अंतरिक्ष सेवाओं के बढ़ते महत्व को ध्यान में रखते हुए उठाया गया है।
सैटेलाइट उद्योग का बदलेगा राजस्व मॉडल

अब तक सैटेलाइट ऑपरेटरों को इतने प्रत्यक्ष शुल्क का सामना नहीं करना पड़ता था। लेकिन यदि यह सिफारिश लागू होती है, तो इन ऑपरेटरों को अपने रेवेन्यू मॉडल में बड़े बदलाव करने होंगे। उन्हें अपने ग्राहकों को दी जा रही सेवाओं की कीमत में संशोधन करना पड़ सकता है ताकि अतिरिक्त शुल्क का भार वहन किया जा सके।
इस नीति का सबसे बड़ा प्रभाव छोटे और उभरते सैटेलाइट प्रदाताओं पर पड़ सकता है, जिन्हें पहले से ही उच्च लागत और सीमित ग्राहक आधार की चुनौती का सामना करना पड़ता है। ऐसे में यह नया शुल्क उनके लिए आर्थिक दबाव और प्रतिस्पर्धा को बढ़ा सकता है। ट्राई की इस सिफारिश से सरकार को हर साल करोड़ों रुपये की अतिरिक्त कमाई हो सकती है, जिससे डिजिटल इंडिया और अंतरिक्ष क्षेत्र में आत्मनिर्भरता जैसे अभियानों को भी सहयोग मिलेगा। हालांकि उद्योग जगत में इस नीति को लेकर मिली-जुली प्रतिक्रियाएं सामने आई हैं।
संतुलन की जरूरत
जहां एक ओर सरकार को अतिरिक्त आय का स्रोत मिलेगा, वहीं दूसरी ओर सैटेलाइट सेवा प्रदाताओं के लिए यह निर्णय आर्थिक दबाव बढ़ाने वाला हो सकता है। इसलिए जरूरी है कि इस सिफारिश को लागू करते समय संतुलन बनाया जाए ताकि तकनीकी विकास और आर्थिक स्थिरता दोनों को सुरक्षित रखा जा सके।