भारत एक बार फिर ईरान से कच्चा तेल आयात करने की दिशा में अपने कदम बढ़ा रहा है। हाल ही में कई भारतीय तेलशोधक कंपनियों ने यह संकेत दिया है कि अगर अंतरराष्ट्रीय प्रतिबंधों में ढील मिलती है, तो वे ईरानी कच्चे तेल को फिर से खरीदना शुरू कर सकती हैं। यह रुख ऐसे समय में सामने आया है जब वैश्विक बाजार में तेल की कीमतों में अस्थिरता बनी हुई है और भारत को अपनी ऊर्जा जरूरतों को पूरा करने के लिए सस्ते और भरोसेमंद स्रोतों की तलाश है।

भारत हमेशा से ही ईरान का एक प्रमुख तेल खरीदार रहा है। लेकिन अमेरिका द्वारा लगाए गए प्रतिबंधों के चलते 2019 के बाद भारत ने ईरान से तेल आयात लगभग बंद कर दिया था। अब अंतरराष्ट्रीय माहौल में कुछ नरमी दिख रही है, जिससे भारत के लिए फिर से ईरान के साथ व्यापारिक रिश्ते बहाल करना संभव हो सकता है। तेलशोधकों का मानना है कि ईरानी कच्चा तेल उनकी जरूरतों और रिफाइनिंग सिस्टम के लिए काफी उपयुक्त है, साथ ही इसकी कीमत भी तुलनात्मक रूप से सस्ती पड़ती है। विशेषज्ञों के अनुसार, ईरान से तेल खरीदने का फायदा सिर्फ कीमत में नहीं, बल्कि भू-राजनीतिक संतुलन बनाने में भी है। इससे भारत को पश्चिम एशिया में अपनी रणनीतिक स्थिति मजबूत करने का अवसर मिलेगा। भारत की कई रिफाइनिंग कंपनियाँ, जैसे कि इंडियन ऑयल, भारत पेट्रोलियम और हिंदुस्तान पेट्रोलियम, पहले भी ईरान से तेल खरीद चुकी हैं और उनका अनुभव सकारात्मक रहा है।
अगर अमेरिका और अन्य पश्चिमी देश ईरान पर लगे प्रतिबंधों में कुछ ढील देते हैं, तो भारत और ईरान के बीच ऊर्जा व्यापार एक बार फिर से सक्रिय हो सकता है। इससे न केवल भारत की ऊर्जा सुरक्षा को मजबूती मिलेगी, बल्कि घरेलू स्तर पर पेट्रोल और डीजल की कीमतों पर भी बेहतर नियंत्रण संभव हो सकेगा। भारत को कच्चे तेल की एक बड़ी मात्रा की जरूरत होती है, और ऐसे में ईरान जैसे पुराने और भरोसेमंद साझेदार के साथ व्यापारिक संबंधों का दोबारा स्थापित होना बहुत फायदेमंद साबित हो सकता है।
इसके साथ ही, ईरान से सस्ता कच्चा तेल मिलने पर भारत के तेलशोधन संयंत्रों को आर्थिक रूप से भी लाभ होगा, जिससे देश के व्यापार घाटे को कम करने में मदद मिल सकती है। यह कदम भारत के लिए केवल एक आर्थिक फैसला नहीं, बल्कि रणनीतिक दृष्टिकोण से भी अत्यंत महत्वपूर्ण है। कहा जा सकता है कि भारत और ईरान के बीच तेल व्यापार का यह संभावित पुनरारंभ, देश की ऊर्जा नीति के लिए एक बड़ा मोड़ साबित हो सकता है। अगर स्थितियाँ अनुकूल रहीं, तो आने वाला समय भारत की ऊर्जा आत्मनिर्भरता की दिशा में एक सकारात्मक कदम होगा।