Bio-fertilizer: खेती में उत्पादन बढ़ाने की होड़ में किसान अक्सर रासायनिक खादों का अत्यधिक उपयोग कर देते हैं। खासकर यूरिया (Urea) जैसी रासायनिक खादें, जो शुरुआत में तो फसल को हरा-भरा बना देती हैं, लेकिन लंबे समय में मिट्टी की सेहत को कमजोर कर देती हैं। यही कारण है कि कृषि वैज्ञानिक लगातार किसानों को जैव उर्वरक (Bio-Fertilizer) की ओर रुख करने की सलाह दे रहे हैं।
क्यों खतरनाक है यूरिया का ज्यादा उपयोग?
यूरिया का अत्यधिक छिड़काव भले ही फसल को तत्काल पोषण दे देता हो, लेकिन यह धीरे-धीरे मिट्टी की उर्वरा शक्ति (Fertility) को नष्ट कर देता है। वैज्ञानिकों का कहना है कि रासायनिक खादों से मिट्टी में मौजूद लाभकारी सूक्ष्मजीव मर जाते हैं, जिससे जमीन सख्त और बंजर होने लगती है। इससे न केवल उत्पादन घटता है बल्कि फसल की गुणवत्ता भी खराब होती है। कई बार फसल ‘जलहरीली’ (toxic) भी हो जाती है, यानी पौधे पोषक तत्वों को ठीक से ग्रहण नहीं कर पाते।
जैव उर्वरक: एक बेहतर और टिकाऊ विकल्प
रासायनिक खादों की तुलना में Bio-fertilizer या जैव उर्वरक खेत और पर्यावरण दोनों के लिए सुरक्षित हैं। ये प्राकृतिक सूक्ष्मजीवों से बने होते हैं, जो हवा और मिट्टी से नाइट्रोजन, फॉस्फोरस जैसे पोषक तत्व लेकर पौधों को उपलब्ध कराते हैं। इनका सबसे बड़ा लाभ यह है कि ये मिट्टी की संरचना को खराब नहीं करते, बल्कि उसकी उर्वरा क्षमता लंबे समय तक बनाए रखते हैं। जैव उर्वरक पौधों को सीधे पोषण नहीं देते, बल्कि उनमें मौजूद सूक्ष्मजीव (micro-organisms) मिट्टी में आवश्यक पोषक तत्व उपलब्ध कराते हैं। इसलिए इन्हें धूप या गर्म स्थान पर नहीं रखना चाहिए, क्योंकि तापमान से इनके जीवाणु निष्क्रिय हो सकते हैं।
जैव उर्वरकों की प्रमुख किस्में और उनका उपयोग
राइजोबियम (Rhizobium): यह मुख्यतः दलहनी फसलों (जैसे चना, मूंग, अरहर) के लिए उपयोगी है। यह वायुमंडल से नाइट्रोजन लेकर पौधों की जड़ों में पहुंचाता है। अलग-अलग फसलों के लिए राइजोबियम के अलग कल्चर होते हैं, इसलिए उपयोग से पहले पैक पर फसल का नाम अवश्य पढ़ें।
एजोटोबैक्टर (Azotobacter): गैर-दलहनी फसलों जैसे गेहूं, चावल और मक्का के लिए फायदेमंद है। यह मिट्टी में नाइट्रोजन स्थिरीकरण करता है और पौधों की वृद्धि में मदद करता है।
एजोस्पाइरिलम (Azospirillum): धान, गन्ना और मोटे अनाज वाली फसलों में यह उपयोगी है। यह पौधों की जड़ों के आसपास रहकर नाइट्रोजन प्रदान करता है और फसल को मजबूत बनाता है।
एसिटोबैक्टर (Acetobacter): विशेष रूप से गन्ने के लिए लाभदायक। यह गन्ने की जड़ों के पास नाइट्रोजन स्थिरीकरण करके उसकी वृद्धि बढ़ाता है।
कैरियर बेस्ड कन्सॉर्शिया (Carrier Based Consortia): यह दो या दो से अधिक बैक्टीरिया का मिश्रण होता है जो नाइट्रोजन और फॉस्फोरस दोनों प्रदान करते हैं।
लिक्विड कन्सॉर्शिया (Liquid Consortia): यह तरल रूप में उपलब्ध जैव उर्वरक है और बड़े पैमाने पर फसलों में इस्तेमाल किया जाता है।
किसानों के लिए चेतावनी
कृषि विशेषज्ञों का कहना है कि यदि किसान समय रहते रासायनिक खादों से दूरी नहीं बनाते, तो जमीन की उपजाऊ शक्ति खत्म हो सकती है। यूरिया का अधिक प्रयोग मिट्टी में नमक की मात्रा बढ़ा देता है जिससे मिट्टी ‘सख्त’ हो जाती है और जल धारण क्षमता कम हो जाती है। इसका असर आने वाली फसलों पर भी पड़ता है।
समाधान क्या है?
रासायनिक खादों की जगह जैव उर्वरक का प्रयोग करें।
मिट्टी परीक्षण (Soil Testing) कराकर उसके अनुसार जैव उर्वरक का चयन करें।
जैविक खेती को बढ़ावा दें, जिससे मिट्टी का स्वास्थ्य और उत्पादन क्षमता दोनों बनी रहें।
कृषि वैज्ञानिकों या कृषि विभाग से संपर्क कर उचित उर्वरक मिश्रण की जानकारी लें।
मिट्टी की सेहत ही किसान की संपत्ति
यदि किसान बायो फर्टिलाइजर का सही और नियमित उपयोग करें, तो न केवल उनकी फसल की गुणवत्ता बढ़ेगी बल्कि उत्पादन भी स्थायी रूप से बेहतर होगा। इससे भूमि की उर्वरा शक्ति लंबे समय तक बनी रहती है और रासायनिक निर्भरता खत्म होती है। आज जरूरत है कि किसान आधुनिक तकनीक के साथ प्राकृतिक खेती के सिद्धांतों को अपनाएं ताकि खेत भी उपजाऊ रहें और फसलें भी सेहतमंद रहें।