केंद्र सरकार ने 28 अक्टूबर को 8th Pay Commission (8th CPC) के Terms of Reference यानी ToR को मंजूरी दे दी है। इसके साथ ही करोड़ों केंद्रीय कर्मचारियों और पेंशनर्स में एक नई उम्मीद जग गई है कि आने वाले महीनों में सरकार उनके वेतन, भत्तों और पेंशन में बड़ा बदलाव कर सकती है। सरकार हर 10 साल में केंद्रीय कर्मचारियों की सैलरी-संरचना की समीक्षा करती है और यह प्रक्रिया अब 7वें वेतन आयोग के बाद दोबारा शुरू हो चुकी है।
क्या करता है वेतन आयोग?
केंद्रीय वेतन आयोग एक हाई-लेवल कमेटी होती है, जो सरकारी कर्मचारियों – चाहे वे सिविल सर्विस में हों, रक्षा विभाग में हों या रिटायर्ड हों उनके लिए वेतन और पेंशन सुधारों की सिफारिश तैयार करती है। इसका मुख्य मकसद वेतन को महंगाई के अनुरूप रखना, बदलते कामकाजी माहौल के हिसाब से भत्तों में सुधार करना, सेवा समूहों में वेतन-समानता और पेंशनर्स की गिरती क्रय-शक्ति को संतुलित करने का होता है। सरल शब्दों में – यह आयोग तय करता है कि सरकारी कर्मचारियों को कितना वेतन और कितने भत्ते मिलने चाहिए ताकि उनका जीवन स्तर प्रभावित न हो।
8वें वेतन आयोग के ToR में क्या खास?
8th CPC में इस बार सिर्फ कर्मचारियों की आर्थिक भलाई ही नहीं, बल्कि देश की समग्र आर्थिक स्थिति, पेंशन के बढ़ते बोझ और राज्य सरकारों पर पड़ने वाले असर को भी ध्यान में रखा जाएगा। कई राज्य केंद्र की वेतन-संरचना को फॉलो करते हैं, इसलिए केंद्र के निर्णयों का बड़ा असर राज्यों की वित्तीय स्थिति पर भी पड़ सकता है।
पे कमीशन सैलरी कैसे तय करता है?
पे कमीशन की पूरी प्रक्रिया कई चरणों में मिलकर काम करती है, लेकिन इसे आसान भाषा में समझा जाए तो सबसे पहले सरकार आयोग को टर्म्स ऑफ रेफरेंस (ToR) देती है, जिसमें यह बताया होता है कि कमीशन को किन पहलुओं की जांच करनी है और कब तक करनी है। इसके बाद कमीशन बड़े पैमाने पर डेटा इकट्ठा करता है – जैसे कर्मचारियों की कुल संख्या, उनकी मौजूदा वेतन संरचना, महंगाई के आंकड़े, प्राइवेट सेक्टर की सैलरी और पेंशन का बोझ। इसके साथ-साथ कर्मचारी संगठनों से भी विस्तृत बातचीत की जाती है, ताकि उनकी जरूरतों और सुझावों को रिपोर्ट में शामिल किया जा सके। इन सारी जानकारियों का विश्लेषण करने के बाद आयोग अपनी अंतिम रिपोर्ट तैयार करता है और उसे सरकार को सौंप देता है। अंत में सरकार कैबिनेट की मंजूरी के बाद यह तय करती है कि किन सिफारिशों को लागू किया जाए, और इसके आधार पर आधिकारिक आदेश जारी किए जाते हैं। आमतौर पर यह पूरी प्रक्रिया 18 से 24 महीनों में पूरी होती है।
कब तक मिलेगा फायदा? कितना लगेगा समय?
6वें और 7वें वेतन आयोग को रिपोर्ट तैयार करने में लगभग डेढ़ साल लगे थे। इसके बाद सरकार को सिफारिशें लागू करने में 3 से 9 महीनों का समय लगा। 8वें वेतन आयोग के लिए भी इसी समय-सीमा का अनुमान लगाया जा रहा है। यानी कर्मचारियों और पेंशनर्स तक वास्तविक फायदा पहुंचने में लगभग दो साल का समय लग सकता है।
कर्मचारियों की जेब पर क्या पड़ेगा असर?
8th CPC का असर सीधे तौर पर लगभग 47 लाख केंद्रीय कर्मचारियों और 69 लाख पेंशनर्स तक पहुंचेगा। सबसे महत्वपूर्ण बदलाव फिटमेंट फैक्टर में देखा जा सकता है, क्योंकि यही बेसिक सैलरी और पेंशन की बुनियाद तय करता है। यदि फिटमेंट फैक्टर बढ़ाया जाता है, तो कर्मचारियों की बेसिक सैलरी में उल्लेखनीय बढ़ोतरी होगी, साथ ही पेंशनर्स को भी उनकी पेंशन में सीधा लाभ मिलेगा। इसके साथ कई भत्ते – जैसे HRA, TA आदि बेसिक सैलरी से जुड़े होते हैं, इसलिए उनमें भी स्वाभाविक रूप से इजाफा होगा। कुल मिलाकर, कर्मचारियों की नेट इनकम बढ़ेगी और पेंशनर्स की आर्थिक स्थिति को भी महत्वपूर्ण राहत मिलेगी।
सरकार पर कितना वित्तीय बोझ बढ़ेगा?
2016 में 7वें वेतन आयोग के लागू होने के बाद सरकार पर पहले ही साल में लगभग 1 लाख करोड़ रुपये का अतिरिक्त बोझ पड़ा था। अब 8वें वेतन आयोग के लिए विशेषज्ञों का अनुमान है कि –
- सरकार का वार्षिक वेतन और पेंशन खर्च 2.4 लाख करोड़ से 3.2 लाख करोड़ रुपये तक बढ़ सकता है।
- यह GDP का 0.6% से 0.8% हो सकता है।
यह सरकार के लिए बड़ा वित्तीय निर्णय है, क्योंकि अतिरिक्त खर्च का असर इंफ्रास्ट्रक्चर, सड़क निर्माण और विकास परियोजनाओं के बजट पर पड़ सकता है।
इकोनॉमी पर प्रभाव
जहां एक ओर सरकार का वित्तीय बोझ बढ़ता है, वहीं दूसरी ओर बढ़ी हुई सैलरी से बाजार में खपत बढ़ सकती है। इससे ऑटोमोबाइल, FMCG, इलेक्ट्रॉनिक्स और रियल एस्टेट जैसे सेक्टर्स को सीधा फायदा हो सकता है। यानी कर्मचारियों की जेब में पैसा बढ़ते ही बाजार को नई गति मिलती है।
अहम फैसला, बड़ी उम्मीदें
8th Pay Commission सिर्फ वेतन बढ़ाने का मसला नहीं है, बल्कि यह देश की आर्थिक स्थिति, सरकारी योजनाओं और करोड़ों परिवारों के जीवन स्तर से जुड़ा बड़ा निर्णय है। अब सभी की निगाहें आयोग की रिपोर्ट पर हैं – जो आने वाले महीनों में तय करेगी कि सरकारी कर्मचारियों और पेंशनर्स के लिए नया आर्थिक अध्याय किस तरह शुरू होगा।