Oilseed revolution: भारत आज खाद्य तेलों के बाज़ार में बड़ी विरोधाभासी स्थिति में खड़ा है। एक तरफ देश दुनिया के प्रमुख तिलहन उत्पादकों में शामिल है, तो दूसरी तरफ घरेलू मांग पूरी करने के लिए अब भी बड़े पैमाने पर आयात पर निर्भर रहना पड़ता है। नीति आयोग की 2024 की रिपोर्ट बताती है कि भारत राइस ब्रान ऑयल, सरसों, तिल, कुसुम, कैस्टर और नाइजर जैसे कई तिलहनों में वैश्विक स्तर पर शीर्ष स्थान पर है, पर कुल खपत का केवल 44% हिस्सा ही देश के भीतर उत्पादित तेल से पूरा हो पाता है। शेष जरूरत विदेशी तेल पर निर्भर रहती है। हालांकि पिछले आठ वर्षों में आयात निर्भरता 63% से घटकर लगभग 56% तक पहुंच गई है, लेकिन बढ़ती हुई खपत इस सुधार को सीमित कर देती है।
देश को इसी चुनौती से मुक्त करने और वास्तविक आत्मनिर्भरता की दिशा में आगे बढ़ाने के लिए केंद्र सरकार ने 2021 में राष्ट्रीय खाद्य तेल मिशन (National Mission on Edible Oils – NMEO) की शुरुआत की। सरकार का स्पष्ट लक्ष्य है कि वर्ष 2030-31 तक घरेलू तिलहन उत्पादन को बढ़ाकर 69.7 मिलियन टन तक ले जाया जाए, ताकि भारत न केवल अपना उत्पादन खुद पूरा करे, बल्कि भविष्य में वैश्विक बाजार में भी मजबूत सप्लायर की भूमिका निभा सके।
NMEO-Oil Palm: पाम ऑयल की बढ़ती जरूरत के लिए बड़ा विस्तार
मिशन का पहला बड़ा हिस्सा NMEO-Oil Palm (NMEO-OP) है। भारत में पाम ऑयल की खपत तेजी से बढ़ रही है, और इसी को देखते हुए सरकार 2025-26 तक 6.5 लाख हेक्टेयर में तेल पाम की खेती विस्तार का लक्ष्य लेकर चल रही है। नवंबर 2025 तक लगभग 2.50 लाख हेक्टेयर क्षेत्र मिशन के तहत पहले ही कवर किया जा चुका है और देश में कुल कवरेज 6.20 लाख हेक्टेयर तक पहुंच गई है।
तेजी से बढ़ रही खेती का असर उत्पादन पर भी दिख रहा है। जहां 2014-15 में भारत का क्रूड पाम ऑयल (CPO) उत्पादन 1.91 लाख टन था, वहीं 2024-25 में यह बढ़कर 3.80 लाख टन तक पहुंच गया है। यह वृद्धि बताती है कि पाम ऑयल का घरेलू उत्पादन आने वाले वर्षों में और मजबूत होगा।
NMEO-Oilseeds: तिलहन उत्पादन बढ़ाने की बड़ी रणनीति
मिशन का दूसरा बड़ा चरण NMEO-Oilseeds है, जिसे वर्ष 2024 में औपचारिक रूप से मंजूरी दी गई। इसका उद्देश्य भारत के पारंपरिक तिलहन उत्पादन को नई ऊंचाइयों पर ले जाना है। सरकार ने 39 मिलियन टन के मौजूदा उत्पादन को बढ़ाकर 69.7 मिलियन टन करने का लक्ष्य तय किया है। इसके लिए क्लस्टर मॉडल पर खेती, उच्च गुणवत्ता वाले बीज, प्रोसेसिंग यूनिट्स की वृद्धि और मज़बूत मार्केट लिंकिंग पर जोर दिया जा रहा है।
सरकार का मानना है कि इस कदम से किसानों की आमदनी बढ़ेगी और पूरी सप्लाई चेन मजबूत होगी। बेहतर बीज, नई तकनीक और आधुनिक कृषि पद्धतियों के साथ किसान अधिक उत्पादकता हासिल कर पाएंगे, वहीं उद्योगों को लगातार बेहतर क्वालिटी का कच्चा माल मिलेगा।
तिलहन उत्पादन में भारत की स्थिति
भारत पहले से ही तिलहन सेक्टर में दुनिया का एक बड़ा खिलाड़ी है। वित्त वर्ष 2023-24 में खली, तिलहन और गौण तेलों का कुल निर्यात 5.44 मिलियन टन रहा, जिसका मूल्य लगभग 29,587 करोड़ रुपये था। मई 2025 तक भारत का तिलहन उत्पादन बढ़कर 42.6 मिलियन टन के रिकॉर्ड स्तर पर पहुंच गया।
भारत में तिलहन फसलें कृषि क्षेत्र में महत्वपूर्ण योगदान देती हैं – देश के कुल सकल फसल क्षेत्र का लगभग 14.3%, आहार ऊर्जा में 12-13% और कृषि निर्यात में लगभग 8% हिस्सा तिलहन सेक्टर का है। उत्पादन में भी भारत कई फसलों में अग्रणी है – अरंडी, तिल, कुसुम और नाइजर के उत्पादन में देश दुनिया में प्रथम है। मूंगफली में दूसरा, सरसों में तीसरा और सोयाबीन में पांचवें स्थान पर है। राजस्थान, मध्य प्रदेश, गुजरात और महाराष्ट्र जैसे राज्य देश के कुल उत्पादन में 77% से अधिक योगदान देते हैं।
NMEO-OS: सात साल का रोडमैप
2024 में शुरू किया गया NMEO-OS (Oilseeds) इस क्षेत्र में दीर्घकालिक सुधार लाने के लिए सात साल की समयसीमा (2024-25 से 2030-31) के साथ बनाया गया है। इस कार्यक्रम पर 10,103 करोड़ रुपये का बड़ा कैपिटल एक्सपेंडिचर निर्धारित किया गया है। मिशन सिर्फ प्राथमिक तिलहनों पर ही नहीं, बल्कि द्वितीयक स्रोतों जैसे कपास बीज, नारियल, राइस ब्रान और वृक्ष-जनित तिलहनों (TBO) से तेल निकालने की दक्षता बढ़ाने पर भी ध्यान देता है। इससे कुल उपलब्ध तेल की मात्रा बढ़ेगी और आयात की जरूरत और भी कम होगी।
NMEO-OS को केंद्र और राज्यों के साझे मॉडल पर लागू किया जा रहा है – सामान्य राज्यों के लिए 60:40, पहाड़ी और पूर्वोत्तर राज्यों के लिए 90:10 और केंद्र शासित प्रदेशों के लिए 100% फंडिंग। इसे तीन-स्तरीय संरचना के तहत लागू किया जा रहा है ताकि योजना बेहतर निगरानी और परिणाम दे सके।
NMEO योजना कृषि परिवर्तन की दिशा
NMEO सिर्फ एक योजना नहीं बल्कि कृषि परिवर्तन की दिशा में भारत की बड़ी छलांग है। यह मिशन किसानों को बेहतर अवसर देने, देश की आयात निर्भरता कम करने और खाद्य तेल के क्षेत्र में वास्तविक आत्मनिर्भरता लाने का मजबूत रोडमैप बन चुका है। आने वाले वर्षों में यह तिलहन सेक्टर भारत की आर्थिक मजबूती और वैश्विक भूमिका – दोनों में महत्वपूर्ण योगदान देगा।