Rupee vs Dollar: भारत और अमेरिका के बीच संभावित व्यापार समझौते की चर्चा ने गुरुवार को वित्तीय बाज़ार में बड़ी हलचल मचा दी। रिपोर्ट्स सामने आते ही कि दोनों देश मार्च 2026 तक अपने द्विपक्षीय व्यापार समझौते पर हस्ताक्षर कर सकते हैं, भारतीय रुपये पर इसका सीधा असर दिखाई दिया। अंतर-दिवसीय कारोबार के दौरान रुपया अमेरिकी डॉलर के सामने 54 पैसे टूटकर 90.48 के सर्वकालिक निचले स्तर पर पहुंच गया, जो भारतीय मुद्रा बाज़ार के लिए एक नया रिकॉर्ड था।
विदेशी मुद्रा विशेषज्ञों का कहना है कि मुख्य आर्थिक सलाहकार (CEA) वी. अनंत नागेश्वरन के उस बयान के बाद दबाव और बढ़ गया, जिसमें उन्होंने इस समझौते के मार्च तक फाइनल होने की संभावना जताई। यह अनुमान निवेशकों के मन में मिश्रित भावनाएं पैदा कर गया – जहाँ व्यापार समझौते को लेकर उम्मीदें मजबूत हुईं, वहीं ग्लोबल मार्केट की अनिश्चितताओं ने रुपये पर दबाव बना दिया।
इंटरबैंक विदेशी मुद्रा बाज़ार में गुरुवार को रुपया 89.95 पर खुला था, लेकिन शुरुआती सत्र से ही डॉलर की मांग में मजबूती दिखी। आयातकों को डॉलर की बढ़ती जरूरत और वैश्विक स्तर पर ‘रिस्क-ऑफ’ माहौल के कारण रुपये ने अपनी गति खो दी। दिन चढ़ते-चढ़ते रुपया 90.48 तक गिर गया, जो अब तक का सबसे कमजोर स्तर है। पिछले सत्र में रुपया 89.87 पर स्थिर बंद हुआ था। विशेषज्ञों के अनुसार, इस तेज़ गिरावट में अंतरराष्ट्रीय कारकों का भी बड़ा हाथ है।
इसी बीच मेक्सिको ने यह घोषणा कर दी कि वह भारत सहित कई एशियाई देशों से आने वाले उत्पादों पर 50% तक का टैरिफ लगाने पर विचार कर रहा है। इस फैसले ने वैश्विक व्यापार जगत में एक नया तनाव उत्पन्न कर दिया है, जिससे उभरती अर्थव्यवस्थाओं की मुद्राओं पर नकारात्मक असर पड़ने की आशंका है। फिनरेक्स ट्रेज़री एडवाइजर्स के ट्रेज़री प्रमुख अनिल कुमार भंसाली का कहना है कि “अमेरिका और जापान की लंबी अवधि की ब्याज दरों में बढ़ोतरी हो रही है, जिससे रुपये को संभलने का कोई मौका नहीं मिल रहा।”
दूसरी ओर, अमेरिकी व्यापार प्रतिनिधि (USTR) जैमीसन ग्रीर ने संकेत दिया कि भारत और अमेरिका के बीच दो-दिवसीय बातचीत काफी सकारात्मक रही है। उन्होंने बताया कि अमेरिका को भारत की ओर से अब तक के सबसे बेहतर व्यापार प्रस्ताव मिले हैं, खासकर उन सेक्टर्स में जहाँ दोनों देशों के बीच लंबे समय से मतभेद चले आ रहे थे। ग्रीर ने यह भी स्वीकार किया कि भारत में कुछ विशिष्ट फसलों और मांस उत्पादों को लेकर प्रतिरोध मौजूद है, लेकिन बातचीत सही दिशा में आगे बढ़ रही है।
महत्वपूर्ण बात यह है कि दोनों देशों की टीमों का लक्ष्य द्विपक्षीय व्यापार समझौते (BTA) के पहले चरण को जल्द पूरा करना है। यदि यह समझौता सफल होता है, तो कृषि, मांस उत्पादों, टेक्नोलॉजी, फैक्ट्री आउटपुट और सप्लाई चेन जैसे क्षेत्रों में बड़े बदलाव देखने को मिल सकते हैं।
विश्व बाज़ार से मिलने वाले संकेत भी रुपये पर दबाव बढ़ा रहे हैं। डॉलर इंडेक्स, जो छह प्रमुख मुद्राओं के मुकाबले डॉलर की मजबूती को मापता है, फेडरल रिजर्व द्वारा ब्याज दरों में कटौती के बाद 0.17% गिरकर 98.61 पर आ गया। वहीं, ब्रेंट क्रूड की कीमतें 1.17% गिरकर 61.48 डॉलर प्रति बैरल पर पहुंच गई – यह भारतीय अर्थव्यवस्था के लिए सकारात्मक संकेत है, पर रुपये की कमजोरी उसे संतुलित कर रही है।
घरेलू इक्विटी बाज़ार में हालांकि माहौल सकारात्मक रहा। सेंसेक्स 443 अंक चढ़कर 84,834 पर पहुंच गया, जबकि निफ्टी 25,899 के स्तर पर ट्रेड कर रहा था। लेकिन विदेशी संस्थागत निवेशकों (FII) ने बुधवार को 1,651 करोड़ रुपये की बिकवाली की, जिससे रुपये पर अतिरिक्त दबाव आया।
कुल मिलाकर, भारत-अमेरिका व्यापार समझौते की संभावना भले ही लंबी अवधि में फायदेमंद हो सकती है, लेकिन अल्पकालिक असर रुपये पर भारी पड़ता दिखाई दे रहा है। आने वाले दिनों में वैश्विक दरों, डॉलर की मांग और विदेशी निवेश प्रवाह से ही तय होगा कि रुपया स्थिर होगा या फिर एक और गिरावट दर्ज करेगा।