केंद्र सरकार ने देश की सबसे बड़ी ग्रामीण रोजगार योजना महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी अधिनियम (MGNREGA) में बड़े बदलावों का प्रस्ताव पेश किया है। अगर यह प्रस्ताव कानून का रूप लेता है, तो इस योजना का नाम बदल जायेगा, साथ ही इसके काम करने के तरीके, फंडिंग स्ट्रक्चर और मजदूरों को मिलने वाली कानूनी सुरक्षा पर भी असर पड़ेगा। जो ग्रामीण रोजगार व्यवस्था के लिए एक नया मोड़ साबित हो सकता है।
MGNREGA का नया नाम और बढ़ेंगे काम के दिन
प्रस्ताव के मुताबिक, MGNREGA का नाम बदलकर “विकसित भारत–गारंटी फॉर रोजगार और आजीविका मिशन (ग्रामीण)”, यानी VB-RaM G किया जाएगा। सरकार का कहना है कि नया नाम विकसित भारत के विजन के अनुरूप है और रोजगार को आजीविका से जोड़ता है।
इसके साथ ही योजना के तहत सालाना काम के दिनों की संख्या 100 से बढ़ाकर 125 दिन करने का प्रस्ताव है। पहली नजर में यह कदम मजदूरों के लिए राहत भरा दिखता है, लेकिन इसके साथ जुड़े अन्य बदलावों ने कई सवाल भी खड़े कर दिए हैं।
बदलेगा केंद्र-राज्य फंडिंग पैटर्न
सबसे अहम बदलाव योजना के फंडिंग ढांचे में प्रस्तावित किया गया है। अभी MGNREGA में मजदूरी का पूरा खर्च केंद्र सरकार उठाती है, जबकि सामग्री लागत का बड़ा हिस्सा भी केंद्र ही देता है। नए प्रस्ताव के तहत खर्च का बंटवारा 60:40 (केंद्र:राज्य) करने की बात कही गई है। जिसका मतलब है कि राज्यों को पहले की तुलना में कहीं ज्यादा आर्थिक जिम्मेदारी उठानी होगी। विशेषज्ञों का मानना है कि आर्थिक रूप से कमजोर राज्यों के लिए यह एक बड़ी चुनौती साबित होगी।
राज्यों को मिलेगा योजना रोकने का अधिकार
ड्राफ्ट बिल में राज्यों को यह अधिकार देने का प्रस्ताव है कि वे अपने कृषि सीजन के दौरान साल में 60 दिनों तक योजना को अस्थायी रूप से रोक सकें। राज्य सरकारों को यह अवधि पहले से घोषित करनी होगी, ताकि बीजाई और कटाई के समय खेतों में मजदूरों की कमी न हो। हालांकि, आलोचकों का कहना है कि इससे ग्रामीण मजदूरों की आय की निरंतरता प्रभावित हो सकती है, खासकर उन इलाकों में जहां खेती के अलावा रोजगार के विकल्प सीमित हैं।
मजदूरी सुरक्षा पर उठे सवाल
MGNREGA को लेकर सबसे बड़ी चिंता मजदूरी सुरक्षा को लेकर जताई जा रही है। मजदूर किसान शक्ति संगठन (MKSS) और नेशनल कैंपेन फॉर पीपल्स राइट टू इंफॉर्मेशन (NCPRI) से जुड़े सामाजिक कार्यकर्ता निखिल डे का कहना है कि MGNREGA ने ग्रामीण मजदूरों को न्यूनतम मजदूरी की वास्तविक गारंटी दी थी।
उनके मुताबिक, नए मसौदे में कानूनी अधिकार कमजोर होते दिख रहे हैं और योजना एक अधिकार आधारित कानून से आवंटन आधारित योजना की ओर बढ़ती नजर आ रही है। इससे कृषि मजदूरों के शोषण का खतरा बढ़ सकता है।
ठेकेदारों और काम की परिभाषा में बदलाव
प्रस्तावित कानून में ठेकेदारों के इस्तेमाल पर लगी सख्ती को भी ढीला करने की बात कही गई है। इसके अलावा, यह तय करने का अधिकार कि कौन-कौन से काम योजना के तहत होंगे, अब राज्यों की बजाय केंद्र सरकार के पास होगा। इसके साथ ही, मजदूरों को घर से पांच किलोमीटर के भीतर काम मिलने की गारंटी भी पूरी तरह सुनिश्चित नहीं रह जाएगी। देर से भुगतान और बेरोजगारी भत्ते की जिम्मेदारी पूरी तरह राज्यों पर डालने का प्रस्ताव भी चिंता बढ़ा रहा है।
कितना होगा खर्च
ड्राफ्ट बिल के मुताबिक, अगर यह योजना पूरे देश में लागू होती है, तो इसका सालाना अनुमानित खर्च ₹1,51,282 करोड़ होगा। इसमें से करीब ₹95,692 करोड़ केंद्र सरकार का हिस्सा होगा, जबकि बाकी खर्च राज्यों को उठाना पड़ेगा। राजस्थान जैसे राज्यों में अभी MGNREGA पर सालाना करीब ₹10,000 करोड़ खर्च होते हैं। ऐसे में सवाल उठ रहा है कि क्या सभी राज्य नए फंडिंग पैटर्न के तहत 40% खर्च वहन कर पाएंगे।
सरकार की दलील
केंद्र सरकार का कहना है कि ग्रामीण विकास की जरूरतें अब बदल रही हैं। अलग-अलग योजनाओं को एकीकृत करके एक मजबूत और प्रभावी ग्रामीण विकास मॉडल तैयार करना जरूरी है। सरकार का दावा है कि इससे संसाधनों का बेहतर उपयोग होगा और ग्रामीण बुनियादी ढांचे को भविष्य के अनुरूप विकसित किया जा सकेगा।
MGNREGA की अब तक की यात्रा
MGNREGA को पहली बार 7 सितंबर 2005 को अधिसूचित किया गया था। यह योजना 2006 में 200 जिलों से शुरू हुई, 2007-08 में इसका दायरा बढ़ा और 1 अप्रैल 2008 से पूरे देश में लागू कर दी गई। पिछले दो दशकों में यह योजना करोड़ों ग्रामीण परिवारों के लिए रोजगार और सुरक्षा का सहारा बनी है। अब प्रस्तावित बदलावों के बाद यह देखना अहम होगा कि VB-RaM G ग्रामीण भारत के लिए नई उम्मीद बनेगी या मौजूदा सुरक्षा कवच को कमजोर कर देगी।