देश में diabetes और मोटापे से जूझ रहे करोड़ों लोगों के लिए साल 2026 राहत भरी खबर लेकर आ सकता है। वजह है टाइप-2 diabetes में इस्तेमाल होने वाली प्रमुख दवा सेमाग्लूटाइड का पेटेंट खत्म होना। मार्च 2026 में पेटेंट समाप्त होते ही भारतीय बाजार में इसकी सस्ती जेनेरिक दवाओं के आने का रास्ता साफ हो जाएगा। इसका सीधा असर diabetes और वजन घटाने में इस्तेमाल होने वाली GLP-1 दवाओं के पूरे बाजार पर पड़ने वाला है।
पेटेंट खत्म होते ही 80% तक गिर सकती हैं कीमतें
फार्मा इंडस्ट्री से जुड़े विशेषज्ञों के मुताबिक, सेमाग्लूटाइड के पेटेंट खत्म होने के बाद इसकी कीमतों में 80 प्रतिशत तक की गिरावट आ सकती है। फार्माट्रैक के उपाध्यक्ष (कॉमर्शियल) शीतल सापाले के अनुसार, GLP-1 दवाएं लॉन्च के कुछ ही महीनों में 1,000 करोड़ रुपये से ज्यादा के बाजार तक पहुंच गई थीं, जिसकी बड़ी वजह इनकी ऊंची कीमत थी। लेकिन जेनेरिक दवाओं के आने के बाद बाजार की रफ्तार तो बढ़ेगी, पर आर्थिक ग्रोथ की रफ्तार धीमी पड़ सकती है।
सस्ती दवाओं से बढ़ेगा मरीज आधार, लेकिन चुनौती भी
विशेषज्ञों का मानना है कि कीमतें कम होने से मरीजों की संख्या जरूर बढ़ेगी, लेकिन इलाज बीच में छोड़ने वालों की दर भी तेज हो सकती है। डॉक्टरों के अनुसार, GLP-1 दवाओं के कुछ साइड इफेक्ट लंबे समय तक इलाज जारी रखने में बाधा बनते हैं। मतली, उल्टी, दस्त, कब्ज और कुछ मामलों में बाल झड़ने जैसी शिकायतें सामने आई हैं। जैसे-जैसे दवा का इस्तेमाल बढ़ेगा, इन दुष्प्रभावों के कारण ड्रॉपआउट रेट भी बढ़ सकता है।
भारतीय कंपनियां मैदान में उतरने को तैयार
भारत में इस समय सेमाग्लूटाइड का बाजार करीब 427 करोड़ रुपये का है। पेटेंट खत्म होने से पहले ही डॉ. रेड्डीज लैबोरेटरीज, सिप्ला, मैनकाइंड फार्मा और सन फार्मा जैसी दिग्गज कंपनियां इस सेगमेंट में एंट्री की तैयारी कर चुकी हैं। बताया जा रहा है कि 14 से ज्यादा एंटी-ओबेसिटी दवाएं आने वाले महीनों में बाजार में लॉन्च हो सकती हैं। हालांकि विशेषज्ञों का कहना है कि शुरुआती मांग के बाद बाजार कुछ समय में स्थिर हो सकता है।
मोटापा घटाने वाली दवाओं का बाजार कैसे बढ़ा
सेमाग्लूटाइड की भारत में शुरुआत जनवरी 2022 में नोवो नॉर्डिस्क की ओरल दवा रायबेल्सस से हुई थी। इसके बाद इस सेगमेंट ने जबरदस्त रफ्तार पकड़ी। नवंबर 2022 में जहां इसकी सालाना बिक्री 71 करोड़ रुपये थी, वहीं नवंबर 2025 तक यह बढ़कर 377 करोड़ रुपये हो गई। वजन घटाने के लिए इस साल तीन इंजेक्शन – मौंजारो, वेगोवी और ओजेम्पिक – लॉन्च किए गए, जिससे मोटापा कम करने वाली दवाओं का बाजार तीन साल में 242 करोड़ से बढ़कर 1,109 करोड़ रुपये तक पहुंच गया।
कंपनियों के बीच बढ़ी प्रतिस्पर्धा
एली लिली की मौंजारो (टिरज़ेपेटाइड) ने बाजार में आते ही धूम मचा दी। सिर्फ सात महीनों में इस दवा की बिक्री 496 करोड़ रुपये तक पहुंच गई। दूसरी ओर, नोवो नॉर्डिस्क की वेगोवी की शुरुआत धीमी रही, लेकिन कीमतों में 30–35 फीसदी की कटौती के बाद इसकी मांग में सिर्फ 15 दिनों में 70 फीसदी का उछाल देखने को मिला। इससे कंपनी की बाजार हिस्सेदारी भी तेजी से बढ़ी।
भारत में बढ़ती बीमारी, बढ़ती जरूरत
डब्ल्यूएचओ के आंकड़ों के मुताबिक, भारत में करीब 10.1 करोड़ लोग diabetes से पीड़ित हैं, जबकि 13.6 करोड़ लोग प्री-डायबिटिक स्थिति में हैं। इसके अलावा 25 करोड़ से ज्यादा लोग मोटापे और 35 करोड़ लोग पेट के मोटापे से जूझ रहे हैं। हालांकि डॉक्टर साफ कहते हैं कि फिलहाल ओजेम्पिक और मौंजारो जैसी दवाएं केवल टाइप-2 डायबिटीज के मरीजों को ही दी जानी चाहिए।
दवा बाज़ार का नए दौर में प्रवेश
सस्ती जेनेरिक दवाओं के आने से इलाज ज्यादा लोगों की पहुंच में आएगा, लेकिन फार्मा कंपनियों के लिए मुनाफा बनाए रखना चुनौती बन सकता है। साफ है कि 2026 से डायबिटीज और मोटापे की दवाओं का बाजार एक नए दौर में प्रवेश करने वाला है – जहां कीमतें कम होंगी, प्रतिस्पर्धा ज्यादा होगी और मरीजों के पास विकल्प भी अधिक होंगे।