सरकारी बैंकों ने आम लोगों को बड़ी राहत दी है। अब बचत खाते में न्यूनतम राशि बनाए न रखने पर कोई जुर्माना नहीं लगेगा। बैंक ऑफ बड़ौदा, इंडियन बैंक, केनरा बैंक और पंजाब नेशनल बैंक जैसे कई बड़े सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों ने यह फैसला लिया है। इसका सीधा फायदा उन ग्राहकों को होगा जो कम आय वर्ग से आते हैं और महीने के अंत तक खाते में पैसा बनाए रखना उनके लिए मुश्किल होता था।
क्यों लिया गया यह फैसला?
बैंकों का उद्देश्य अब जुर्माने से कमाई करने की बजाय, ज्यादा से ज्यादा ग्राहकों को जोड़े रखना है। वरिष्ठ बैंकरों का कहना है कि डिजिटल लेन-देन के बढ़ने और बढ़ती प्रतिस्पर्धा के चलते अब बैंकों को अपनी रणनीति बदलनी पड़ रही है। जमाकर्ताओं को आकर्षित करने के लिए यह जरूरी हो गया है कि बैंक सुविधाजनक और कम लागत वाले विकल्प दें।
कम हो रही हैं ब्याज दरें, बढ़ रही चुनौती
भारतीय रिज़र्व बैंक (RBI) की मौद्रिक नीति समिति द्वारा हाल के महीनों में रेपो रेट में की गई कटौती का असर बैंकों की ब्याज दरों पर साफ दिख रहा है। बचत खातों पर अब ब्याज दरें घटकर 2.50 से 2.75 प्रतिशत रह गई हैं, जबकि एक वर्ष से अधिक की सावधि जमाओं की ब्याज दरें 6 से 7.3 प्रतिशत से घटकर 5.85 से 6.70 प्रतिशत के बीच आ गई हैं।
इस कारण बैंकों के लिए ग्राहकों को बनाए रखना एक बड़ी चुनौती बन गया है। जब ब्याज पहले ही कम मिल रहा हो और ऊपर से जुर्माना भी लगे, तो ग्राहक अपना खाता बंद करना ही बेहतर समझते हैं। ऐसे में बैंक अब ब्याज के बजाय सेवा सुविधा पर ध्यान केंद्रित कर रहे हैं।
बैंकों की आय पर क्या पड़ेगा असर?
न्यूनतम बैलेंस चार्ज हटाने से बैंकों की गैर-ब्याज आय (non-interest income) पर जरूर असर पड़ेगा। पिछले दो-तीन वर्षों में ऐसे खातों की संख्या बढ़ी है जिनमें ग्राहक न्यूनतम राशि नहीं रख पाए। इससे बैंकों को जुर्माने के रूप में अतिरिक्त आय मिलती थी। अब यह आय कम हो सकती है, लेकिन बैंक मानते हैं कि लंबे समय में इससे ग्राहकों की संतुष्टि बढ़ेगी और अधिक खाते खुले रहेंगे।
निष्क्रिय खातों की संख्या बढ़ने का खतरा
इस बदलाव के साथ एक नई चिंता भी सामने आई है – निष्क्रिय खातों की बढ़ती संख्या। जब ग्राहकों पर कोई आर्थिक दबाव नहीं होगा, तो वे खाते में पैसा रखने की आदत छोड़ सकते हैं। इससे बैंक के लिए इन खातों को मेंटेन करना लागत बढ़ाने वाला हो सकता है। विशेषज्ञों का कहना है कि ऐसे खाते जहां महीने-दो महीने में कोई लेनदेन नहीं होता, वे धीरे-धीरे निष्क्रिय हो जाते हैं और बैंक को उनके रखरखाव पर खर्च करना पड़ता है।
क्या पहले से ज़ीरो बैलेंस खाते नहीं थे?
पहले भी ज़ीरो बैलेंस वाले खाते थे। कई सरकारी बैंक पहले से वेतनभोगी कर्मचारियों के लिए ज़ीरो बैलेंस खाते खोलने की सुविधा देते थे। इसके अलावा जनधन योजना के तहत भी करोड़ों खाते खोले गए थे जिनमें कोई न्यूनतम राशि रखने की अनिवार्यता नहीं थी। हालांकि, सामान्य बचत खातों पर अभी भी मिनिमम बैलेंस रखने की शर्तें लागू थीं, जिन्हें अब हटाया जा रहा है।
ग्राहकों के लिए क्या है फायदा?
इस फैसले से लाखों खाताधारकों को राहत मिलेगी, खासकर ग्रामीण क्षेत्रों, छोटे शहरों और निम्न आय वर्ग के ग्राहकों को। उन्हें अब इस चिंता से मुक्ति मिल गई है कि अगर खाते में कुछ दिनों तक पैसा न रहा तो जुर्माना लगेगा। इससे बैंकिंग प्रणाली में आम जनता का भरोसा बढ़ेगा और वित्तीय समावेशन को बढ़ावा मिलेगा।
बैंक बनाएंगे संतुलन
मिनिमम बैलेंस शुल्क हटाना एक सराहनीय कदम है जो बैंकिंग को आम लोगों के और करीब लाएगा। हालांकि, बैंकों को अब यह संतुलन साधना होगा कि वे कैसे बिना शुल्क के खातों को लाभदायक बनाए रखें। ग्राहकों की संतुष्टि और बैंकों की आय – दोनों के बीच संतुलन बनाना ही इस फैसले की सफलता की असली कसौटी होगी।