Cabinet meeting: प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अध्यक्षता में केंद्रीय मंत्रिमंडल ने परमाणु ऊर्जा क्षेत्र को लेकर एक ऐतिहासिक और दूरगामी फैसला लिया है। सरकार ने ऐसे विधेयक को मंजूरी दे दी है, जिसके जरिए गैर-सामरिक परमाणु ऊर्जा क्षेत्र में निजी कंपनियों की भागीदारी का रास्ता साफ किया जाएगा। यह फैसला देश की ऊर्जा नीति में बड़ा बदलाव माना जा रहा है, साथ ही भारत को दीर्घकालिक ऊर्जा सुरक्षा और स्वच्छ ऊर्जा लक्ष्यों की ओर तेजी से ले जाने वाला कदम भी है।
इस विधेयक का मुख्य उद्देश्य मौजूदा कानूनी ढांचे में जरूरी संशोधन करना है, ताकि निजी और विदेशी निवेश को परमाणु ऊर्जा क्षेत्र में आकर्षित किया जा सके। इसके तहत परमाणु ऊर्जा अधिनियम, 1962 और परमाणु क्षति के लिए नागरिक दायित्व (CLND) अधिनियम, 2010 में बदलाव का प्रस्ताव रखा गया है। अब तक इन कानूनों का मौजूदा स्वरूप निजी कंपनियों, अंतरराष्ट्रीय तकनीक प्रदाताओं और उपकरण आपूर्तिकर्ताओं के लिए इस क्षेत्र में प्रवेश को काफी हद तक सीमित करता रहा है।
सरकार का मानना है कि अगर भारत को वर्ष 2047 तक 100 गीगावॉट परमाणु ऊर्जा क्षमता हासिल करनी है, तो केवल सरकारी संसाधनों के भरोसे यह लक्ष्य पूरा करना बेहद मुश्किल होगा। इसके लिए बड़े पैमाने पर पूंजी निवेश, अत्याधुनिक तकनीक और तेज़ निर्माण क्षमता की जरूरत पड़ेगी, जो निजी क्षेत्र की भागीदारी के बिना संभव नहीं है। यही कारण है कि सरकार अब परमाणु ऊर्जा को भी उन क्षेत्रों में शामिल करना चाहती है, जहां पब्लिक-प्राइवेट पार्टनरशिप के जरिए तेजी से विकास किया जा सके।
यह विधेयक फरवरी में पेश किए गए केंद्रीय बजट से भी सीधे जुड़ा हुआ है। वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने अपने बजट भाषण में परमाणु ऊर्जा मिशन की घोषणा की थी, जिसका मकसद देश में स्वच्छ और स्थायी ऊर्जा उत्पादन को बढ़ावा देना है। अब मंत्रिमंडल की मंजूरी के बाद इस मिशन को जमीन पर उतारने की दिशा में ठोस कदम उठते दिख रहे हैं। ‘सतत दोहन एवं परमाणु ऊर्जा उन्नति (शांति) विधेयक’ को संसद के मौजूदा सत्र के विधायी एजेंडे में शामिल किया जाना इसी रणनीति का हिस्सा है।
इससे पहले जून महीने में गठित एक उच्च-स्तरीय विशेषज्ञ पैनल ने भी अपनी रिपोर्ट में साफ कहा था कि मौजूदा परमाणु ऊर्जा अधिनियम निजी क्षेत्र और यहां तक कि राज्य सरकारों की भागीदारी की अनुमति नहीं देता। पैनल का कहना था कि अगर भारत को तय समयसीमा में 100 गीगावॉट परमाणु क्षमता जोड़नी है, तो उसे तकनीकी, वित्तीय और मानव संसाधनों के बड़े पूल की जरूरत होगी, जो निजी क्षेत्र के सहयोग के बिना संभव नहीं है।
निजी कंपनियों की भागीदारी से सरकार को कई फायदे मिलने की उम्मीद है। इससे परमाणु ऊर्जा संयंत्रों की स्थापना के लिए जरूरी पूंजी उपलब्ध होगी, परियोजनाओं के निर्माण में दक्षता बढ़ेगी और नई तकनीकों का उपयोग आसान होगा। इसके साथ ही, प्रतिस्पर्धा बढ़ने से लागत नियंत्रण और समयबद्ध परियोजना निष्पादन में भी सुधार हो सकता है।
हालांकि, निजी और विदेशी कंपनियों के सामने अभी भी कुछ चिंताएं बनी हुई हैं। खास तौर पर परमाणु क्षति के लिए नागरिक दायित्व अधिनियम के तहत दायित्व की सीमा को लेकर अनिश्चितता निवेशकों को सतर्क बनाती रही है। आपूर्तिकर्ताओं और संभावित परिचालकों को आशंका है कि किसी दुर्घटना की स्थिति में उन पर भारी कानूनी और वित्तीय जिम्मेदारी आ सकती है। यही वजह है कि विधेयक के जरिए इस दायित्व ढांचे को स्पष्ट और व्यावहारिक बनाने की कोशिश की जा रही है।
स्पष्ट है कि यह फैसला भारत के ऊर्जा भविष्य के लिए बेहद अहम माना जा रहा है। एक तरफ यह देश को स्वच्छ और टिकाऊ ऊर्जा की दिशा में आगे बढ़ाएगा, वहीं दूसरी ओर निजी निवेश को आकर्षित कर परमाणु ऊर्जा क्षेत्र में नई रफ्तार लाने का काम करेगा। अगर प्रस्तावित संशोधनों को संसद की मंजूरी मिल जाती है, तो आने वाले वर्षों में भारत का परमाणु ऊर्जा परिदृश्य पूरी तरह बदलता हुआ दिखाई दे सकता है।