प्रधानमंत्री मत्स्य संपदा योजना (PMMSY) की शुरुआत 10 सितंबर 2020 को की गई थी। इसका मकसद था कि मत्स्य पालन क्षेत्र को आधुनिक और टिकाऊ बनाया जाए, जिससे किसानों और मछुआरों की आय बढ़े और देश की अर्थव्यवस्था को नई मजबूती मिले। यह योजना मत्स्य पालन, पशुपालन और डेयरी मंत्रालय के अंतर्गत चलाई जाती है। शुरुआत में इसे 20,050 करोड़ रुपये के बड़े निवेश के साथ मंजूरी दी गई थी, जिसमें केंद्र, राज्य सरकारों और लाभार्थियों – तीनों का योगदान शामिल रहा।
पांच साल की उपलब्धियां
पिछले पांच वर्षों में पीएमएमएसवाई ने ऐसे परिणाम दिए हैं, जो उम्मीदों से कहीं अधिक रहे। सरकारी आंकड़ों के अनुसार, जुलाई 2025 तक 21,274 करोड़ रुपये की परियोजनाओं को मंजूरी दी जा चुकी है। यानी यह साफ है कि योजना केवल कागज़ों तक सीमित नहीं रही, बल्कि ज़मीनी स्तर पर भी मत्स्य पालन को नई दिशा देने में सफल रही।
मत्स्य उत्पादन में नया रिकॉर्ड
भारत पहले से ही दुनिया के बड़े मत्स्य उत्पादक देशों में गिना जाता है, लेकिन पीएमएमएसवाई ने इसे और आगे बढ़ा दिया। वित्त वर्ष 2024-25 में देश ने 195 लाख टन मत्स्य उत्पादन का रिकॉर्ड हासिल किया। इससे भारत विश्व का दूसरा सबसे बड़ा मत्स्य उत्पादक देश बन गया। खास बात यह रही कि उत्पादकता भी तेज़ी से बढ़ी। फरवरी 2025 तक राष्ट्रीय औसत 3 टन प्रति हेक्टेयर से बढ़कर 4.7 टन प्रति हेक्टेयर तक पहुंच गया।
रोजगार और महिलाओं का सशक्तिकरण
योजना का असर केवल उत्पादन तक सीमित नहीं रहा। रोजगार सृजन में भी यह योजना एक मील का पत्थर साबित हुई। दिसंबर 2024 तक 55 लाख रोजगार के लक्ष्य के मुकाबले 58 लाख से भी अधिक रोजगार पैदा हो चुके थे। इतना ही नहीं, महिलाओं के सशक्तिकरण पर भी खास ध्यान दिया गया। अब तक 99,000 से अधिक महिलाओं को प्रशिक्षण और संसाधन देकर मत्स्य पालन से जोड़ा गया है। इससे न केवल उनकी आर्थिक स्थिति मजबूत हुई बल्कि समाज में उनकी भूमिका भी बदली।
टिकाऊ विकास और जलवायु के प्रति सजगता
मत्स्य पालन का संबंध सीधे तौर पर जलवायु और पर्यावरण से जुड़ा है। पीएमएमएसवाई की खासियत यह रही कि इसमें टिकाऊ और आधुनिक तकनीकों को प्राथमिकता दी गई। तटीय इलाकों में रहने वाले लोगों को जलवायु संकट से निपटने के साधन दिए गए। इससे उत्पादन बढ़ा, नुकसान घटा और मत्स्य पालन का भविष्य सुरक्षित हुआ।
बाजार और लॉजिस्टिक्स को नई दिशा
मत्स्य पालन केवल उत्पादन तक सीमित नहीं है, बल्कि इसका बड़ा हिस्सा बाजार और सप्लाई चेन से जुड़ा है। पीएमएमएसवाई ने इस कमी को भी दूर किया। आधुनिक कोल्ड स्टोरेज, ट्रांसपोर्ट और प्रोसेसिंग सुविधाओं को बढ़ावा देकर उत्पादकों को सीधे उपभोक्ताओं से जोड़ा गया। इससे किसानों और मछुआरों की आय बढ़ी और ग्राहकों तक गुणवत्तापूर्ण मछली उत्पाद आसानी से पहुंचने लगे।
क्लस्टर आधारित विकास मॉडल
योजना की एक और महत्वपूर्ण उपलब्धि रही क्लस्टर-बेस्ड डेवलपमेंट मॉडल। इसके तहत छोटे मत्स्य पालकों और उद्यमियों को एक साथ लाकर साझा संसाधन उपलब्ध कराए गए। इससे स्थानीय स्तर पर आर्थिक गतिविधियां तेज हुईं और छोटे स्तर के उद्यमियों को भी आधुनिक तकनीक और प्रशिक्षण का लाभ मिला।
विदेशी मुद्रा और गुणवत्ता में सुधार
भारत का मत्स्य निर्यात पहले से ही मज़बूत रहा है। पीएमएमएसवाई ने इसे और बढ़ावा दिया। उत्पादन और निर्यात दोनों में तेज़ी आने से विदेशी मुद्रा अर्जन में इज़ाफा हुआ। साथ ही, इंफ्रास्ट्रक्चर और नई तकनीक के इस्तेमाल से गुणवत्ता मानकों में भी सुधार हुआ, जिससे भारतीय मछली उत्पादों की मांग अंतरराष्ट्रीय बाज़ार में और बढ़ गई।
पांच साल में बदलाव की कहानी
केवल पांच वर्षों में पीएमएमएसवाई ने जिस तरह मत्स्य पालन क्षेत्र को बदला, वह अपने आप में एक मिसाल है। 195 लाख टन उत्पादन, 58 लाख रोजगार और महिलाओं का व्यापक सशक्तिकरण – ये सब इसकी झलकियां हैं। साथ ही, जलवायु-अनुकूल और टिकाऊ वैल्यू चेन का निर्माण इस योजना को लंबे समय तक प्रासंगिक बनाएगा।
नीली क्रांति का नया अध्याय
कुल मिलाकर, प्रधानमंत्री मत्स्य संपदा योजना ने भारत में “नीली क्रांति” को नई रफ्तार दी है। यह योजना केवल मछली उत्पादन तक सीमित नहीं, बल्कि सामाजिक और आर्थिक बदलाव की भी कहानी है। आने वाले समय में यह देश को आर्थिक मजबूती, रोजगार के नए अवसर और टिकाऊ विकास के रास्ते पर और आगे ले जाएगी।