जीवन में आने वाली मुश्किलें अक्सर इंसान को तोड़ देती हैं, लेकिन कुछ लोग इन्हें सीढ़ी बनाकर सफलता की नई ऊंचाइयों तक पहुंच जाते हैं। विवेक रैना की कहानी भी ऐसी ही है। कश्मीर से विस्थापित होकर एक छोटे से कमरे में गुज़रा बचपन, 10 हजार रुपये की शुरुआती नौकरी और आज 486 करोड़ रुपये का कारोबार – यह सफर बताता है कि हौसले और मेहनत से सब कुछ संभव है।
बचपन का संकट: घर छोड़ना पड़ा
वर्ष 1990 में जब कश्मीर आतंकवाद की चपेट में आया, तब 13 साल के विवेक रैना और उनका परिवार मजबूरी में श्रीनगर का अपना 14 कमरों वाला पुश्तैनी घर छोड़कर जम्मू आ गया। वहां उन्हें किराए के एक छोटे कमरे में शरण लेनी पड़ी। यह बदलाव परिवार के लिए बड़ा झटका था। पिता सामुदायिक स्वास्थ्य अधिकारी थे और कठिन हालात में भी उन्होंने बच्चों की पढ़ाई बाधित नहीं होने दी। जबकि माता-पिता इस विस्थापन को पीड़ा की तरह महसूस कर रहे थे, विवेक ने इसे एक चुनौती और रोमांच की तरह देखा।
शिक्षा में संघर्ष और नए रास्ते
विस्थापन के कारण पढ़ाई में छह महीने का नुकसान हुआ, लेकिन विवेक पीछे नहीं हटे। 1994 में उन्होंने 12वीं की पढ़ाई पूरी की। उस दौर में कश्मीरी पंडित समाज में आम धारणा थी कि बच्चों को डॉक्टर या इंजीनियर बनना चाहिए। पिता को खुश करने के लिए विवेक ने इलेक्ट्रॉनिक्स और कम्युनिकेशन इंजीनियरिंग में डिप्लोमा किया। मगर अपनी रुचि को बनाए रखने के लिए इंग्लिश लिटरेचर में बीए भी किया। बाद में पुणे यूनिवर्सिटी से मार्केटिंग में एमबीए कर उन्होंने खुद को नए अवसरों के लिए तैयार किया।
10,000 रुपये की सैलरी से शुरुआत
पढ़ाई पूरी करने के बाद विवेक की पहली नौकरी हैथवे (Hathway) कंपनी में लगी। वहां वे छोटे दफ्तरों में ब्रॉडबैंड कनेक्शन बेचते थे और उनकी सैलरी मात्र 10 हजा रुपये थी। यही से उनके प्रोफेशनल करियर की नींव पड़ी। इसके बाद उन्होंने रिलायंस, पेसनेट और डिजिकेबल जैसी कंपनियों में काम किया और इंटरनेट इंडस्ट्री का गहराई से अनुभव हासिल किया। यही अनुभव आगे चलकर उनके उद्यमी बनने की राह आसान बनाने वाला साबित हुआ।
एक विचार से खड़ी हुई कंपनी
साल 2015 में विवेक की मुलाकात कुछ बुल्गेरियाई उद्यमियों से हुई, जो भारत में बिज़नेस करने के अवसर तलाश रहे थे। इसी मुलाकात से एक्साइटेल (Excitel) की नींव रखी गई। विवेक अपने सहयोगियों के साथ मिलकर इसके सह-संस्थापक बने। उन्होंने नेवेक वेंचर्स से 12 करोड़ रुपये का निवेश जुटाया और लक्ष्य रखा कि पहले साल में 50 हजार कनेक्शन देंगे। लेकिन लक्ष्य को पार करते हुए उन्होंने 1 लाख कनेक्शन हासिल किए और 5 करोड़ रुपये का टर्नओवर बनाया। यह कंपनी इंटरनेट सर्विस प्रोवाइडर के रूप में तेज़ी से लोकप्रिय होने लगी।
486 करोड़ रुपये का कारोबार
आज एक्साइटेल देश के 30 से ज़्यादा शहरों में मौजूद है। दिल्ली, उत्तर प्रदेश, हरियाणा, बिहार, महाराष्ट्र, कर्नाटक, तेलंगाना और आंध्र प्रदेश में इसने मज़बूत उपस्थिति दर्ज की है। कंपनी का टर्नओवर वित्त वर्ष 2019-20 में 139 करोड़ रुपये था, जो वित्त वर्ष 2023-24 में बढ़कर 486 करोड़ रुपये हो गया। लगभग 3 हजार कर्मचारी यहां काम करते हैं। लगातार ग्रोथ हासिल करने वाली यह कंपनी अब देश के बड़े इंटरनेट सर्विस प्रोवाइडर्स में गिनी जाती है।
निजी जीवन और जड़ों से जुड़ाव
सफलता हासिल करने के बाद भी विवेक रैना अपनी जड़ों को नहीं भूले। साल 2008 में उन्होंने शैली रैना से शादी की और अब उनकी एक बेटी है। वे दिल्ली में अपने आलीशान घर में रहते हैं, लेकिन उन्हें आज भी श्रीनगर का अपना पुश्तैनी घर याद आता है। 2011 में उन्होंने वहां एक मकान खरीदा, जहां वे अक्सर जाते रहते हैं। उनके लिए यह स्थान आज भी सबसे प्रिय है।
युवाओं के लिए सबक
विवेक रैना की कहानी यह दिखाती है कि परिस्थितियां चाहे कितनी भी कठिन क्यों न हों, अगर इंसान हार न माने तो वह अपनी मंज़िल पा सकता है। विस्थापन, आर्थिक तंगी और छोटे से करियर की शुरुआत से गुजरकर उन्होंने इंटरनेट इंडस्ट्री में बड़ा साम्राज्य खड़ा किया। आज उनका सफर उन सभी युवाओं के लिए प्रेरणा है जो कठिनाइयों के बावजूद अपने सपनों को सच करना चाहते हैं। विवेक की कहानी साबित करती है कि सफलता का रास्ता कभी आसान नहीं होता, लेकिन संघर्ष और दृढ़ता से कोई भी इंसान अपना मुकाम हासिल कर सकता है। यह सिर्फ एक बिज़नेस सक्सेस स्टोरी नहीं, बल्कि जज़्बे और आत्मविश्वास की मिसाल है।