अमेरिका द्वारा भारतीय वस्तुओं पर 50 फीसदी शुल्क लगाए जाने के बाद निर्यातक संगठनों में गहरी चिंता है। इस फैसले से भारतीय निर्यात महंगा हो गया है और अमेरिकी बाज़ार में प्रतिस्पर्धा बनाए रखना मुश्किल हो रहा है। इसी चुनौती को लेकर आज प्रमुख निर्यात संगठनों ने भारतीय रिज़र्व बैंक (RBI) के वरिष्ठ अधिकारियों से मुलाकात की और राहत उपायों की मांग रखी।
निर्यातकों की मुख्य मांगें
निर्यात संगठनों ने आरबीआई से साफ कहा कि मौजूदा हालात में कारोबार बचाने के लिए उन्हें तुरंत सहूलियतें दी जानी चाहिए। उनकी प्रमुख मांगों में शामिल हैं:
– ऋण भुगतान पर एक साल का मॉरेटोरियम यानी स्थगन
– एनपीए मानदंडों में ढील ताकि कंपनियां डिफॉल्टर घोषित न हों
– बिना जुर्माना कर्ज की देय तिथि आगे बढ़ाना
निर्यातकों का कहना है कि जब तक शुल्क का असर थोड़ा कम नहीं हो जाता, तब तक इन सुविधाओं से उन्हें राहत मिलेगी और कारोबार चलाना आसान होगा।
प्राथमिकता वाले ऋण की नई श्रेणी
निर्यातकों ने एक और अहम मांग रखी। उन्होंने कहा कि प्राथमिकता वाले ऋण क्षेत्र (Priority Sector Lending) में निर्यात को एक अलग उप-श्रेणी के रूप में रखा जाए। उनका तर्क है कि जीडीपी में निर्यात का 20 फीसदी से ज़्यादा योगदान है, लेकिन इसके बावजूद बैंकों से निर्यात क्षेत्र को पर्याप्त ऋण नहीं मिल पा रहा। अगर इसे उप-श्रेणी बनाया जाता है तो बैंकों को अधिक ऋण देने का स्पष्ट निर्देश मिलेगा और निर्यातकों को पूंजी की समस्या से राहत मिलेगी।
रुपये की गिरावट पर राय
निर्यात संगठनों ने यह भी कहा कि रुपये को बाज़ार की ताकतों के हिसाब से गिरने दिया जाए। उनका मानना है कि अगर रुपया थोड़ा और कमजोर होगा तो निर्यातकों को विदेशी बाज़ारों में कुछ हद तक राहत मिलेगी और अमेरिकी शुल्क का आंशिक असर कम होगा। हालांकि, उन्होंने यह भी माना कि विनिमय दर की जटिलताओं और अन्य मुद्राओं की कमजोरी के चलते फायदा उतना नहीं मिल पा रहा, जितनी उम्मीद थी।
उद्योग जगत की आवाज़
फेडरेशन ऑफ इंडियन एक्सपोर्ट ऑर्गेनाइजेशंस (FIEO) के महानिदेशक अजय सहाय ने कहा कि निर्यातक दो बड़ी बातों पर जोर दे रहे हैं – पहली, अमेरिकी शुल्क से राहत और दूसरी, बैंकिंग से जुड़े महत्त्वपूर्ण मुद्दों का समाधान। उनके अनुसार, जो कंपनियां अमेरिकी बाज़ार पर निर्भर हैं, वे फिलहाल सबसे कठिन स्थिति से गुजर रही हैं। भारतीय इंजीनियरिंग निर्यात संवर्धन परिषद (EEPC) के चेयरमैन पंकज चड्ढा ने बैठक में सुझाव दिया कि एमएसएमई निर्यातकों को विशेष ब्याज अनुदान योजना (Interest Subsidy) दी जाए। इससे वे विदेशी प्रतिस्पर्धियों के मुकाबले टिक पाएंगे।
बैठक में कौन-कौन शामिल रहा
आरबीआई अधिकारियों के साथ हुई इस चर्चा में फियो, सीआईआई, फिक्की, एसोचैम, महाराष्ट्र चैंबर ऑफ कॉमर्स एंड इंडस्ट्री जैसे बड़े संगठन शामिल रहे। सभी ने मिलकर यह संदेश दिया कि मौजूदा हालात निर्यातकों के लिए चुनौतीपूर्ण हैं और उन्हें तत्काल सहारा देने की जरूरत है।
भू-राजनीतिक हालात और नई चुनौतियां
बैठक में यह मुद्दा भी उठा कि सिर्फ अमेरिकी शुल्क ही समस्या नहीं है। मौजूदा भू-राजनीतिक स्थिति, वैश्विक मांग में उतार-चढ़ाव और बढ़ती आयात लागत भी निर्यातकों पर बोझ डाल रही है। रुपया भले ही कमजोर हुआ है, लेकिन यूरो और युआन जैसी अन्य मुद्राओं में भी गिरावट आई है, जिससे भारतीय निर्यातकों को खास फायदा नहीं मिल रहा।
सरकार और आरबीआई की भूमिका
फिलहाल आरबीआई ने निर्यातकों की बात गंभीरता से सुनी है लेकिन कोई ठोस घोषणा नहीं की है। वहीं, वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण पहले ही कह चुकी हैं कि सरकार निर्यातकों को सहारा देने के लिए व्यापक पैकेज पर काम कर रही है। पिछले महीने आरबीआई गवर्नर संजय मल्होत्रा ने भी कहा था कि अगर शुल्क का असर भारतीय अर्थव्यवस्था पर गहराई से पड़ता है, तो केंद्रीय बैंक आवश्यक कदम उठाएगा।
आगे का रास्ता
स्पष्ट है कि अमेरिकी शुल्क ने भारतीय निर्यातकों के सामने नई मुश्किलें खड़ी कर दी हैं। अब उनकी नज़रें सरकार और आरबीआई दोनों पर टिकी हैं। अगर समय रहते कर्ज़ में राहत, ब्याज सब्सिडी और ऋण आवंटन में सुधार जैसे कदम उठाए जाते हैं, तो निर्यात क्षेत्र इस संकट से बाहर निकल सकता है। वरना वैश्विक बाज़ार में भारतीय कंपनियों की स्थिति और कमजोर हो सकती है।