भारत की अर्थव्यवस्था की रीढ़ माने जाने वाले सूक्ष्म, लघु और मध्यम उद्यमों में मझोले उद्योगों की भूमिका बेहद अहम रही है। यह क्षेत्र रोजगार के अवसर बढ़ाने, नवाचार को बढ़ावा देने और घरेलू उत्पादन को मजबूती देने में महत्वपूर्ण योगदान देता है। हाल के सालों में वैश्विक प्रतिस्पर्धा डिजिटल बदलाव और आर्थिक असंतुलन के चलते मझोले उद्योगों को कई चुनौतियों का सामना करना पड़ा है। इसी पृष्ठभूमि में नीति आयोग ने मझोले उद्योगों को सशक्त बनाने के लिए एक बड़ी और दूरदर्शी पहल की है।

नीति आयोग ने अपने हालिया प्रस्ताव में यह स्पष्ट किया है कि मझोले उद्योगों को विकास की दौड़ में बनाए रखने के लिए उन्हें दो मुख्य क्षेत्रों में मदद की जरूरत है। कार्यशील पूंजी और तकनीकी सुधार। आयोग का मानना है कि जब तक इन उद्योगों को समय पर वित्तीय सहायता नहीं मिलेगी और वे आधुनिक तकनीक को नहीं अपनाएंगे तब तक वे प्रतिस्पर्धा में पीछे रह जाएंगे।
कार्यशील पूंजी की समस्या मझोले उद्योगों के लिए कोई नई बात नहीं है। अधिकांश यूनिट्स को बैंकों और वित्तीय संस्थानों से ऋण प्राप्त करने में कठिनाई होती है, जिससे उनका उत्पादन प्रभावित होता है। नीति आयोग का सुझाव है कि इन उद्योगों के लिए एक साधारण और तेज़ क्रेडिट व्यवस्था विकसित की जाए ताकि उन्हें आवश्यक धनराशि समय पर उपलब्ध हो सके। इसके लिए डिजिटल प्लेटफॉर्म और एकल-विंडो सिस्टम का उपयोग बढ़ाने पर बल दिया गया है।
दूसरा महत्वपूर्ण पहलू है तकनीकी सुधार। आज के दौर में उद्योगों को वैश्विक स्तर पर प्रतिस्पर्धी बनने के लिए स्वचालन, कृत्रिम बुद्धिमत्ता, डेटा एनालिटिक्स और आधुनिक उत्पादन तकनीकों को अपनाना जरूरी है। लेकिन मझोले उद्योगों के पास इसके लिए आवश्यक संसाधन और विशेषज्ञता की कमी है। नीति आयोग ने सुझाव दिया है कि सरकार तकनीकी प्रशिक्षण, रिसर्च एवं डेवलपमेंट केंद्रों की स्थापना करें, जिससे इन उद्योगों को नई तकनीक को अपनाने में मदद मिल सके।
नीति आयोग का यह भी मानना है कि केंद्र और राज्य सरकारों के बीच बेहतर समन्वय स्थापित कर इन योजनाओं को जमीनी स्तर पर सफलतापूर्वक लागू किया जा सकता है। साथ ही निजी क्षेत्र की भागीदारी और पब्लिक-प्राइवेट पार्टनरशिप मॉडल को भी बढ़ावा देने की आवश्यकता है।
इसी के साथ यह पहल मझोले उद्योगों के लिए एक नई उम्मीद लेकर आई है। अगर इसे प्रभावी रूप से लागू किया जाए, तो यह न केवल इन उद्योगों को पुनर्जीवित करेगा बल्कि देश की आर्थिक प्रगति में भी अहम योगदान देगा। नीति आयोग की यह सोच दूरदर्शी और व्यवहारिक दोनों है, जो आने वाले सालों में भारत को एक आत्मनिर्भर और औद्योगिक दृष्टि से मजबूत राष्ट्र बनने की दिशा में अग्रसर कर सकती है।