भारत के तेल कारोबार में पिछले चार सालों में जबरदस्त बदलाव आया है। साल 2021 में जहां रूस से भारत का कच्चा तेल आयात सिर्फ 2 फीसदी था, वहीं 2025 आते-आते यह बढ़कर 32 फीसदी तक पहुंच गया। सस्ते रूसी तेल ने भारत को बड़ी बचत का मौका दिया, लेकिन इस मुनाफे का फायदा बराबर नहीं बंटा। निजी रिफाइनरियां मालामाल हो गईं, जबकि सरकारी कंपनियों को मजबूरी में सीमित मुनाफे से ही संतोष करना पड़ा।
रूस से आयात में जबरदस्त उछाल
– फरवरी 2022 में रूस-यूक्रेन युद्ध शुरू होने के बाद भारत ने रूस से कच्चे तेल की खरीद कई गुना बढ़ा दी।
– 2021 में रूस से भारत का कच्चे तेल का हिस्सा सिर्फ 2% था।
– अगस्त 2025 तक यह हिस्सा बढ़कर 32% हो चुका है।
– सिर्फ जून 2025 में ही भारत के कुल कच्चे तेल आयात में 45% तेल रूस से आया।
इस बढ़ते आयात की वजह सीधी है – रूसी तेल बाकी देशों की तुलना में सस्ता है। रूस का तेल दुबई बेंचमार्क से करीब 2-3 डॉलर और सऊदी या यूएई ग्रेड से 5-6 डॉलर सस्ता मिल रहा है।
निजी रिफाइनरियों की सबसे बड़ी हिस्सेदारी
भारत में सात बड़ी रिफाइनिंग कंपनियां हैं, लेकिन रूस से सस्ते तेल का सबसे ज्यादा फायदा रिलायंस इंडस्ट्रीज और नायरा एनर्जी को मिला। रोजाना रूस से आने वाले 18 लाख बैरल कच्चे तेल में से लगभग 8.81 लाख बैरल सिर्फ इन्हीं दो कंपनियों ने खरीदे। 2025 में अब तक रूस से जितना भी तेल भारत में आया, उसका करीब आधा हिस्सा रिलायंस और नायरा के पास गया। नायरा एनर्जी को रूसी कंपनी रोसनेफ्ट संचालित करती है, जबकि रिलायंस की जामनगर रिफाइनरी दुनिया की सबसे बड़ी रिफाइनरियों में से एक है।
सरकारी कंपनियों को क्यों हुआ कम फायदा
जब निजी कंपनियां तेल आयात करके अच्छा मुनाफा कमा रही हैं, वहीं सरकारी कंपनियों — इंडियन ऑयल (IOC), भारत पेट्रोलियम (BPCL) और हिंदुस्तान पेट्रोलियम (HPCL) की स्थिति अलग रही। सरकार ने इन कंपनियों को तय कीमतों पर पेट्रोल, डीजल और गैस बेचने की बाध्यता दी। जबकि निजी रिफाइनरियां अंतरराष्ट्रीय बाजार में उच्च दामों पर ईंधन बेचकर मुनाफा कमा रही थीं। सरकारी कंपनियां घरेलू बाजार में सब्सिडी वाली कीमतों पर उत्पाद बेचने को मजबूर रहीं। इस वजह से रूस से मिले सस्ते तेल का बड़ा फायदा सरकारी कंपनियों तक नहीं पहुंच पाया।
रिलायंस और नायरा की निर्यात रणनीति
रिलायंस और नायरा ने सिर्फ सस्ता तेल आयात नहीं किया, बल्कि उसका समझदारी से इस्तेमाल भी किया।
-रिलायंस ने अपने उत्पादन का 67% निर्यात किया,
– रोजाना लगभग 9.14 लाख बैरल डीजल, जेट ईंधन और अन्य उत्पाद यूरोप और एशिया को बेचे,
– नायरा ने भी रोजाना 1.18 लाख बैरल का निर्यात किया,
– दोनों कंपनियों ने ज्यादातर रूसी तेल को रिफाइन करके यूरोप, अमेरिका और जी7+ देशों को ऊंची कीमतों पर बेचा।
फिनलैंड की संस्था सीआरईए की एक रिपोर्ट बताती है कि जी7+ देशों ने भारत और तुर्की की 6 रिफाइनरियों से 18 अरब यूरो के ईंधन आयात किए, जिसमें से करीब 9 अरब यूरो के उत्पाद रूसी तेल से बने थे। इनमें रिलायंस की जामनगर रिफाइनरी शीर्ष पर रही।
अंतरराष्ट्रीय दबाव और अमेरिकी प्रतिक्रिया
रूस-यूक्रेन युद्ध के बाद पश्चिमी देशों ने रूस पर कई तरह के आर्थिक प्रतिबंध लगाए। लेकिन दिलचस्प बात यह है कि रूसी तेल पर भारत के लिए कोई सीधा प्रतिबंध नहीं था। अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडन की सरकार ने भी शुरुआती दिनों में भारत की तेल खरीद का समर्थन किया था। हालांकि, हाल में अमेरिकी वित्त मंत्री स्कॉट बेसेंट ने दावा किया कि भारतीय कंपनियों ने इन सौदों से करीब 16 अरब डॉलर का मुनाफा कमाया। उन्होंने भारत पर आरोप लगाया कि सस्ते तेल को रिफाइन कर ऊंची कीमतों पर बेचना मुनाफाखोरी है।
भारत की कुल बचत और बढ़ते अवसर
– जनवरी 2022 से जून 2025 के बीच भारत ने रूस से सस्ता तेल खरीदकर करीब 15 अरब डॉलर की बचत की।
– 2023 में ही भारतीय कंपनियों ने लगभग 7 अरब डॉलर की बचत की।
– लेकिन इस बचत का बड़ा हिस्सा रिलायंस और नायरा जैसी निजी कंपनियों के पास गया।
– सरकारी कंपनियों को अपेक्षाकृत बहुत कम फायदा मिला।
तेल आयात से निर्यात तक का समीकरण
भारत ने न सिर्फ रूस से सस्ता तेल खरीदा, बल्कि उसे रिफाइन करके दुनिया के बाजार में बेचा भी। भारत के कुल ईंधन निर्यात में 81 फीसदी हिस्सेदारी सिर्फ रिलायंस और नायरा की है। रिलायंस की जामनगर रिफाइनरी ने 2025 में 7.46 लाख बैरल प्रतिदिन रूसी तेल का आयात किया। रोसनेफ्ट से रिलायंस का 5 लाख बैरल प्रतिदिन का विशेष अनुबंध भी 2025 में हुआ। ओएनजीसी की मंगलौर रिफाइनरी ने रोजाना 1.14 लाख बैरल का निर्यात किया।
आगे की चुनौतियां
हालांकि अभी रूसी तेल भारत के लिए लाभकारी सौदा है, लेकिन आने वाले समय में चुनौतियां बढ़ सकती हैं:-
-पश्चिमी देशों का दबाव बढ़ सकता है।
– रूस पर नए प्रतिबंध लगने की स्थिति में भारत की रणनीति बदलनी पड़ सकती है।
– घरेलू बाजार में सरकारी रिफाइनरियों की मुनाफे की समस्या बनी रह सकती है।
भारत की रणनीति
रूस से सस्ते तेल ने भारत को ऊर्जा सुरक्षा और बड़ी बचत दोनों दीं। लेकिन इस मुनाफे का सबसे ज्यादा फायदा निजी कंपनियों को हुआ। सरकारी रिफाइनरियों को सब्सिडी और तय कीमतों की नीतियों के चलते सीमित लाभ ही मिल पाया। अगर भारत को इस मौके का पूरा फायदा उठाना है, तो उसे निर्यात रणनीति, घरेलू मूल्य निर्धारण और सरकारी-निजी कंपनियों के बीच संतुलन पर नए सिरे से काम करना होगा।