भारत में सड़क विकास के साथ-साथ अब वन्यजीवों की सुरक्षा पर भी गंभीरता से ध्यान दिया जाने लगा है। इसी कड़ी में राष्ट्रीय राजमार्ग प्राधिकरण (NHAI) ने एक अनोखी और बेहद अहम पहल की है। मध्य प्रदेश के भोपाल–जबलपुर राष्ट्रीय राजमार्ग पर पहली बार Red Table Top Marking लागू की गई है, जिसका उद्देश्य तेज़ रफ्तार वाहनों को अपने आप धीमा करना और सड़क पार करने वाले जानवरों की जान बचाना है। यह प्रयोग न सिर्फ देश में बल्कि वन्यजीव संरक्षण के लिहाज से एक नया उदाहरण माना जा रहा है।
क्या है रेड टेबल-टॉप मार्किंग?
रेड टेबल-टॉप मार्किंग दरअसल सड़क पर बनाई गई एक विशेष लाल रंग की उभरी हुई सतह है। इसकी मोटाई करीब 5 मिलीमीटर रखी गई है, जिससे वाहन गुजरते समय हल्का झटका महसूस करते हैं और चालक अनजाने में ही स्पीड कम कर देता है। यह मार्किंग सामान्य स्पीड ब्रेकर की तरह नहीं है, बल्कि यह दिखने में स्पष्ट चेतावनी और तकनीकी समाधान दोनों का काम करती है। लाल रंग दूर से ही ड्राइवर का ध्यान खींचता है और खतरे वाले क्षेत्र का संकेत देता है।
क्यों ज़रूरी हो गया यह कदम?
इस पहल की जरूरत तब और महसूस हुई जब हाल ही में भोपाल–जबलपुर हाईवे पर एक दर्दनाक हादसे में चीते के शावक की सड़क दुर्घटना में मौत हो गई। यह घटना केवल एक हादसा नहीं थी, बल्कि इस बात का संकेत थी कि तेज़ रफ्तार सड़कें वन्यजीवों के लिए कितना बड़ा खतरा बन चुकी हैं। आंकड़े बताते हैं कि पिछले दो वर्षों में मध्य प्रदेश में सैकड़ों वन्यजीव सड़क हादसों का शिकार हुए हैं। ऐसे में सरकार और सड़क एजेंसियों के लिए तुरंत ठोस कदम उठाना अनिवार्य हो गया था।
कैसे काम करती है यह नई व्यवस्था?
रेड टेबल-टॉप मार्किंग खासतौर पर उन इलाकों में की गई है, जहां जानवरों की आवाजाही ज्यादा रहती है। यह क्षेत्र बाघ अभयारण्य और वन क्षेत्रों के पास स्थित हैं। जैसे ही वाहन इस लाल सतह पर पहुंचता है, गाड़ी की गति स्वाभाविक रूप से कम हो जाती है। इससे ड्राइवर को आसपास देखने का समय मिलता है और जानवरों के अचानक सड़क पर आने की स्थिति में दुर्घटना की आशंका कम हो जाती है। यह तरीका चेतावनी बोर्ड से कहीं ज्यादा प्रभावी साबित हो सकता है।
बड़े इन्फ्रास्ट्रक्चर प्रोजेक्ट का हिस्सा
यह पहल केवल एक छोटा प्रयोग नहीं है, बल्कि लगभग 122 करोड़ रुपये की बड़ी परियोजना का हिस्सा है। इस परियोजना के तहत सड़क को चौड़ा किया जा रहा है, आधुनिक सुविधाएं जोड़ी जा रही हैं और साथ ही वन्यजीवों की सुरक्षा को प्राथमिकता दी जा रही है। इसमें जानवरों के लिए अंडरपास, सड़क किनारे मजबूत फेंसिंग, स्पीड मॉनिटरिंग कैमरे और संकेतक बोर्ड भी शामिल हैं। इन सभी उपायों का उद्देश्य इंसान और वन्यजीवों के बीच टकराव को न्यूनतम करना है।
विकास और पर्यावरण का संतुलन
अक्सर विकास और पर्यावरण को एक-दूसरे का विरोधी माना जाता है, लेकिन यह पहल साबित करती है कि दोनों साथ-साथ चल सकते हैं। आधुनिक सड़कें जरूरी हैं, लेकिन उनके निर्माण में प्रकृति और जीवों की सुरक्षा को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता। रेड टेबल-टॉप मार्किंग जैसी तकनीकें दिखाती हैं कि थोड़े से नवाचार से बड़े बदलाव लाए जा सकते हैं।
देशभर में लागू हो सकता है मॉडल
अगर भोपाल–जबलपुर हाईवे पर यह प्रयोग सफल रहता है, तो आने वाले समय में इसे देश के अन्य संवेदनशील हाईवे हिस्सों पर भी लागू किया जा सकता है। खासतौर पर उन सड़कों पर, जो जंगलों, अभयारण्यों और राष्ट्रीय उद्यानों से होकर गुजरती हैं। यह मॉडल भारत में सड़क सुरक्षा और वन्यजीव संरक्षण के बीच संतुलन बनाने की दिशा में एक मजबूत कदम साबित हो सकता है।
रेड टेबल-टॉप मार्किंग सड़क पर बना एक लाल निशान नहीं है, बल्कि यह उस सोच का प्रतीक है जिसमें विकास के साथ-साथ प्रकृति की रक्षा भी शामिल है। यह पहल आने वाले समय में भारत को एक ऐसा देश बनाने में मदद कर सकती है, जहां सड़कें इंसानों के लिए साथ में उन बेज़ुबान जानवरों के लिए भी सुरक्षित हों जिनके साथ हम यह धरती साझा करते हैं।