आज देशभर में एक ऐतिहासिक भारत बंद देखने को मिला। यह बंद केंद्र सरकार की “कॉरपोरेट समर्थक और श्रमिक विरोधी” नीतियों के खिलाफ आवाज बुलंद करने के लिए बुलाया गया था। देश की 12 केंद्रीय ट्रेड यूनियनों में से 10 ने मिलकर इस राष्ट्रव्यापी हड़ताल का ऐलान किया था, जिसका असर देश के कई क्षेत्रों में स्पष्ट रूप से देखा गया। करोड़ों मजदूरों की भागीदारी और विभिन्न सेक्टरों में सेवाओं पर पड़े असर ने सरकार और समाज के बीच की दूरी को एक बार फिर उजागर कर दिया।
क्यों हुई हड़ताल?
ट्रेड यूनियनों का आरोप है कि सरकार लगातार श्रमिकों के अधिकारों को कमज़ोर करने की कोशिश कर रही है। यूनियनों का कहना है कि पिछले 10 वर्षों से भारतीय श्रम सम्मेलन नहीं बुलाया गया है, जबकि यह संवाद का सबसे अहम मंच होता है। इसके अलावा सरकार द्वारा लागू की गई चार नई श्रम संहिताएं (Labour Codes) यूनियनों के मुताबिक श्रमिकों के सामूहिक मोलभाव के अधिकार को कम करती हैं, काम के घंटे बढ़ाती हैं और यूनियन की ताकत को कमजोर करती हैं। ये सभी बदलाव कॉरपोरेट सेक्टर को फायदा पहुंचाने के उद्देश्य से किए गए हैं।
17 सूत्रीय मांगें बनीं विरोध का आधार
इस हड़ताल के पीछे यूनियनों की 17 प्रमुख मांगें थीं, जिन्हें पहले ही श्रम मंत्री मनसुख मांडविया को सौंपा जा चुका है। इन मांगों में शामिल हैं –
1 – सभी खाली सरकारी पदों को तत्काल भरना
2 – मनरेगा में मजदूरी और काम के दिन बढ़ाना
3 – शहरी मजदूरों के लिए मनरेगा जैसी योजना लागू करना
4 – सार्वजनिक उपक्रमों का निजीकरण रोकना
5 – ठेका व अस्थायी भर्ती प्रणाली समाप्त करना
6 – गिग और प्लेटफॉर्म वर्करों की सामाजिक सुरक्षा सुनिश्चित करना
7 – ELI स्कीम को वापस लेना, जो यूनियनों के मुताबिक नियोक्ताओं के पक्ष में है।
इसके अलावा यूनियनों ने यह भी आरोप लगाया कि सरकार की आर्थिक नीतियों ने महंगाई को बढ़ाया है, वेतन को रोक दिया है और स्वास्थ्य व शिक्षा पर खर्च में कटौती की गई है।
किन यूनियनों ने दिया समर्थन?
सीटू (CITU), एआईटीयूसी, एचएमएस, इंटक जैसी प्रमुख ट्रेड यूनियनों ने इस बंद का आह्वान किया। इन संगठनों ने दावा किया कि करीब 30 से 40 करोड़ श्रमिकों की भागीदारी हुई। इनकी आवाज खनन, बीमा, बिजली, डाक, दूरसंचार, सार्वजनिक परिवहन, रक्षा और रेलवे जैसे क्षेत्रों तक पहुंची। इसके अलावा बीड़ी मजदूर, आंगनवाड़ी, आशा, मिड-डे मील वर्कर, घरेलू कामगार, हॉकर और वेंडर यूनियनें भी इस बंद में शामिल रहीं।
क्या खुला और क्या हुआ प्रभावित?
स्कूल-कॉलेज – अधिकतर राज्यों ने शैक्षणिक संस्थानों को बंद करने की कोई अधिसूचना नहीं जारी की। इसलिए अधिकतर स्कूल और कॉलेज सामान्य रूप से खुले रहे।
रेल सेवाएं – रेलवे इस बंद का हिस्सा नहीं था, इसलिए अधिकांश ट्रेन सेवाएं सामान्य रहीं, हालांकि कुछ स्थानों पर सुरक्षा कारणों से अतिरिक्त निगरानी रही।
जरूरी सेवाएं – अस्पताल, दवा की दुकानें, बिजली-पानी जैसी आवश्यक सेवाएं सामान्य रूप से चालू रहीं।
स्थानीय बाजार और दुकानें – खुदरा दुकानें और बाजार खुले रहे, लेकिन ग्राहकों की कम उपस्थिति के कारण व्यापार धीमा रहा।
प्रभावित सेवाएं
बैंकिंग और बीमा – ऑल इंडिया बैंक एम्प्लॉईज़ एसोसिएशन से जुड़ी बंगाल शाखा के कर्मचारियों ने हड़ताल में भाग लिया, जिससे कुछ जगहों पर बैंकिंग सेवाएं प्रभावित रहीं। बीमा क्षेत्र में भी सेवाएं बाधित हुईं।
बिजली आपूर्ति – अनुमान के मुताबिक 27 लाख बिजली कर्मचारी हड़ताल में शामिल हुए, जिससे कुछ इलाकों में बिजली की आपूर्ति प्रभावित रही।
कोयला, फैक्ट्रियां और डाक सेवाएं – इन क्षेत्रों में भी कार्य प्रभावित रहा। कई जगहों पर उत्पादन ठप रहा और डाक सेवाओं में देरी देखी गई।सार्वजनिक परिवहन – बस, टैक्सी और कैब सेवाएं कई शहरों में प्रभावित रहीं। सड़कों पर प्रदर्शन और जाम की स्थिति बनी रही, खासकर पिक ऑवर्स में ट्रैफिक डायवर्जन लागू किए गए।
सरकार और यूनियन का रुख
सरकार का कहना है कि वह संवाद के लिए हमेशा तैयार है, लेकिन ट्रेड यूनियनों को भी खुले दृष्टिकोण से बैठना चाहिए। सरकारी सूत्रों के अनुसार, नए श्रम कोड्स को लगभग सभी राज्यों ने स्वीकार कर लिया है, चाहे वे विपक्षी दलों के शासन में हों या एनडीए द्वारा शासित हों। इससे यह समझा जा सकता है कि ये बदलाव केवल राजनीति से प्रेरित नहीं, बल्कि औद्योगिक निवेश के दृष्टिकोण से आवश्यक माने गए हैं। वहीं भारतीय मजदूर संघ (BMS), जो आरएसएस से जुड़ी हुई है, ने हड़ताल में शामिल न होने का निर्णय लिया। BMS ने इसे “राजनीतिक रूप से प्रेरित” करार देते हुए कहा कि वह मजदूरी संहिता और सामाजिक सुरक्षा संहिता का समर्थन करता है, क्योंकि इससे पहली बार गिग और प्लेटफॉर्म वर्कर्स को सुरक्षा मिली है। हालांकि, BMS ने औद्योगिक संबंध संहिता और व्यावसायिक सुरक्षा संहिता में बदलाव का सुझाव सरकार को दिया है।
क्षेत्रीय प्रतिक्रिया: केरल का उदाहरण
केरल के परिवहन मंत्री केबी गणेश कुमार ने स्पष्ट किया कि केरल राज्य सड़क परिवहन निगम (KSRTC) की बसें सामान्य रूप से चलेंगी। हालांकि, राज्य में ट्रेड यूनियनों की सक्रियता के चलते आंशिक रूप से सेवाओं पर असर देखा गया।
बदलाव की शुरुआत
9 जुलाई का भारत बंद केवल एक दिन की हड़ताल नहीं, बल्कि करोड़ों मजदूरों की वेदना और आवाज़ का प्रतीक है। यह दर्शाता है कि भारत का श्रमिक वर्ग केवल दर्शक नहीं, बल्कि निर्णायक भूमिका निभाने की स्थिति में है। सरकार और यूनियनों के बीच संवाद और संतुलन की आवश्यकता पहले से कहीं अधिक बढ़ गई है। यदि इस हड़ताल की आवाज़ को नजरअंदाज किया गया तो आने वाले समय में आंदोलन और गहरा व व्यापक हो सकता है।