झारखंड के खूंटी जिले की दो महिला किसान हैं, बसंती देवी और सीता देवी। जब आज ये दोनों मुस्कुराते हुए अपनी कहानी सुनाती हैं, तो उनकी आंखों की चमक और आत्मविश्वास में एक नई किसान क्रांति की झलक दिखाई देते हैं। कभी ये वही बेचारी महिलाएं थीं जो गरीबी और संसाधनों की कमी के कारण अपनी सब्जियां और मशरूम कम दामों में बेचने को मजबूर थीं। लेकिन अब तकनीक ने उनकी मेहनत को सही पहचान और अच्छी कीमत दिलानी शुरू कर दी है। दरअसल, ये दोनों महिलायें मशरूम की खेती करती थीं। हालाँकि इससे मुनाफा तो अच्छा खासा होता था, लेकिन इसके जल्दी खराब होने का डर हमेशा बना रहता था।
दूसरी ओर 42 साल की सीता देवी ने बताया कि पहले हमारे पास भंडारण की कोई सुविधा नहीं थी। इसलिए जो भी दाम मंडी में मिलता, हम उसी दाम में बेच देते थे, चाहे फिर मुनाफा हो या नहीं। 39 साल की बसंती देवी ने भी इसी अनुभव को साझा किया, उन्होंने कहा कि पहले हमें मंडी में जो भी दाम मिलते, वही लेना पड़ता था। कोई मोलभाव नहीं, कोई विकल्प नहीं था। लेकिन अब हालात बदल रहे हैं, और इस बदलाव का कारण बना है एक विशेष मोबाइल कोल्ड स्टोरेज यूनिट — ‘संवर्धन मोबाइल कूल स्टोरेज यूनिट’।
क्या है विकास?
नेटारहाट ओल्ड बॉयज़ एसोसिएशन ग्लोबल सोशल रिस्पॉन्सिबिलिटी (NOBA GSR) और एग्री-टेक इनोवेटर BMH ट्रांसमोटन की साझेदारी से यह पहल शुरू की गई है। यह मोबाइल कोल्ड स्टोरेज किसी भी गांव में आसानी से पहुंच सकता है और किसानों के खेत के पास ही उनकी उपज को सुरक्षित रख सकता है। इसमें सोलर पैनल, गैस एब्जॉर्बर, एयर सर्कुलेशन सिस्टम और एथिलीन गैस मैनेजमेंट सिस्टम जैसी आधुनिक तकनीकें लगी हैं, जो सब्जियों और फलों को लंबे समय तक ताजगी बनाए रखने में मदद करती हैं।
इस प्रोजेक्ट के जनक और NOBA GSR के सलाहकार ओम प्रकाश चौधरी ने कहा मेरा सपना उस दिन पूरा हुआ जब संवर्धन मोबाइल कोल्ड स्टोरेज लॉन्च हुआ। लेकिन असली खुशी तब होगी जब महिला किसान अपने उत्पाद को बिना डर के स्टोर कर सकें, साथ ही अपने उत्पादन को मनाफ़े के साथ बिना किसी डर या नुक्सान के आसानी से बेच सकें।
रोल मॉडल बनीं महिला किसान
50 साल की रेखा देवी, जो मशरूम की खेती करती हैं, कहती हैं कि पहले गांव की महिलाएं अपनी सब्जियां समय से पहले बेचने को मजबूर थीं, जिससे उन्हें अच्छा दाम नहीं मिलता था। लेकिन अब, टोरपा क्षेत्र की लगभग 2,500 महिलाएं इस मोबाइल स्टोरेज योजना से जुड़ रही हैं। रेखा देवी कहती हैं, कि अब हम अपनी फसल को अपने मनचाहे समय पर बेचते हैं। कभी-कभी तो मंडी में दाम दोगुना हो जाता है।
40% से घटकर 3% पर पहुँच नुक्सान होने का खतरा
इस मोबाइल कोल्ड स्टोरेज की मदद से पोस्ट-हार्वेस्ट लॉस यानी कटाई के बाद खराब होने वाले उत्पादों का नुकसान 40% से घटकर केवल 3% रह गया है। इससे किसानों की आमदनी में औसतन 25% तक बढ़ोतरी हुई है। जबकि झारखंड में अब तक केवल 60 कोल्ड स्टोरेज हैं, इस तरह की मोबाइल यूनिट्स छोटे और सीमांत किसानों के लिए उम्मीद की नई किरण साबित हुई हैं।
हाल ही में खूंटी में राज्य के आदिवासी कल्याण आयुक्त अजय नाथ झा ने इस मोबाइल यूनिट का औपचारिक उद्घाटन किया है। भविष्य में इसे अन्य जिलों और ग्रामीण क्षेत्रों में भी लागू करने की योजना बनाई जा रही है। ताकि हर किसान इस स्टोरेज का फायदा उठा सकें और अपने फल, सब्जियों का ज्यादा दिनों तक रख कर अच्छा मुनाफा कमा सकें। इसके आलावा, इस पहल का मुख्य उद्देश्य देशभर के छोटे किसानों, खासकर महिलाओं, को आत्मनिर्भर बनाना है।