By : Nisha Mandal
बढ़ते तापमान और घटते जलस्तर के बीच खेती करना किसानों के लिए एक बड़ी चुनौती बन गया है। ऐसे में फसलों की सिंचाई में पानी का उपयोग न्यूनतम करने पर ध्यान केंद्रित करते हुए, राज्य सरकार कई योजनाएँ चला रही है। इसी दिशा में, कृषि विभाग अप्रैल महीने में जल-जीवन-हरियाली अभियान की शुरुआत करेगा। इस अभियान का मुख्य उद्देश्य जलस्तर को संतुलित बनाए रखना, जल को प्रदूषण मुक्त करना, वृक्ष आच्छादन को बढ़ावा देना और नवीकरणीय ऊर्जा का प्रसार करना है। इसके साथ ही जल के स्त्रोतों, जैसे नदियाँ, तालाब, कुएँ आदि, जो खराब या क्षतिग्रस्त हो गए हैं, उन्हें सुधारने और फिर से जीवन्त बनाने पर भी विशेष ध्यान दिया जाएगा। जिसका उद्देश्य जलस्रोतों की स्थिति को बेहतर बनाना है ताकि जल का संरक्षण और उपयोग अधिक प्रभावी रूप से किया जा सके।
जल-जीवन-हरियाली खेती के लिए जरूरी
जल-जीवन-हरियाली अभियान बिहार सरकार द्वारा शुरू किया गया एक महत्वपूर्ण पहल है, जिसका उद्देश्य जल संरक्षण, पर्यावरण संतुलन और हरियाली को बढ़ावा देना है। इस अभियान के तहत जल स्त्रोतों का पुनर्निर्माण, वृक्षारोपण, जलवायु अनुकूल कृषि पद्धतियों को बढ़ावा देना, और जल प्रदूषण को रोकने की दिशा में कार्य किया जाता है। जल-जीवन-हरियाली अभियान से जलवायु परिवर्तन से निपटने, जल स्त्रोतों को सुरक्षित रखने और हरियाली को बढ़ाने में मदद मिलती है, जिससे पर्यावरण को स्थिर बनाए रखने में योगदान होता है और कृषि उत्पादकता को भी बढ़ावा मिलता है।
जल-जीवन-हरियाली अभियान का मुख्य उद्देश्य जल के स्त्रोतों को संरक्षित करना और उनका पुनर्निर्माण करना है, जिससे पानी की कमी से जूझ रहे क्षेत्रों में जल की उपलब्धता बनी रहे। इसी के साथ जल के स्रोतों और जल निकायों को प्रदूषण से मुक्त रखने पर जोर दिया जाता है, ताकि पानी की गुणवत्ता बनी रहे। जलवायु अनुकूल कृषि पद्धतियों को अपनाने से कृषि उत्पादन बढ़ता है और किसानों को बेहतर फसल उत्पादन में मदद मिलती है। जल के कम से कम उपयोग के लिए सिंचाई के नए तरीके, जैसे ड्रिप इरिगेशन, को बढ़ावा दिया जाता है। किसानों और जनता को जल संरक्षण और पर्यावरण के महत्व के बारे में जागरूक किया जाता है, ताकि वे इस अभियान में सक्रिय रूप से भाग लें।
ड्रिप और स्प्रिंकलर सिंचाई
ड्रिप और स्प्रिंकलर सिंचाई दोनों ही अत्याधुनिक सिंचाई विधियाँ हैं, जो पानी की बचत और फसलों की बेहतर सिंचाई के लिए उपयोग की जाती हैं। ड्रिप और स्प्रिंकलर सिंचाई दोनों ही पर्यावरण के अनुकूल और फसल उत्पादन को बढ़ाने में सहायक हैं, जिससे किसानों को पानी की बचत और बेहतर उपज प्राप्त होती है।
ड्रिप सिंचाई में पानी को सीधे पौधों की जड़ों तक पहुंचाया जाता है, जिससे पानी का व्यर्थ उपयोग कम होता है। इस विधि में पाइपलाइन के माध्यम से हर पौधे के पास छोटी-छोटी नलिकाएँ लगाई जाती हैं, जो धीरे-धीरे और आवश्यकतानुसार पानी छोड़ती हैं। इससे पानी की बर्बादी नहीं होती और फसल को ठीक मात्रा में जल मिलता है।
स्प्रिंकलर सिंचाई में पानी को छिड़कने वाली नलियाँ (स्प्रिंकलर) खेतों में स्थापित की जाती हैं, जो बारिश के समान पानी को फसलों पर वितरित करती हैं। यह विधि बड़े खेतों में उपयोगी होती है, जहां एकसाथ पानी छिड़का जाता है। दोनों विधियाँ पानी की कम खपत करती हैं, क्योंकि पानी सीधे जड़ों तक पहुँचता है या आवश्यकतानुसार छिड़का जाता है, जिससे पानी की बर्बादी नहीं होती। इन विधियों का उपयोग न केवल कृषि में, बल्कि बागवानी और वृक्षारोपण में भी किया जाता है, जहां पानी की आपूर्ति नियंत्रित और प्रभावी होनी चाहिए।