भारत की कृषि अर्थव्यवस्था में महत्वपूर्ण योगदान देती है, जहां कृषि का सकल घरेलू उत्पाद (GDP) में योगदान 16 प्रतिशत से अधिक है। कृषि क्षेत्र लगभग 42.3 प्रतिशत कार्यबल को रोजगार प्रदान करता है, लेकिन इसके बावजूद, किसानों को एक गंभीर समस्या का सामना करना पड़ता है , जैसे ऋण प्राप्त करने में कठिनाई। छोटे और सीमांत किसानों के लिए बैंकों से ऋण प्राप्त करना बहुत मुश्किल होता है, जिससे वे उच्च ब्याज दर वाले अनौपचारिक ऋण स्रोतों पर निर्भर रहते हैं। भारत में कृषि क्षेत्र के छोटे किसान वित्तीय सहायता पाने में मुश्किलों का सामना करते हैं, जिससे उनकी स्थिति और भी कठिन हो जाती है।
तकनीकी नवाचारों का उपयोग करके किसानों को सरल और पारदर्शी ऋण सुविधाएँ प्रदान की जा सकती हैं। डिजिटलीकरण, मोबाइल एप्लिकेशन और ई-क्रेडिट प्लेटफॉर्म के जरिए ऋण प्रक्रिया को अधिक सुलभ और तेज किया जा सकता है। किसानों को ऋण देने से पहले उन्हें बीमा योजनाओं से जोड़ने से उनकी ऋण चुकाने की क्षमता में सुधार हो सकता है, खासकर प्राकृतिक आपदाओं और अन्य जोखिमों से सुरक्षा के मामले में। सरकार और बैंकों द्वारा सस्ती ब्याज दरों और लचीली शर्तों के माध्यम से छोटे किसानों को ऋण प्रदान करना, ताकि वे ऊंची ब्याज दरों के अनौपचारिक स्रोतों पर निर्भर न रहें।
छोटे किसानों को वित्तीय साक्षरता प्रदान करने और माइक्रो फाइनेंस संस्थानों के जरिए ऋण उपलब्ध कराना, जिससे वे ऋण के सही उपयोग और निवेश के बारे में जागरूक हो सकें। किसानों को कर्ज चुकाने के लिए प्रेरित करने के लिए सरकार द्वारा उपयुक्त नीतियाँ और सहायता पैकेज की आवश्यकता है। इसी के साथ समय पर ऋण चुकाने पर छूट या प्रोत्साहन। 86 प्रतिशत भारतीय किसान छोटे और सीमांत होते हैं जिनके पास 2 हेक्टेयर से कम भूमि है, जो उन्हें बैंकों से ऋण प्राप्त करने में असमर्थ बनाता है।
भारत सरकार ने छोटे किसानों को ऋण प्राप्त करने में आसानी प्रदान करने के लिए कई योजनाएँ शुरू की हैं। इनमें किसान क्रेडिट कार्ड (KCC) और ई-एनडब्ल्यूआर-आधारित प्रतिज्ञा वित्तपोषण (CGS-NPF) शामिल हैं, जिनसे छोटे किसान बिना किसी कठिनाई के ऋण प्राप्त कर सकेंगे। इसके अलावा, महिला किसानों को सशक्त बनाने के लिए भी सरकार द्वारा कई योजनाएँ चलाई जा रही हैं, ताकि वे कृषि क्षेत्र में अपनी भूमिका को बढ़ा सकें और आर्थिक रूप से आत्मनिर्भर बन सकें।