BY- NISHA MANDAL
भारत में सरसों की खेती एक महत्वपूर्ण आय का साधन है, लेकिन किसानों को फसल के दौरान कई प्रकार की बीमारियों का सामना करना पड़ता है। इनमें सबसे आम रोग है “गलन रोग”, जो सरसों की फसल को शुरूआती अवस्था में ही कमजोर कर देता है और उत्पादन में भारी गिरावट लाता है। रासायनिक दवाओं से इस रोग पर काबू तो पाया जा सकता है, लेकिन इससे मिट्टी की उर्वरता पर असर पड़ता है और लंबे समय में फसल की गुणवत्ता भी घट जाती है। इसलिए आज किसान जैविक उपायों की ओर रुख कर रहे हैं, जिसमें लहसुन का उपयोग सबसे कारगर साबित हो रहा है।
लहसुन का जैविक उपयोग
लहसुन एक प्राकृतिक रोगनाशक के रूप में काम करता है, जिसका उपयोग सरसों की खेती में गलन रोग से बचाव के लिए किया जा सकता है। यह न केवल मिट्टी में मौजूद हानिकारक बैक्टीरिया और फफूंद को मारता है, बल्कि फसल की जड़ों को भी मजबूती प्रदान करता है। जैविक खेती में लहसुन का अर्क बनाकर उसका छिड़काव करना एक आम तकनीक बनती जा रही है। किसान घर पर ही लहसुन की कुछ कलियों को पीसकर उसे पानी में मिलाकर 24 घंटे तक रख सकते हैं और फिर उसका छिड़काव फसल पर कर सकते हैं। यह पूरी तरह से प्राकृतिक है और इसका कोई साइड इफेक्ट नहीं होता।
सरसों पर करें लहसुन अर्क का छिड़काव

सरसों की खेती के शुरुआती 20 से 30 दिनों के भीतर गलन रोग का खतरा अधिक रहता है। ऐसे में लहसुन के अर्क का समय-समय पर छिड़काव करने से न केवल फसल सुरक्षित रहती है बल्कि उसकी वृद्धि भी बेहतर होती है। लहसुन में मौजूद गंधक तत्व फंगल इन्फेक्शन से लड़ने में सहायक होता है। यह जैविक तरीका पर्यावरण के लिए भी सुरक्षित है और मिट्टी की संरचना को नुकसान नहीं पहुंचाता।
किसानों का भरोसेमंद उपाय
जैविक खेती को बढ़ावा देने के लिए किसानों को लहसुन जैसे घरेलू उपायों को अपनाना चाहिए। यह न केवल लागत में कमी लाता है बल्कि सरसों की उपज को भी गुणवत्तापूर्ण बनाता है। आज जब जैविक उत्पादों की मांग बाजार में तेजी से बढ़ रही है, ऐसे में यह तरीका किसानों के लिए फायदेमंद साबित हो सकता है।