हिमाचल प्रदेश के सोलन ज़िले को देश का फार्मा हब कहा जाता है, लेकिन एक बार फिर यहां बनी दवाओं की गुणवत्ता पर सवाल खड़े हो गए हैं। हाल ही में केंद्रीय औषधि मानक नियंत्रण संगठन (CDSCO) ने एक ड्रग अलर्ट जारी किया है, जिसमें बताया गया कि मार्च 2025 में देशभर से लिए गए 131 दवाओं के नमूने गुणवत्ता जांच में फेल पाए गए हैं। चौंकाने वाली बात यह है कि इनमें से 32 दवाएं हिमाचल प्रदेश में बनी थीं।इन फेल हुई दवाओं में दिल, डायबिटीज़, जोड़ों का दर्द, विटामिन, आयरन सप्लीमेंट, बैक्टीरियल इन्फेक्शन, एलर्जी, मस्कुलर डिस्ट्रॉफी, दर्द निवारक, किडनी और एंटीबायोटिक जैसी गंभीर बीमारियों में इस्तेमाल होने वाली दवाएं शामिल हैं।
जांच रिपोर्ट में यह भी सामने आया है कि चार फार्मा कंपनियों की दो या उससे ज़्यादा दवाएं टेस्ट में फेल हुई हैं। इससे न सिर्फ आम लोगों की सेहत को खतरा है, बल्कि हिमाचल की फार्मा इंडस्ट्री की छवि पर भी बुरा असर पड़ रहा है। इस खुलासे के बाद स्वास्थ्य विभाग और दवा नियंत्रक विभाग में हड़कंप मच गया है। सवाल ये उठता है कि क्या मरीजों को मिल रही दवाएं वाकई सुरक्षित हैं? इसके साथ ही इन दवाओं को बनाने और बेचने की अनुमति कैसे दी गई? अब देखना ये होगा कि संबंधित विभाग और सरकार इस पर क्या सख्त कदम उठाते हैं, ताकि लोगों की सेहत से कोई खिलवाड़ न हो सके।
केंद्रीय औषधि मानक नियंत्रण संगठन (CDSCO) की हालिया जांच में एक और चौंकाने वाली बात सामने आई है। जांच में पाया गया कि पाकिस्तान में निर्मित दो अलग-अलग ब्रांड की दवाएं गुणवत्ता जांच में फेल हुई हैं, और उनमें जहरीले तत्व पारा (मरकरी) की मौजूदगी पाई गई है। पारा एक बेहद हानिकारक और विषैला रासायनिक तत्व है, जिसकी मौजूदगी दवाओं में मिलना उपभोक्ताओं की सेहत के लिए गंभीर खतरे की घंटी है। वहीं हिमाचल प्रदेश के बद्दी क्षेत्र के ड्रग कंट्रोलर मनीष कपूर ने बताया कि जो दवाएं टेस्ट में फेल हुई हैं, उनके लिए संबंधित फार्मा कंपनियों को कारण बताओ नोटिस जारी कर दिए गए हैं। इसके साथ ही फेल हुए दवा बैचों को तुरंत बाजार से हटाने के आदेश दिए गए हैं ताकि आम जनता को नुकसान न हो।
ड्रग विभाग ने सख्ती बरतते हुए सभी कंपनियों को चेताया है कि वे अपनी दवाओं की गुणवत्ता सुधारें। उन्होंने यह भी कहा कि आने वाले दिनों में इन कंपनियों के खिलाफ सख्त कार्रवाई की जाएगी, जिसमें लाइसेंस निलंबन या रद्द करना भी शामिल हो सकता है। यह घटना एक बार फिर इस बात की ओर इशारा करती है कि दवाओं की गुणवत्ता पर कड़ी निगरानी रखना कितना ज़रूरी है, क्योंकि छोटी-सी लापरवाही भी किसी की जान पर भारी पड़ सकती है। बद्दी के ड्रग कंट्रोलर मनीष कपूर ने साफ कहा है कि जिन फार्मा कंपनियों के सैंपल बार-बार जांच में फेल हो रहे हैं, उनके खिलाफ अब कठोर कार्रवाई की जाएगी। इसमें उनका लाइसेंस रद्द करना भी शामिल है। उन्होंने कहा कि जनता की सेहत से कोई भी खिलवाड़ बर्दाश्त नहीं किया जाएगा।
हिमाचल प्रदेश का दवा उद्योग देश की फार्मास्यूटिकल ज़रूरतों का बड़ा हिस्सा पूरा करता है, लेकिन हाल के वर्षों में लगातार फेल हो रहे दवा सैंपलों ने इस क्षेत्र की साख पर सवाल खड़े कर दिए हैं। इससे न सिर्फ लोगों की ज़िंदगी खतरे में पड़ती है, बल्कि हिमाचल की पहचान को भी नुकसान पहुंचता है। इस पूरे मामले पर दवा विशेषज्ञ पृथपाल पाली और बावा हरदीप का कहना है कि दवाओं की गुणवत्ता में गिरावट की मुख्य वजहें हैं – गुणवत्ता नियंत्रण की कमी, निरीक्षण की अपर्याप्त व्यवस्था, और नियमों का पालन न किया जाना। उनका मानना है कि फार्मा कंपनियों को और ज्यादा सतर्क और जिम्मेदार बनने की जरूरत है।
विशेषज्ञों ने आम उपभोक्ताओं को भी सतर्क रहने की सलाह दी है। उन्होंने कहा कि दवाएं खरीदते समय उसका बैच नंबर, निर्माण व समाप्ति तारीख जरूर जांचें, और अगर किसी दवा को लेकर आपको कोई संदेह हो या उसकी गुणवत्ता पर शक हो, तो तुरंत नज़दीकी ड्रग कंट्रोल ऑफिस को इसकी सूचना दें। उन्होंने यह भी कहा, “जनता की सेहत के साथ हो रहा यह खिलवाड़ अब और नहीं चल सकता। सभी को मिलकर इसे रोकना होगा, फिर चाहे वह निर्माता हो, विक्रेता हो या फिर उपभोक्ता।