आज के नए जमाने में तकनीकी दिन-ब-दिन नये अविष्कार कर रही है। विज्ञान और नयी तकनीक के माध्यम से अब शहरों के साथ साथ ग्रामीण इलाकों के लिए भी नए-नए अविष्कार हो रहे है। विज्ञान और नवाचार का प्रभाव अब केवल शहरी जीवन तक सीमित नहीं रहा, बल्कि यह देश के अन्नदाता, यानी किसानों की ज़िंदगी से भी जुड़ने लगा है। वहीँ इस दिशा में कानपुर आईआईटी के स्टार्टअप इंक्यूबेटर ने एक अनोखी पहल की है, जो न केवल किसानों की खेती को स्मार्ट बनाएगी, बल्कि मिट्टी और पर्यावरण को भी नुकसान होने से बचाएगी। दरअसल, इस तकनीक में एक ऐसे चीज़ का इस्तेमाल किया गया है, जिसके बारे में अब तक किसी ने सोचा भी नहीं था, जिसे अब तक सिर्फ कूड़ा-कचरा माना जाता था। जो है मुर्गियों के पंख।
आखिर क्या है ये नई खोज और किसने की है ये खोज?
आईआईटी कानपुर के एसआईआईसी (SIDBI Innovation & Incubation Centre) के स्टार्टअप्स के तीन प्रतिभाशाली नवप्रवर्तकों, मोहम्मद रशीद, ऋषभ, और अधीश गुप्ता ने अपनी तीन साल की कड़ी मेहनत के बाद मुर्गियों के पंखों से एक खास नोवो पॉलिमर प्लास्टिक तैयार किया है। यह प्लास्टिक पूरी तरह से बायोडिग्रेडेबल है और खेतों में पारंपरिक प्लास्टिक मल्चिंग की जगह इस्तेमाल किया जा सकता है।
अब तक खेती के लिए जिस प्लास्टिक का इस्तेमाल किया जाता था, वह मिट्टी को कमजोर कर देता था और पर्यावरण के लिए भी खतरा था। लेकिन इस नए पॉलिमर की खासियत यह है कि यह छह महीने में मिट्टी में खुद बायोडिग्रेड हो जाता है। वहीँ मुर्गियों के पंखों में मौजूद पोषक तत्व जमीन को और अधिक उपजाऊ बनाते हैं। जिसके कारण पानी में प्रदूषण नहीं होता और मिट्टी की गुणवत्ता भी बनी रहती है। और तो और इस नई तकनीक से खेत की मिट्टी की ताकत और भी बढ़ेगी। इसके आलावा, किसानों को बार-बार प्लास्टिक हटाने की भी जरुरत नहीं पड़ेगी।
इसका मतलब है कि यह नया स्टार्टअप किसानों को बेहतर फसल उगाने में मदद करेगा और पारंपरिक खेती के तरीकों को और अधिक आधुनिक, पर्यावरण के अनुकूल और दीर्घकालिक बनाएगा। इसके अलावा, मुर्गियों के पंख, जो पहले बेकार समझे जाते थे, अब खेती के काम में उपयोगी साबित होंगे।