BY – NISHA MANDAL
इंडियन प्रीमियर लीग (IPL) हर साल अपने खेल, ग्लैमर और तकनीकी नवाचारों के लिए चर्चा में रहता है। इस बार IPL 2025 में एक नया तकनीकी प्रयोग देखने को मिला एक AI आधारित रोबोटिक डॉग जिसे ‘चंपक’ नाम दिया गया। मैदान के चारों ओर घूमता यह रोबोट दर्शकों और खिलाड़ियों दोनों के बीच आकर्षण का केंद्र बना रहा। लेकिन इस तकनीकी चमत्कार का नाम अब विवादों में घिर गया है। ‘चंपक’ नाम को लेकर एक कानूनी विवाद उठ खड़ा हुआ है, जो अब दिल्ली हाईकोर्ट तक पहुंच गया है।
AI डॉग ‘चंपक’

IPL प्रबंधन द्वारा लॉन्च किया गया यह रोबोटिक डॉग एक अत्याधुनिक तकनीक पर आधारित है। इसमें आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस, कैमरा सेंसर, डेटा विश्लेषण की क्षमता और दर्शकों से संवाद करने की तकनीक मौजूद है। ‘चंपक’ का उद्देश्य मैच के अनुभव को और रोमांचक बनाना और तकनीक के माध्यम से फैंस से जुड़ाव बढ़ाना था। यह रोबोट मैदान के किनारे चलता है, खिलाड़ियों की गतिविधियों पर नज़र रखता है और लाइव स्ट्रीमिंग के दौरान दर्शकों को रोचक जानकारियां देता है।
नाम ‘चंपक’ पर क्यों उठा विवाद?

‘चंपक’ भारत की एक प्रसिद्ध बच्चों की पत्रिका का नाम भी है, जो दशकों से बच्चों के बीच लोकप्रिय रही है। इस पत्रिका के प्रकाशक ने अदालत में याचिका दायर कर IPL के रोबोट को ‘चंपक’ नाम देने पर आपत्ति जताई है। उनका तर्क है कि ‘चंपक’ एक ट्रेडमार्क नाम है, जो पहले से ही पंजीकृत है और इसका उपयोग किसी रोबोट या तकनीकी उत्पाद के लिए करना ब्रांड अधिकारों का उल्लंघन है।
याचिकाकर्ता की दलीलें
याचिकाकर्ता का कहना है कि ‘चंपक’ नाम बच्चों के मन में एक विशेष स्थान रखता है और इसका उपयोग एक रोबोट के लिए करना भ्रम पैदा कर सकता है। इससे पत्रिका की प्रतिष्ठा पर असर पड़ सकता है और यह बौद्धिक संपदा अधिकारों का उल्लंघन है। इसके अलावा, उनका दावा है कि इससे बच्चों के बीच गलत संदेश जा सकता है कि पत्रिका और रोबोट में कोई संबंध है।
IPL प्रबंधन का पक्ष

IPL की ओर से यह तर्क दिया गया है कि ‘चंपक’ नाम एक सामान्य हिंदी शब्द है और इसका उपयोग करने में कोई कानूनी बाध्यता नहीं है। उनका कहना है कि रोबोटिक डॉग का नाम चुनते समय इसका उद्देश्य केवल एक हल्का-फुल्का और यादगार नाम देना था, न कि किसी ब्रांड या उत्पाद का लाभ उठाना। IPL के वकीलों का यह भी कहना है कि दोनों उत्पादों का क्षेत्र एक-दूसरे से बिल्कुल अलग है – एक मनोरंजन पत्रिका और दूसरा तकनीकी रोबोट।
कानूनी विशेषज्ञों की राय
इस मामले में कानूनी विशेषज्ञों की राय बंटी हुई है। कुछ का कहना है कि अगर ‘चंपक’ नाम पहले से ट्रेडमार्क के रूप में पंजीकृत है, तो IPL को इसके उपयोग से बचना चाहिए। वहीं, कुछ का मानना है कि अगर दोनों उत्पादों का उपयोग और बाजार पूरी तरह से अलग हैं, तो भ्रम की कोई स्थिति नहीं बनती और IPL को नाम उपयोग करने का अधिकार है। यह मामला “ब्रांड डिल्यूशन” और “ट्रेडमार्क इन्फ्रिंजमेंट” की श्रेणियों में आता है।
सोशल मीडिया और जनता की प्रतिक्रिया

सोशल मीडिया पर इस विवाद ने तेजी से तूल पकड़ा है। कुछ लोग इसे एक अनावश्यक विवाद बता रहे हैं, जबकि कुछ का मानना है कि बच्चों की भावनाओं से जुड़े नामों का उपयोग सावधानी से किया जाना चाहिए। ट्विटर पर #SaveChampak और #AIChampak ट्रेंड करने लगे हैं। लोगों के बीच इस रोबोट को लेकर जिज्ञासा भी बढ़ गई है।
AI और कानून के बीच की टकराहट
यह मामला केवल नाम के विवाद तक सीमित नहीं है, बल्कि यह AI तकनीक के बढ़ते उपयोग और बौद्धिक संपदा अधिकारों की जटिलताओं को भी उजागर करता है। जैसे-जैसे AI आधारित उत्पाद बाजार में आ रहे हैं, वैसे-वैसे उनके नाम, उपयोग, डिजाइन और कार्यक्षमता को लेकर कानूनी ढांचे की आवश्यकता और स्पष्टता बढ़ रही है।
क्या यह मामला मिसाल बनेगा?
अगर दिल्ली हाईकोर्ट इस मामले में कोई ठोस निर्णय देती है, तो यह भविष्य में ऐसे मामलों के लिए एक मिसाल बन सकता है। यह तय करेगा कि AI आधारित उत्पादों को नाम देने में किन बातों का ध्यान रखा जाना चाहिए और ट्रेडमार्क अधिकारों की सीमाएं क्या होंगी।
नतीजा
IPL का ‘चंपक’ रोबोट तकनीकी रूप से भले ही एक नवाचार हो, लेकिन इसके नाम को लेकर पैदा हुआ विवाद कई गंभीर सवाल खड़े करता है। क्या किसी सामान्य शब्द का उपयोग कानूनी रूप से वर्जित किया जा सकता है? क्या बच्चों की भावनाओं से जुड़े ब्रांड नामों का प्रयोग तकनीकी उत्पादों के लिए सही है? यह देखना दिलचस्प होगा कि अदालत इस पर क्या निर्णय देती है। फिलहाल, AI और कानून की यह भिड़ंत पूरे देश की नजर में है और इसका असर आने वाले सालों में तकनीकी विकास और ब्रांडिंग पर भी पड़ सकता है।