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The Industrial Empire - उद्योग, व्यापार और नवाचार की दुनिया | The World of Industry, Business & Innovation > अन्य > अमेरिका का कमजोर होना, दुनिया के लिए खतरे की घंटी
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अमेरिका का कमजोर होना, दुनिया के लिए खतरे की घंटी

Last updated: 19/06/2025 1:01 PM
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Industrial Empire
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अमेरिका का कमजोर होना दुनिया के लिए खतरा : प्रतीकात्मक इमेज
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इतिहास हमें सिखाता है कि जब कोई बड़ा साम्राज्य गिरता है तो उसके साथ सिर्फ उसकी ताकत नहीं जाती, बल्कि उसकी बनाई व्यवस्था, कानून और सुरक्षा का अहसास भी खत्म हो जाता है। इसके बाद अराजकता का दौर आता है लूटपाट, अस्थिरता और सत्ता की होड़। विलियम डेलरिंपल की किताब The Anarchy बताती है कि भारत में मुगलों के पतन के बाद कैसी अफरा-तफरी मची थी, और कैसे अंग्रेज धीरे-धीरे सत्ता में आए। आज कुछ वैसा ही डर दुनिया को सता रहा है फर्क सिर्फ इतना है कि इस बार केंद्र अमेरिका है।

दूसरे विश्व युद्ध के बाद अमेरिका ने एक वैश्विक व्यवस्था बनाई थी। जो कानून आधारित, संस्थागत, और सुरक्षा देने वाली थी। इसमें अमेरिका का नेतृत्व था, लेकिन इसका लाभ सिर्फ उसे ही नहीं बल्कि दुनिया भर के देशों को मिला। संयुक्त राष्ट्र, वर्ल्ड बैंक, IMF, WTO जैसी संस्थाएं इसी दौर की देन हैं। इन्होंने व्यापार को बढ़ावा दिया, लोकतंत्र को मजबूती दी और मानवाधिकारों की रक्षा की।

लेकिन अब खुद अमेरिका अपनी इस व्यवस्था को कमजोर कर रहा है। आंतरिक राजनीतिक अस्थिरता ( घरेलू कलह ), वैश्विक संस्थाओं से दूरी और सैन्य उलझनों के कारण वह धीरे-धीरे अपनी पकड़ खो रहा है। इसका असर दिखने भी लगा है। जैसे इस्राइल-ईरान तनाव, रूस-यूक्रेन युद्ध और दक्षिण चीन सागर में बढ़ता तनाव। अमेरिका की गैर-मौजूदगी में निवेशकों का भरोसा डगमगा रहा है और दुनिया दिशाहीन लग रही है।

भारत जैसे देशों को यह बहुध्रुवीय (multi-polar) दुनिया एक मौके की तरह दिख सकती है जहां वह किसी एक गुट में बंधा नहीं रहेगा। लेकिन सच ये है कि अमेरिका की अगुआई वाली व्यवस्था के खत्म होने से भारत को नुकसान ज़्यादा हो सकता है। यह व्यवस्था दोषों के बावजूद भी काम कर रही थी और भारत जैसे उभरते देशों को वैश्विक मंचों पर स्थान दिला रही थी।

इतिहासकारों के मुताबिक, साल 1950 के बाद दुनिया की प्रति व्यक्ति आय में जबरदस्त उछाल आया और ये वही समय था जब अमेरिका महाशक्ति बनकर दुनिया का नेतृत्व कर रहा था। भारत, चीन और अमेरिका तीनों की अर्थव्यवस्थाएं तेजी से बढ़ीं। यह कोई जादू नहीं था बल्कि नियम आधारित वैश्विक सहयोग का नतीजा था। अगर अमेरिका पूरी तरह पीछे हट गया तो दुनिया फिर अलग-अलग गुटों में बंटेगी। हर देश अपने नियम बनाएगा, वैश्विक कानून कमजोर पड़ेंगे और युद्ध, अस्थिरता साथ ही आर्थिक संकट बढ़ेंगे। समुद्री विवाद, डेटा कानूनों का टकराव, निवेशकों का पलायन और तकनीकी सहयोग की कमी से दुनिया में स्थिरता ख़त्म होने लगेगी।

सवाल उठता है, क्या हमें अमेरिका पर निर्भर रहना चाहिए? इसका जवाब इतना सीधा नहीं है। अमेरिका नैतिक रूप से सर्वोच्च नहीं है, लेकिन अब तक वह सबसे स्थिर, जवाबदेह और संस्थागत ताकत रहा है। जब तक कोई वैकल्पिक शक्ति जैसे भारत, यूरोपीय संघ या कोई और सामने नहीं आती तब तक अमेरिका का बने रहना पूरी दुनिया के लिए ज़रूरी है। वहीं अगर अमेरिका पीछे हटता है तो इसका असर सिर्फ डॉलर या व्यापार तक नहीं सीमित रहेगा यह असर जीवन की स्थिरता, सुरक्षा और उम्मीदों पर भी पड़ेगा। यही वजह है कि अमेरिका की भूमिका पर सोचते हुए हमें पूरी दुनिया की स्थिरता को भी ध्यान में रखना होगा।

TAGGED:AmericaAmerica is a superpowereconomic losseconomy and marketsGATTIMFindiaIndustrial EmpireVETOWTOइस्राइल-ईरान तनावदक्षिण चीन सागर में बढ़ता तनावरूस-यूक्रेन युद्धवर्ल्ड बैंकसंयुक्त राष्ट्र
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