कामिनी सिंह कभी देश की जानी-मानी वैज्ञानिक थीं। उन्होंने सेंट्रल इंस्टिट्यूट फॉर सबट्रॉपिकल हॉर्टिकल्चर (CISH) और सेंट्रल इंस्टिट्यूट ऑफ मेडिसिनल एंड एरोमैटिक प्लांट्स (CIMAP) जैसे बड़े शोध संस्थानों में काम किया। लेकिन जब उन्होंने देखा कि उनकी रिसर्च का फायदा किसानों तक नहीं पहुंच रहा तो उन्होंने एक बड़ा फैसला लिया। उन्होंने 17 साल की रिसर्च का अनुभव पीछे छोड़ते हुए सीधे खेतों में उतरने का मन बनाया। उनका सपना था कि विज्ञान को सिर्फ किताबों तक न रखकर किसानों के जीवन में बदलाव लाया जाए।
ऑर्गेनिक खेती में एक नई शुरुआत
साल 2016-17 में उन्हें एक प्रोजेक्ट में किसानों को जैविक खेती सिखाने का मौका मिला। लेकिन असली चुनौती यह थी कि शुरुआत में जैविक खेती से बहुत अच्छा उत्पादन नहीं होता क्योंकि मिट्टी को रासायनिक उर्वरकों से मुक्त होने में समय लगता है। कई किसान सिर्फ सरकारी सब्सिडी लेने के लिए रजिस्ट्रेशन तो कराते थे, लेकिन असली जैविक तकनीकें नहीं अपनाते थे। इससे उनका उत्पादन भी कम होता और मनोबल भी टूटता।
सहजन की फसल से शुरुआत
कामिनी ने ऐसे पौधे की तलाश शुरू की जो कम लागत में अच्छा मुनाफा दे सके। उन्हें मिला सहजन यानी मोरिंगा (moringa)। यह पौधा कम पानी में भी पनपता है और बहुत पोषक होता है। साल 2017 में उन्होंने लखनऊ में 7 एकड़ ज़मीन लीज पर ली और खुद सहजन की खेती शुरू की। रिजल्ट शानदार था! फिर उन्होंने किसानों को सुझाव दिया कि वे खेत की मेड़ों पर इसे लगाएं ताकि मुख्य फसल पर कोई असर न पड़े।
किसानों को मिला नया रास्ता
लखनऊ के एक किसान शालिकराम यादव ने पहले सिर्फ 400 पौधे लगाए थे। लेकिन लाभ देखकर उन्होंने अब 10 एकड़ में सहजन उगाना शुरू कर दिया है। कामिनी ने न सिर्फ पौधे दिए बल्कि किसानों को तकनीकी मदद, प्रशिक्षण और उत्पाद की बिक्री की व्यवस्था भी की। इससे किसानों का आत्मविश्वास बढ़ा।

प्रोडक्ट्स से प्रगति तक
शुरुआत में मार्केटिंग एक बड़ी समस्या थी क्योंकि छोटे किसान अपनी थोड़ी-सी उपज को कहां और कैसे बेचें, यह समझ नहीं आता था। इसलिए कामिनी ने वैल्यू एडिशन का तरीका अपनाया यानी सहजन को सुखाकर पाउडर, चाय, तेल, साबुन, कुकीज़ और अन्य 22 तरह के प्रोडक्ट्स बनाना शुरू किया। साल 2019 में उन्होंने डॉ. मोरिंगा प्रा. लि. नाम से कंपनी बनाई और एक FPO (Farmer Producer Organisation) की भी शुरुआत की ताकि किसान मिलकर अपना उत्पाद सीधे बेच सकें।
लोन से लेकर लाखों तक
कामिनी ने यह सफर सिर्फ 9 लाख रुपये के पर्सनल लोन से शुरू किया था। आज उनकी कंपनी का सालाना टर्नओवर 1.75 करोड़ रुपये है और मुनाफा 30% तक जाता है। वे आज भी वैज्ञानिक पद्धति से पौधों की गुणवत्ता की जांच करती हैं और किसानों को ट्रेनिंग देकर आत्मनिर्भर बनाती हैं।
परिवर्तन की लहर
अनिल कुमार सिंह, मलिहाबाद के आम किसान, बताते हैं कि पहले वे गेहूं या धान से 40,000 रुपये कमाते थे, लेकिन अब सहजन से 1.5 लाख रुपये प्रति एकड़ कमा रहे हैं। आज वे 17 एकड़ में सहजन की खेती कर रहे हैं। कामिनी किसानों को मल्टीलेयर खेती यानी एक ही ज़मीन पर कई फसलों की तकनीक भी सिखा रही हैं। इससे कम ज़मीन में अधिक आमदनी होती है।
एक साहसी फैसला, जो बदलाव लाया
साल 2015 में जब कामिनी ने सरकारी नौकरी छोड़ी और PhD के साथ-साथ उद्यमिता की ओर कदम बढ़ाया तो परिवार ने नाराज़गी जताई। पर उन्होंने हार नहीं मानी। आज वही परिवार उनकी सफलता पर गर्व करता है। खुद कामिनी कहती हैं, “कागज़ से खेत तक का ये सफर मेरी सबसे बड़ी उपलब्धि है। अब मैं सिर्फ वैज्ञानिक नहीं बल्कि नौकरी देने वाली और गांवों को बदलने वाली बन गई हूं।”
कामिनी सिंह की कहानी सिर्फ एक महिला उद्यमी की नहीं है, यह गांवों की बदलती तस्वीर की कहानी है। उन्होंने विज्ञान, मेहनत और सेवा भावना से अब तक 1000 से ज्यादा किसानों को आत्मनिर्भर बनाया है।