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The Industrial Empire - उद्योग, व्यापार और नवाचार की दुनिया | The World of Industry, Business & Innovation > नॉन रिन्यूएबल एनर्जी > रूसी तेल पर EU का नया खेल: रिलायंस-नायरा को झटका, सरकारी कंपनियों को राहत
नॉन रिन्यूएबल एनर्जी

रूसी तेल पर EU का नया खेल: रिलायंस-नायरा को झटका, सरकारी कंपनियों को राहत

Last updated: 23/08/2025 2:36 PM
By
Industrial empire correspondent
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नई दिल्ली। रूस-यूक्रेन युद्ध के बीच यूरोपियन यूनियन (EU) ने एक बार फिर रूसी तेल पर पाबंदियां लगाई हैं। यह EU का रूस पर 18वां प्रतिबंध है, जिसके तहत अब रूसी तेल की कीमत 47.6 डॉलर प्रति बैरल से ज्यादा नहीं होनी चाहिए। पहले यह सीमा 60 डॉलर थी। यह नियम 3 सितंबर 2025 से लागू होगा। इसका सीधा असर भारत की दो बड़ी तेल कंपनियों – रिलायंस इंडस्ट्रीज लिमिटेड (RIL) और नायरा एनर्जी पर पड़ सकता है।

रिलायंस की मुश्किलें बढ़ीं
रिलायंस के लिए यह प्रतिबंध दोहरी चुनौती लेकर आया है। कंपनी को अब यह तय करना होगा कि वह सस्ता रूसी तेल लेना जारी रखे या फिर यूरोपीय बाज़ार में अपने डीज़ल निर्यात से हाथ धो ले। यूरोप रिलायंस का बड़ा निर्यात बाजार रहा है, खासकर डीजल के मामले में। अगर कंपनी यूरोप को सप्लाई नहीं कर पाएगी तो उसके मुनाफे पर असर पड़ना तय है।

विशेषज्ञों का कहना है कि भारतीय रिफाइनरियां अक्सर सीधे यूरोपीय ग्राहकों से सौदा नहीं करतीं, बल्कि बिचौलियों के जरिए व्यापार होता है। लेकिन अब इस चेन में भी बाधाएं आ सकती हैं क्योंकि EU ने रूसी तेल के संपर्क में आने वाली हर कंपनी पर निगरानी तेज़ कर दी है।

नायरा एनर्जी की राह में भी रुकावटें
रूसी तेल कंपनी रोसनेफ्ट की 49 फीसदी हिस्सेदारी वाली नायरा एनर्जी के लिए EU के नए प्रतिबंध एक बड़ी बाधा बन सकते हैं। रिपोर्ट्स के मुताबिक, नायरा को अब बैंकिंग लेनदेन में दिक्कतों का सामना करना पड़ सकता है, खासकर उन बैंकों के साथ जो यूरोपीय सिस्टम से जुड़े हैं। इतना ही नहीं, रिफाइनिंग में इस्तेमाल होने वाली तकनीकी मदद जो यूरोप से आती है, उस पर भी असर पड़ेगा। साथ ही कंपनी को अपने परिष्कृत उत्पाद अब यूरोप में बेचने में मुश्किलें होंगी। इससे रोसनेफ्ट की नायरा में अपनी हिस्सेदारी बेचने की योजना भी टल सकती है

अमेरिका की भूमिका अहम
EU के लिए इन प्रतिबंधों को सख्ती से लागू करना अकेले के बूते की बात नहीं है। क्योंकि वैश्विक तेल कारोबार डॉलर में होता है और इसकी निगरानी अमेरिका के हाथ में है। हालांकि अमेरिका ने EU के इस कदम का सीधा समर्थन नहीं किया है, लेकिन उसने रूस पर टैक्स बढ़ाकर दबाव बनाने की कोशिश शुरू कर दी है। अमेरिका ने रूसी उत्पादों पर 100 फीसदी टैक्स लगाने का प्रस्ताव दिया है और इसे तब तक जारी रखने की बात कही है जब तक रूस-यूक्रेन युद्ध खत्म नहीं होता।

भारत सरकार का कड़ा रुख
भारत ने EU के इस निर्णय पर आपत्ति जताई है। विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता रणधीर जायसवाल ने कहा कि भारत एकतरफा प्रतिबंधों के खिलाफ है और ऊर्जा सुरक्षा उसकी प्राथमिकता है। उन्होंने कहा कि भारत हमेशा अंतरराष्ट्रीय नियमों का पालन करता है, लेकिन उसे अपनी जनता की ऊर्जा ज़रूरतें पूरी करनी हैं।

सरकारी कंपनियों के लिए सुनहरा मौका
EU के इस प्रतिबंध से एक तरफ जहां निजी कंपनियों को नुकसान हो सकता है, वहीं सरकारी कंपनियों को फायदा होता दिख रहा है। इंडियन ऑयल, बीपीसीएल और एचपीसीएल जैसी कंपनियां यूरोपीय बाजार पर कम निर्भर हैं, लेकिन वे रूसी तेल की बड़ी खरीदार हैं। हिंदुस्तान पेट्रोलियम के पूर्व चेयरमैन एमके सुराना के मुताबिक, नई कीमत सीमा से भारत के लिए रूसी तेल और आकर्षक हो जाएगा। सरकारी रिफाइनरियां अक्सर ‘डिलीवर्ड बेसिस’ पर तेल खरीदती हैं, यानी आपूर्ति की ज़िम्मेदारी विक्रेता की होती है। ऐसे में प्रतिबंधों का असर सीधे उन कंपनियों पर नहीं पड़ेगा।

संकट में अवसर
EU के प्रतिबंधों ने भारत के तेल व्यापार में एक नई चाल चली है। जहां एक तरफ रिलायंस और नायरा जैसी कंपनियों को अपने रणनीतिक फैसले बदलने पड़ सकते हैं, वहीं सरकारी तेल कंपनियों को सस्ते रूसी तेल से फायदा मिलने की संभावना है। यह दिखाता है कि वैश्विक राजनीति में हर संकट अपने साथ नए अवसर भी लेकर आता है, बशर्ते उसे समझदारी से भुनाया जाए।

TAGGED:european unionIndustrial EmpireNayara Energynon-renewable energyReliance Industries Limited
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