भारतीय आईटी सेक्टर में इन दिनों दिलचस्प और उलझाने वाली स्थिति बन गई है। एक ओर देश की बड़ी आईटी कंपनी इंफोसिस (Infosys) भारी संख्या में फ्रेशर्स को नौकरी देने की तैयारी में है, वहीं दूसरी तरफ टाटा कंसल्टेंसी सर्विसेज (TCS) अपने हजारों कर्मचारियों की छंटनी की प्रक्रिया से गुजर रही है। यह दो बिल्कुल अलग दृष्टिकोण हैं, जो भारतीय टेक्नोलॉजी इंडस्ट्री में चल रहे बदलावों की ओर इशारा करते हैं।
इंफोसिस में नौकरियों की बहार: नए टैलेंट पर दांव
इंफोसिस के सीईओ सलिल पारेख ने हाल ही में दिए एक इंटरव्यू में कहा कि कंपनी इस वित्त वर्ष में करीब 20 हजार फ्रेशर्स की भर्ती करेगी। कंपनी पहले ही वर्ष की पहली तिमाही में 17 हजार से अधिक लोगों को जोड़ चुकी है।
इंफोसिस की इस भर्ती रणनीति के पीछे एक अहम वजह है – आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (AI) और री-स्किलिंग (पुनः प्रशिक्षण) पर जोर। कंपनी मानती है कि भविष्य में वही कंपनियां टिकेंगी जो नए कौशल और तकनीक के साथ अपने कर्मचारियों को लगातार अपडेट करेंगी। इसी सोच के तहत इंफोसिस ने अब तक 2.75 लाख से अधिक कर्मचारियों को एआई और डिजिटल स्किल्स में प्रशिक्षण दिया है।
पारेख का कहना है कि AI से काम की गति बढ़ी है, लेकिन इसके लिए कर्मचारियों को नई सोच और मेहनत की जरूरत है। कोडिंग जैसे कामों में AI की मदद से 5 प्रतिशत से 15 प्रतिशत तक उत्पादकता में बढ़ोतरी देखी गई है, जबकि ग्राहक सेवा और नॉलेज-बेस्ड क्षेत्रों में इसका असर और भी ज्यादा है।
कंपनी के बैंकिंग प्लेटफॉर्म ‘इंफोसिस फिनैकल’ में ऑटोमेशन और मानवीय निगरानी के मिलेजुले प्रयोग से करीब 20 फीसदी प्रोडक्टिविटी बढ़ाई गई है। साथ ही, कर्मचारियों को समय पर वेतन वृद्धि भी दी गई है और अगली समीक्षा तय कार्यक्रम के अनुसार होगी। यह सब इंगित करता है कि इंफोसिस तकनीकी बदलावों के साथ कदम से कदम मिलाकर आगे बढ़ रहा है और नए टैलेंट को प्रोत्साहित कर रहा है।
TCS में छंटनी की लहर: अनुभवी कर्मचारियों पर असर
दूसरी तरफ, TCS एक अलग दिशा में जा रही है। कंपनी ने अपने कुल वर्कफोर्स का लगभग 2 फीसदी हिस्सा, यानी 12 हजार से ज्यादा कर्मचारियों को हटाने का फैसला लिया है। यह प्रक्रिया मुख्य रूप से जुलाई से सितंबर 2025 की तिमाही में पूरी की जाएगी।
TCS की छंटनी में सबसे ज्यादा असर मिड से सीनियर लेवल के प्रोफेशनल्स पर पड़ा है, जिनके पास 15 से 20 साल का अनुभव है और जो 35 लाख से 80 लाख रुपये तक सालाना पैकेज पर काम कर रहे थे।
इन कर्मचारियों को फिलहाल ‘बेंच’ पर रखा गया है – यानी इनकी कोई सक्रिय भूमिका फिलहाल नहीं है। कंपनी इन्हें री-स्किलिंग के जरिए दोबारा तैयार कर रही है, लेकिन यदि अगले छह महीनों में प्रदर्शन में सुधार नहीं होता, तो उन्हें सेवरेंस पैकेज देकर बाहर का रास्ता दिखाया जाएगा।
TCS का यह कदम बताता है कि कंपनी अपने कॉस्ट स्ट्रक्चर को हल्का करना चाहती है और इसके लिए सबसे पहले उन अनुभवी कर्मचारियों को निशाना बनाया गया है जिनका खर्च ज्यादा है।
तकनीक, टैलेंट और ट्रांसफॉर्मेशन की जंग
Infosys और TCS की यह दो तस्वीरें इस बात की ओर इशारा करती हैं कि भारत का आईटी सेक्टर एक बदलते युग से गुजर रहा है। एक तरफ AI और ऑटोमेशन की वजह से कंपनियां युवा, तेज और नए स्किल्स वाले प्रोफेशनल्स को तरजीह दे रही हैं, तो वहीं दूसरी ओर वे अनुभवी लेकिन महंगे कर्मचारियों को हटाकर कॉस्ट ऑप्टिमाइजेशन की ओर जा रही हैं।
यह बदलाव केवल कंपनियों के भीतर नहीं, बल्कि पूरी इंडस्ट्री के ढांचे में हो रहा है। जहां इंफोसिस जैसा संगठन भविष्य की तैयारी में निवेश कर रहा है, वहीं TCS जैसे दिग्गज खुद को lean और competitive बनाए रखने के लिए वर्कफोर्स में बदलाव कर रहे हैं।
आखिरी सवाल ….
क्या यह बदलाव युवाओं के लिए अवसरों के नए दरवाज़े खोलेंगे? या क्या अनुभव वाले पेशेवरों को नए स्किल्स के साथ खुद को दोबारा साबित करना होगा? एक बात तो तय है – भारतीय आईटी इंडस्ट्री अब उसी पुराने ढर्रे पर नहीं चलेगी। AI, री-स्किलिंग और लागत की रणनीति अब इसकी नई दिशा तय करेंगे।