Ratan Tata: जहां से रतन टाटा ने शुरू किया था करियर, आज वही कंपनी करोड़ों में कर रही कारोबारभारत के उद्योग जगत का एक चमकता सितारा, रतन टाटा, आज भी देश के हर उद्यमी, छात्र और आम नागरिक के लिए प्रेरणा बने हुए हैं। आज उनकी पहली पुण्यतिथि है। 9 अक्टूबर 2024 को मुंबई के एक अस्पताल में उन्होंने अंतिम सांस ली थी। लेकिन उन्होंने अपने जीवन में जो विरासत और मूल्य छोड़े, वह आने वाली पीढ़ियों को दिशा देते रहेंगे।
Ratan Tata की कहानी की शुरुआत
कहते हैं हर दिग्गज की शुरुआत भी कभी साधारण होती है। रतन टाटा की पहली नौकरी भी ऐसी ही एक कहानी है। जिस कंपनी में उन्होंने बतौर ट्रेनी काम शुरू किया था – वही टाटा स्टील आज अरबों का कारोबार कर रही है और भारत की औद्योगिक ताकत का प्रतीक बन चुकी है।
रतन टाटा, जिन्होंने टाटा समूह को नई ऊंचाइयों पर पहुंचाया, कभी उसी समूह के एक छोटे से हिस्से में प्रशिक्षण के दौर से गुज़रे थे। यह वही समय था जिसने उन्हें उद्योग जगत के “visionary leader” में बदला।
अमेरिका में बसना चाहते थे, मगर दादी का प्यार ले आया भारत
मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक, 1960 के दशक में रतन टाटा अमेरिका की Cornell University से इंजीनियरिंग पूरी कर चुके थे। वे अमेरिका में ही बसना चाहते थे, लेकिन दादी की तबीयत खराब होने के कारण वे भारत लौट आए। भारत लौटने के बाद उन्हें एक बड़ा मौका मिला – IBM कंपनी का ऑफर। मगर यह ऑफर भारत से काम करने का नहीं था, बल्कि अमेरिका में ही रहने का था।
उसी समय टाटा समूह के संस्थापक जे.आर.डी. टाटा को इस बात की भनक लगी। उन्होंने रतन टाटा को सलाह दी कि उन्हें अपने ही समूह के साथ करियर की शुरुआत करनी चाहिए। रतन टाटा ने बिना देर किए IBM का ऑफर ठुकरा दिया और टाटा समूह से जुड़ने का फैसला किया।
पहली नौकरी टाटा स्टील में – ज़मीन से जुड़ने का अनुभव
साल 1962 में रतन टाटा ने टाटा इंडस्ट्रीज में असिस्टेंट के रूप में अपनी पहली नौकरी शुरू की। अगले ही साल 1963 में उन्हें जमशेदपुर स्थित टाटा आयरन एंड स्टील कंपनी (अब टाटा स्टील) में ट्रेनी प्रोग्राम के लिए भेजा गया।
वहां उन्होंने सबसे नीचे के स्तर से काम सीखा – मजदूरों के साथ फर्नेस एरिया में समय बिताया, मशीनों की बारीकियां समझीं और उत्पादन प्रक्रिया को जमीनी स्तर से जाना। यही अनुभव आगे चलकर उनकी सोच का आधार बना कि “किसी उद्योग की असली ताकत उसकी फैक्ट्री में काम करने वाले लोग होते हैं।”
जेआरडी टाटा के आदर्शों से मिला मार्गदर्शन
रतन टाटा के करियर की शुरुआत में जेआरडी टाटा का मार्गदर्शन एक गुरु के समान रहा। उन्होंने रतन टाटा को सिखाया कि एक उद्योगपति केवल आंकड़ों या मुनाफे से बड़ा नहीं होता, बल्कि अपनी कंपनी के लोगों और समाज के प्रति जिम्मेदारी से बनता है।
यही वजह थी कि रतन टाटा ने जब 1991 में टाटा समूह की बागडोर संभाली, तो उन्होंने सिर्फ कंपनी के आकार को नहीं, बल्कि उसकी साख, सामाजिक जिम्मेदारी और वैश्विक छवि को भी नई ऊंचाई दी।
आज कहां पहुंची है टाटा स्टील
वह कंपनी जहां से रतन टाटा ने अपने करियर की शुरुआत की थी – आज वही टाटा स्टील भारत की सबसे बड़ी स्टील कंपनी है। वर्तमान में कंपनी का मार्केट कैप 2.20 लाख करोड़ रुपये से अधिक है। इसके शेयर भी लगातार मजबूती दिखा रहे हैं। ताज़ा आंकड़ों के अनुसार, टाटा स्टील के शेयर में 2.12% की तेजी देखी गई और यह ₹175.50 पर ट्रेड कर रहा है। कंपनी का हाई ₹177.85 तक पहुंच गया।
टाटा स्टील न सिर्फ भारत में, बल्कि यूरोप और एशिया के कई देशों में अपनी मजबूत उपस्थिति रखती है। आज यह ब्रांड विश्वस्तरीय गुणवत्ता, भरोसे और नवाचार का प्रतीक बन चुका है।
एक प्रेरणा जो हमेशा जिंदा रहेगी
रतन टाटा ने अपने जीवन में यह साबित किया कि सच्ची सफलता किसी ऊंचे पद से नहीं, बल्कि विनम्र शुरुआत से आती है। टाटा स्टील में ट्रेनी से शुरू होकर टाटा समूह के चेयरमैन बनने तक की उनकी यात्रा हर युवा के लिए एक सबक है “काम कोई छोटा नहीं होता, इरादा बड़ा होना चाहिए।”
आज उनकी पहली पुण्यतिथि पर देश उन्हें न केवल उद्योग जगत के महारथी के रूप में, बल्कि एक सच्चे इंसान, दूरदर्शी नेता और मानवीय मूल्यों के प्रतीक के रूप में याद कर रहा है।