साल 2025 सोने के लिए यादगार रहा। इस दौरान सोने की कीमतों में लगभग 60% की बढ़ोतरी हुई और यह 50 से अधिक बार अपने उच्चतम स्तर तक पहुंचा। वैश्विक राजनीतिक तनाव, डॉलर की कमजोरी और तेज कीमतों ने सोने को निवेशकों के लिए भरोसेमंद और आकर्षक विकल्प बना दिया।
आने वाला साल, यानी 2026, सोने के लिए कई संभावित परिणाम ला सकता है। वर्ल्ड गोल्ड काउंसिल (WGC) ने तीन प्रमुख परिदृश्य पेश किए हैं, जो वैश्विक आर्थिक और राजनीतिक परिस्थितियों पर आधारित हैं।
पहला परिदृश्य: अगर वैश्विक, और खासकर अमेरिकी अर्थव्यवस्था धीमी रही, तो निवेश और उपभोग दोनों प्रभावित हो सकते हैं। टेक्नोलॉजी सेक्टर की अपेक्षाएँ कम हो सकती हैं, कंपनियों की आय कमजोर रह सकती है और शेयर बाजार में गिरावट आ सकती है। ऐसे माहौल में बेरोजगारी बढ़ सकती है और खपत में कमी आ सकती है। इस स्थिति में फेडरल रिजर्व ब्याज दरों में कटौती कर सकता है, जिससे डॉलर कमजोर होगा और निवेशकों का रुझान सुरक्षित निवेशों, विशेषकर सोने की ओर बढ़ेगा। इस परिदृश्य में सोने की कीमतों में 5% से 15% तक का इजाफा होने की संभावना है।
दूसरा परिदृश्य: अगर वैश्विक राजनीतिक और आर्थिक जोखिम अचानक बढ़ते हैं, जैसे क्षेत्रीय संघर्ष या व्यापारिक तनाव, तो दुनिया की अर्थव्यवस्था पर नकारात्मक असर पड़ सकता है। निवेशक सुरक्षित विकल्पों की ओर झुकेंगे, और सोने की कीमतें 15% से 30% तक बढ़ सकती हैं।
तीसरा परिदृश्य: इसके विपरीत, अगर अमेरिकी अर्थव्यवस्था उम्मीद से बेहतर प्रदर्शन करती है, विकास तेज होता है और महंगाई बढ़ती है, तो फेड ब्याज दरें बढ़ा सकता है या कटौती नहीं कर सकता। ऐसे समय में डॉलर मजबूत रहेगा और निवेशक उच्च रिटर्न वाले विकल्पों की ओर जाएंगे। इससे सोने की कीमतों पर दबाव आएगा और 5% से 20% तक गिरावट संभव है।
केंद्रीय बैंकों की लगातार खरीदारी सोने के लिए सहारा बनी हुई है, खासकर उभरती अर्थव्यवस्थाओं में। हालांकि, अगर ये खरीदारी कम हो जाए या COVID-पूर्व स्तर से नीचे आ जाए, तो सोने की कीमतों पर दबाव बढ़ सकता है। साथ ही, भारत जैसे देशों में रीसाइक्लिंग और गिरवी रखने की गतिविधियाँ भी सोने की आपूर्ति और कीमतों को प्रभावित कर सकती हैं।
संक्षेप में, 2026 सोने के लिए उतार-चढ़ाव वाला साल हो सकता है। धीमी अर्थव्यवस्था में सोने की कीमतें बढ़ सकती हैं, जबकि तेज विकास और ऊँची ब्याज दरों में कीमतों पर दबाव रहेगा। निवेशकों को वैश्विक आर्थिक, राजनीतिक और केंद्रीय बैंकिंग गतिविधियों पर ध्यान रखकर रणनीतिक फैसले लेने होंगे।