Parkinson Breakthrough: पार्किंसन बीमारी को अब तक दुनिया भर में एक ऐसी न्यूरोलॉजिक समस्या माना जाता है जिसका स्थायी इलाज मौजूद नहीं है। दवाइयों से इसके लक्षणों को कुछ हद तक नियंत्रित किया जाता है, लेकिन बीमारी जड़ से खत्म नहीं होती। इस बीमारी में दिमाग का वह हिस्सा प्रभावित होने लगता है जो शरीर की गतिविधियों को नियंत्रित करता है। नतीजा – हाथों में कंपन, चलने-फिरने में दिक्कत, बोलने में अटकाव और रोजमर्रा के सामान्य काम भी मुश्किल हो जाते हैं। लेकिन अब चीन से एक ऐसी रिसर्च सामने आई है जिसने दुनिया भर के वैज्ञानिकों और डॉक्टरों को नई उम्मीद दी है।
चीन के University of Science and Technology के शोधकर्ताओं ने पहली बार स्टेम-सेल आधारित थेरेपी का ऐसा क्लिनिकल ट्रायल किया है, जिसने पार्किंसन के मरीजों में उल्लेखनीय सुधार दिखाया है। यह इलाज न सिर्फ लक्षणों को कम करता है बल्कि बीमारी की जड़ यानी मर चुके डोपामिन न्यूरॉन्स को फिर से बनाने की क्षमता भी रखता है। यदि यह भविष्य में बड़े स्तर पर सफल होता है तो पार्किंसन के इतिहास में यह सबसे बड़ी मेडिकल खोज साबित हो सकती है।
पार्किंसन बीमारी तब बढ़ती है जब दिमाग में डोपामिन बनाने वाले न्यूरॉन्स धीरे-धीरे खत्म होते जाते हैं। डोपामिन वही रसायन है जो शरीर की मूवमेंट, बैलेंस और मांसपेशियों के नियंत्रण को संभालता है। जब इसकी कमी होती है तो कदम लड़खड़ाने लगते हैं, हाथ कांपने लगते हैं और शरीर कमांड लेना बंद कर देता है। आमतौर पर ये बीमारी 60 वर्ष के बाद दिखाई देती है, लेकिन कई बार कम उम्र के लोग भी इससे प्रभावित हो जाते हैं। मौजूदा इलाजों में दवाएँ केवल डोपामिन की कमी को पूरा करने की कोशिश करती हैं, न्यूरॉन्स को दोबारा जन्म नहीं देतीं यही वजह है कि बीमारी धीरे-धीरे बढ़ती रहती है।
चीन की नई रिसर्च इसी कमी को दूर करती दिखाई देती है। वैज्ञानिकों ने लैब में ऐसे स्टेम-सेल तैयार किए हैं जिनमें डोपामिन बनाने वाले न्यूरॉन्स विकसित होते रहते हैं। जब मरीज के दिमाग में ये न्यूरॉन्स कम हो जाते हैं, तो इन स्टेम-सेल को ट्रांसप्लांट करके उन्हें फिर से पैदा किया जा सकता है। यह तरीका दवा से अलग इसलिए है क्योंकि यह समस्या को सतह पर नहीं बल्कि जड़ में जाकर ठीक करने की कोशिश करता है।
रिपोर्ट के मुताबिक, इस थेरेपी का पहला फेज-वन क्लिनिकल ट्रायल पूरा हो चुका है। इसमें छह पार्किंसन मरीजों को स्टेम-सेल ट्रांसप्लांट दिया गया। तीन से चार महीने के भीतर सभी मरीजों में आश्चर्यजनक सुधार देखने को मिला। उनकी चाल सामान्य होने लगी, हाथों का कांपना कम हुआ और कई लोगों ने अपनी दैनिक गतिविधियाँ फिर से बिना मदद शुरू कर दीं। वैज्ञानिकों का कहना है कि यह पहली बार है जब पार्किंसन के वास्तविक कारण – मरे हुए न्यूरॉन्स को फिर से बनाया गया है और यह काम कर रहा है।
हालाँकि, अभी रिसर्च शुरुआती स्टेज में है। केवल छह मरीजों के छोटे ट्रायल में पूरी दुनिया के लिए निष्कर्ष निकालना संभव नहीं। बड़े पैमाने पर टेस्टिंग की जरूरत होगी। ताकि यह समझा जा सके कि यह थेरेपी सभी पर एक समान असर करती है या नहीं, इसके लंबे समय के परिणाम क्या होंगे और क्या इसके कोई गंभीर साइड-इफेक्ट हो सकते हैं। वैज्ञानिक यह भी देखना चाहते हैं कि नए न्यूरॉन्स आने के बाद वे कितने वर्षों तक प्रभावी रहते हैं और क्या बीमारी दोबारा लौट सकती है।
इसके बावजूद, इस ट्रायल ने एक ऐसी संभावना खोली है जिसकी चर्चा दशकों से की जा रही थी – क्या दिमाग में खत्म हो चुके न्यूरॉन्स को दोबारा बनाया जा सकता है? चीन की इस रिसर्च ने इसका जवाब “हाँ” के रूप में दिया है। यह न्यूरोलॉजिकल रोगों के क्षेत्र में एक क्रांतिकारी खोज हो सकती है, क्योंकि पार्किंसन जैसी बीमारियाँ दुनिया भर में बढ़ती जा रही हैं।
भविष्य में अगर यह थेरेपी सुरक्षित और प्रभावी साबित होती है तो लाखों लोगों की ज़िंदगी बदल सकती है। वर्षों से कांपते हाथ, असंतुलित कदम और लगातार बढ़ती निर्भरता शायद इतिहास बन जाए। मेडिकल साइंस की यह खोज इंसान के दिमाग को खुद को ठीक करने की नई क्षमता दे सकती है और यही इस रिसर्च की सबसे बड़ी उम्मीद है।