अमेरिकी राष्ट्रपति donald trump की हालिया एशिया यात्रा ने अंतरराष्ट्रीय राजनीति में नया मोड़ ला दिया है। जो ट्रंप अब तक टैरिफ बढ़ाने और रक्षा खर्च पर दबाव डालने के लिए जाने जाते थे, वही अब अपने एशियाई सहयोगियों से दोस्ती का हाथ बढ़ाते नजर आए। इस दौरे में उनका रुख पहले से कहीं अधिक सौम्य और कूटनीतिक रहा।
दक्षिण कोरिया को मिला भरोसा, रक्षा साझेदारी मजबूत
ट्रंप ने दक्षिण कोरिया को भरोसा दिलाया कि अमेरिका उसके साथ खड़ा है। दोनों देशों के बीच 350 अरब डॉलर की निवेश योजना पर चर्चा हुई। मतभेदों के बावजूद उन्होंने एक नया व्यापार समझौता साइन किया, जिससे दक्षिण कोरिया का वार्षिक निवेश 20 अरब डॉलर तक सीमित रहेगा। इस कदम से विदेशी मुद्रा बाजार में स्थिरता आने की उम्मीद है। इतना ही नहीं, ट्रंप ने सियोल को परमाणु-संचालित पनडुब्बी बनाने की मंजूरी भी दी – यह कदम एशिया-प्रशांत क्षेत्र में अमेरिका के रणनीतिक प्रभाव को और बढ़ाएगा।
जापान संग बढ़ी निकटता
जापान की नई प्रधानमंत्री साने ताकाइची से मुलाकात में ट्रंप ने कहा कि वह किसी भी मदद के लिए उनसे संपर्क कर सकती हैं। दोनों नेताओं के बीच सुरक्षा और व्यापार पर सार्थक बातचीत हुई। जापान में ट्रंप ने अमेरिकी एयरक्राफ्ट कैरियर का दौरा किया और सांस्कृतिक कार्यक्रमों में भाग लेकर स्थानीय जनता का दिल जीता। यही नहीं, जापानी सरकार ने उन्हें सम्मानस्वरूप सोने की गोल्फ बॉल और दिवंगत शिंजो आबे द्वारा इस्तेमाल किया गया पटर भेंट किया जो दोनों देशों की दोस्ती का प्रतीक बन गया।
चीन से ‘संघर्ष विराम’ समझौता, व्यापार युद्ध में राहत की उम्मीद
चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग के साथ हुई बैठक ने वैश्विक अर्थव्यवस्था को राहत दी। महीनों से चल रहे टैरिफ विवाद के बीच दोनों देशों ने एक साल के लिए संघर्ष विराम यानी ट्रेड ट्रूस पर सहमति जताई। इस समझौते से अमेरिका और चीन दोनों को रणनीतिक क्षेत्रों में एक-दूसरे पर निर्भरता कम करने का समय मिलेगा। ट्रंप अप्रैल में शी जिनपिंग के निमंत्रण पर चीन की यात्रा करेंगे। इससे पहले वॉशिंगटन में यह आशंका थी कि ट्रंप ताइवान मुद्दे पर चीन के पक्ष में झुक सकते हैं, लेकिन उन्होंने स्पष्ट कर दिया कि अमेरिका की प्रतिबद्धता पहले जैसी ही रहेगी।
एशिया में कूटनीतिक सौम्यता का नया अध्याय
मलेशिया, वियतनाम और थाईलैंड के साथ भी ट्रंप प्रशासन ने कई व्यापारिक और सुरक्षा समझौते किए। मलेशिया के प्रधानमंत्री अनवर इब्राहिम ने कहा, यह उम्मीद से बेहतर रहा – भरोसा और मित्रता की नई शुरुआत हुई। दौरे के दौरान ट्रंप ने पारंपरिक नृत्य में हिस्सा लिया, झंडे लहराए और स्थानीय लोगों से संवाद किया जिससे उनकी छवि में कूटनीतिक नरमी झलकी। थाई विदेश मंत्री सिहासक फुआंगकेतकेओ ने कहा, “ट्रंप अब शांति के पक्षधर नेता की छवि बनाना चाहते हैं, और हम इसका स्वागत करते हैं।”
भारत-ट्रंप समीकरण पर उठे सवाल
जहां ट्रंप के एशियाई रिश्ते सुधरते दिखे, वहीं भारत के साथ दूरी भी साफ नजर आई। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने आसियान सम्मेलन में भाग नहीं लिया, जिससे ट्रंप से सीधी मुलाकात टल गई। बाद में ट्रंप ने मोदी पर टिप्पणी करते हुए कहा कि “वह सबसे अच्छे दिखने वाले व्यक्ति हैं, लेकिन ‘किलर’ भी हैं।” इस बयान से भारत-अमेरिका संबंधों में हल्का तनाव दिखा।
आलोचनाओं के बावजूद ‘सफल’ बताया दौरा
वॉशिंगटन लौटकर ट्रंप ने सोशल मीडिया पर अपने दौरे को “सफल” बताया। उन्होंने लिखा कि “मजबूत व्यापारिक समझौते हुए और लंबे समय के रिश्तों की नींव रखी गई।” हालांकि विशेषज्ञों का कहना है कि ट्रंप की विदेश नीति अब भी पारंपरिक अमेरिकी रुख से अलग है। अंतरराष्ट्रीय मामलों की विशेषज्ञ बॉनी ग्लेसर के मुताबिक, “ट्रंप की एशिया यात्रा यह नहीं दिखाती कि वे अब परंपरागत अमेरिकी नीति की ओर लौट रहे हैं बल्कि यह उनके व्यक्तिगत शैली की विदेश नीति का विस्तार है।”
टकराव से सहयोग की ओर बढ़ते कदम
ट्रंप की यह एशिया यात्रा कई स्तरों पर ऐतिहासिक कही जा सकती है। वर्षों से चले आ रहे टैरिफ विवादों और तनावपूर्ण रिश्तों के बाद अब अमेरिकी नीति में सहयोग की झलक दिखी है। चाहे चीन के साथ ‘संघर्ष विराम’ हो या दक्षिण कोरिया-जापान के साथ रक्षा साझेदारी ट्रंप ने संकेत दिया है कि अमेरिका अब एशिया से दूरी नहीं, बल्कि भागीदारी चाहता है। और वहीं अगर यह रुख बरकरार रहता है, तो अमेरिका साथ में एशिया-प्रशांत क्षेत्र की स्थिरता के लिए भी एक सकारात्मक संकेत हो सकता है।