भारत और चिली दो भौगोलिक रूप से अलग लेकिन रणनीतिक रूप से महत्त्वपूर्ण देश अब आपसी व्यापार संबंधों को नई ऊंचाइयों पर ले जाने की दिशा में कदम बढ़ा रहे हैं। एक ओर हिमालय की गोद में बसा भारत तो दूसरी ओर दक्षिण अमेरिका के एंडीज पर्वतों में बसा चिली। इन दोनों देशों के बीच बढ़ते व्यापारिक रिश्ते अब वैश्विक मंच पर चर्चा का विषय बनते जा रहे हैं। भारत अब चिली के साथ व्यापार समझौते को और मजबूती देने की कोशिश में है और इसके पीछे कई अहम वजह हैं।
भारत जो दुनिया की सबसे तेजी से बढ़ती अर्थव्यवस्थाओं में से एक है अपने व्यापारिक रिश्तों को विविध और स्थिर बनाना चाहता है। चिली प्राकृतिक संसाधनों से समृद्ध है खासकर तांबा, लिथियम और खनिज जैसे क्षेत्रों में। ये संसाधन भारत की ऊर्जा, इलेक्ट्रॉनिक्स और इलेक्ट्रिक व्हीकल्स जैसी उभरती हुई इंडस्ट्रीज के लिए बेहद जरूरी हैं। ऐसे में भारत चिली के साथ मजबूत व्यापारिक समझौता कर इन संसाधनों की निर्बाध आपूर्ति सुनिश्चित करना चाहता है।
दूसरी ओर चिली भी एशियाई बाजारों में अपनी पहुंच बढ़ाना चाहता है। जहां भारत एक प्रमुख खिलाड़ी बनकर उभरा है। चिली के लिए भारत एक विशाल उपभोक्ता बाजार है जहां उसके फलों, वाइन, सी-फूड और खनिज उत्पादों की अच्छी मांग है। इसी को ध्यान में रखते हुए भारत और चिली के बीच 2006 में ‘प्रिफरेंशियल ट्रेड एग्रीमेंट’ हुआ था। जिसे अब और विस्तारित करने की तैयारी हो रही है। यह समझौता दोनों देशों के बीच आयात-निर्यात को सरल बनाएगा और शुल्कों में छूट देगा।
इस समझौते को बढ़ावा देने का एक बड़ा कारण यह भी है कि भारत अब सिर्फ पारंपरिक साझेदारों पर निर्भर नहीं रहना चाहता। भारत की “एक्ट वेस्ट” नीति के तहत दक्षिण अमेरिकी देशों के साथ व्यापार को मजबूत करना एक रणनीतिक कदम है। भारत और चिली के इस व्यापारिक गठबंधन से न केवल आर्थिक लाभ मिलेगा बल्कि यह एक नया भू-राजनीतिक संतुलन भी स्थापित करेगा। हिमालय और एंडीज के बीच जुड़ती यह डोर आने वाले सालों में वैश्विक व्यापार का एक नया चेहरा बन सकती है।