केंद्रीय मंत्री अश्विनी वैष्णव ने हाल ही में एक महत्वपूर्ण विचार साझा किया है जो भारत के तकनीकी भविष्य और सांस्कृतिक पहचान से जुड़ा हुआ है। उन्होंने कहा कि आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस मॉडल भारत की अपनी भाषा और संस्कृति पर आधारित होना चाहिए। उनका मानना है कि अगर एआई भारत के लिए उपयोगी बनता है तो वह भारतीय समाज उसकी विविधता भाषाओं और परंपराओं को समझने योग्य होना चाहिए। यह विचार न केवल तकनीकी विकास को एक नया आयाम देता है बल्कि डिजिटल युग में भारत की सांस्कृतिक पहचान को भी सहेजने की दिशा में अहम कदम है।

भारत एक बहुभाषी और बहुसांस्कृतिक देश है। यहां सैकड़ों भाषाएं और बोलियां बोली जाती हैं और हर क्षेत्र की अपनी विशिष्ट सांस्कृतिक पहचान है। ऐसे में अगर आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस केवल अंग्रेजी या अन्य विदेशी भाषाओं में प्रशिक्षित होगा तो वह भारतीय जनमानस की जरूरतों और सोच को सही ढंग से नहीं समझ पाएगा। इसलिए जरूरी है कि एआई मॉडल भारतीय भाषाओं में संवाद करने में सक्षम हो और उसकी सोच में भारत की संस्कृति की झलक हो।
अश्विनी वैष्णव ने यह भी कहा कि एआई को भारत की विविधता के अनुरूप विकसित किया जाना चाहिए। भारत में हिंदी, तमिल, तेलुगू, बंगाली, मराठी, गुजराती, कन्नड़, मलयालम, उर्दू सहित कई प्रमुख भाषाएं हैं। इसके अलावा आदिवासी भाषाओं का भी एक बड़ा समूह है। अगर एआई इन सभी भाषाओं में दक्षता प्राप्त करे तो यह तकनीक समाज के हर वर्ग तक पहुंच सकेगी। इससे डिजिटल समावेशन को बढ़ावा मिलेगा और ग्रामीण व दूरदराज के क्षेत्रों में भी एआई की पहुंच संभव हो सकेगी।
अश्विनी वैष्णव ने विशेष रूप से यह भी कहा कि केवल अनुवाद से काम नहीं चलेगा बल्कि एआई को भाषा की भावनाओं और संदर्भों को भी समझना होगा। भारत की भाषाएं सिर्फ संवाद का माध्यम नहीं बल्कि संस्कृति, परंपरा और विचारों की वाहक हैं। जब एआई भारतीय भाषाओं में प्रशिक्षित होगा तो वह भारतीय सामाजिक व्यवहार, लोककथाएं, रीति-रिवाज और यहां तक कि त्योहारों के अर्थ को भी बेहतर ढंग से समझ पाएगा।
यह पहल भारत को वैश्विक एआई परिदृश्य में एक विशिष्ट स्थान दिला सकती है। जब दुनिया के कई देश अपने-अपने क्षेत्रीय एआई मॉडल पर काम कर रहे हैं तब भारत के लिए यह आवश्यक हो जाता है कि वह भी अपने नागरिकों के लिए ऐसा तकनीकी ढांचा तैयार करे जो उनकी भाषा में संवाद करे उनकी संस्कृति को समझे और उनके अनुभवों से जुड़ा हो।
सरकार पहले से ही ‘डिजिटल इंडिया’, ‘मेक इन इंडिया’ और ‘स्टार्टअप इंडिया’ जैसे कार्यक्रमों के तहत तकनीकी आत्मनिर्भरता की दिशा में काम कर रही है। अब एआई के क्षेत्र में ‘भारत का एआई मॉडल’ विकसित करना इस दिशा में एक और मजबूत कदम होगा। इससे न केवल देश की तकनीकी क्षमता बढ़ेगी बल्कि वैश्विक मंच पर भारत की सांस्कृतिक सशक्तता भी प्रदर्शित होगी।
अश्विनी वैष्णव का यह विचार एक प्रेरणादायक दिशा प्रदान करता है। इससे यह स्पष्ट होता है कि तकनीक और संस्कृति को एक साथ लेकर चलना अब केवल एक विकल्प नहीं बल्कि आवश्यकता बन चुका है। जब एआई भारत की आवाज में बोलेगा तब वह भारत के दिल से जुड़ेगा – और यही होगा आत्मनिर्भर भारत की असली पहचान।
एआई का भारतीय भाषाओं और संस्कृति पर आधारित विकास न केवल तकनीकी दृष्टि से महत्वपूर्ण है बल्कि यह भारत की आत्मा से जुड़ा एक सांस्कृतिक आंदोलन भी है। अश्विनी वैष्णव का यह विचार न सिर्फ नीति-निर्माताओं के लिए दिशा दिखाता है बल्कि पूरे समाज के लिए एक नई सोच का मार्ग प्रशस्त करता है।