ईरान और इजरायल के बीच लंबे समय से चल रहे तनाव में अचानक ठहराव आने से न केवल भू-राजनीतिक हलकों में हलचल मची, बल्कि इसका असर सीधे भारतीय वित्तीय बाजारों पर भी दिखा। मंगलवार को रुपये ने अमेरिकी डॉलर के मुकाबले एक महीने की सबसे बड़ी बढ़त दर्ज की, जिससे संकेत मिलता है कि वैश्विक स्तर पर शांति की दिशा में उठाए गए कदमों का सीधा असर घरेलू बाजारों पर पड़ता है।
कारोबारी सत्र में रुपया 85.97 प्रति डॉलर के स्तर पर बंद हुआ, जबकि सोमवार को यह 86.75 पर था। यानी एक दिन में ही रुपये ने करीब 0.91 प्रतिशत की छलांग लगाई। यह इस कैलेंडर वर्ष की दूसरी सबसे बड़ी दैनिक बढ़त है। इससे पहले 23 मई को रुपया 0.93 प्रतिशत मजबूत हुआ था। मुद्रा विशेषज्ञों का कहना है कि संघर्ष विराम के अलावा कच्चे तेल की कीमतों में आई गिरावट और डॉलर सूचकांक में कमजोरी ने भी रुपये को सहारा दिया।
एक निजी बैंक के ट्रेजरी प्रमुख ने बताया कि जब ब्रेंट क्रूड की कीमतें 70 डॉलर प्रति बैरल से नीचे आईं और डॉलर सूचकांक में कमजोरी दिखी, तो रुपये पर बना दबाव पूरी तरह खत्म हो गया। उन्होंने कहा, “ईरान और इजरायल के बीच संघर्ष विराम की घोषणा के बाद निवेशकों का भरोसा बढ़ा और उन्होंने रुपये में दिलचस्पी दिखानी शुरू कर दी।”
घोषणा का असर सिर्फ मुद्रा बाजार तक ही सीमित नहीं रहा। घरेलू शेयर बाजारों में भी इस खबर का तत्काल सकारात्मक प्रभाव देखा गया। बीएसई सेंसेक्स एक समय 83,018 के स्तर तक पहुंच गया। हालांकि अंत में यह 158 अंकों की मामूली बढ़त के साथ 82,055 पर बंद हुआ। एनएसई निफ्टी ने भी कारोबार के दौरान 25,318 का नौ महीने का उच्चतम स्तर छूने के बाद 25,044 पर क्लोजिंग दी।
हालांकि बाजार की यह खुशी ज्यादा देर टिक नहीं पाई। संघर्ष विराम की घोषणा के तुरंत बाद इजरायल ने ईरान पर उसका उल्लंघन करने का आरोप लगाया, जिससे बाजार में कुछ हद तक अनिश्चितता लौट आई। बावजूद इसके रुपये की मजबूती एक सकारात्मक संकेत है।
मौजूदा वित्त वर्ष में डॉलर की तुलना में रुपया अब तक 0.5 प्रतिशत मजबूत हुआ है जबकि पूरे कैलेंडर वर्ष की बात करें तो यह 0.4 प्रतिशत कमजोर हुआ है। लेकिन मौजूदा संकेतकों को देखते हुए विशेषज्ञ उम्मीद कर रहे हैं कि आने वाले कारोबारी सत्रों में रुपया और मजबूती हासिल कर सकता है।
मंगलवार को अंतरराष्ट्रीय बाजार में कच्चे तेल की कीमतों में 15 प्रतिशत की बड़ी गिरावट देखी गई और यह 69 डॉलर प्रति बैरल तक आ गया। इसी तरह डॉलर सूचकांक 0.2 प्रतिशत लुढ़क कर 98 पर आ गया। यह सूचकांक छह प्रमुख वैश्विक मुद्राओं के मुकाबले अमेरिकी डॉलर की स्थिति को दर्शाता है। मेकलाई फाइनैंशियल सर्विसेस के उपाध्यक्ष ऋतेश भंसाली ने कहा, “रुपये के लिए 85.80 एक मजबूत सपोर्ट लेवल है। अगर यह स्तर टूटता है, तो रुपये में और मजबूती देखी जा सकती है। हालांकि अगर यह 86.70 के पार गया तो 87.20 तक जा सकता है, मगर उससे ऊपर नहीं।”
देश का विदेशी मुद्रा भंडार भी रुपये को स्थिरता देने में बड़ी भूमिका निभा रहा है। फिलहाल भारत का फॉरेन रिजर्व 699 अरब डॉलर है, जो पिछले साल सितंबर में रिकॉर्ड 705 अरब डॉलर था। इसके अलावा एचडीबी फाइनैंशियल सर्विसेस का IPO, एफटीएसई में पुनर्संतुलन (rebalancing) और एसबीआई का 25,000 करोड़ रुपये का क्यूआईपी जैसे कारक भारत में विदेशी निवेश को बढ़ावा दे सकते हैं, जिससे रुपये को और बल मिलेगा। संक्षेप में कहा जाए तो वैश्विक राजनीति की करवट और आर्थिक परिस्थितियों के मेल से भारतीय रुपया फिलहाल फायदे की स्थिति में है, मगर यह टिकाऊ कितना रहेगा इसका जवाब आने वाले सप्ताह तय करेंगे।