नई दिल्ली: भारत की अर्थव्यवस्था में तेज GDP ग्रोथ के बीच एक चिंता बढ़ाने वाली खबर सामने आई है – अक्टूबर महीने में देश का Industrial production 13 महीनों के निचले स्तर पर आ गया। सांख्यिकी एवं कार्यक्रम कार्यान्वयन मंत्रालय द्वारा जारी ताज़ा आंकड़ों के अनुसार इंडेक्स ऑफ इंडस्ट्रियल प्रोडक्शन (IIP) में साल-दर-साल सिर्फ 0.4 फीसदी की मामूली बढ़त दर्ज की गई। यह वृद्धि इतनी कमजोर है कि पिछले साल अक्टूबर में जहां IIP 3.7% बढ़ा था, वहीं इस साल वृद्धि लगभग ठहर गई। सितंबर में भी औद्योगिक उत्पादन 4.6% था, जो अक्टूबर में अचानक गिर गया। इस सुस्ती के पीछे मैन्युफैक्चरिंग, माइनिंग और बिजली उत्पादन जैसे प्रमुख सेक्टरों में गिरावट को मुख्य कारण माना जा रहा है।
मैन्युफैक्चरिंग सेक्टर, जो IIP का सबसे बड़ा हिस्सा है, अक्टूबर में सिर्फ 1.8% बढ़ पाया। यह पिछले वर्ष के 4.4% की तुलना में काफी नीचे है। यानी, फैक्ट्रियों में उत्पादन की रफ्तार आखिर क्यों धीमी पड़ गई? एक्सपर्ट्स का मानना है कि उत्पादन में कमी, इन्वेंट्री बढ़ने और नए ऑर्डर्स की धीमी गति ने कुल मिलाकर सेक्टर पर दबाव बढ़ाया। दूसरी ओर, माइनिंग सेक्टर में तो सीधा 1.8% का गिरावट देखने को मिली, जबकि पिछले साल इसी महीने 0.9% की ग्रोथ दर्ज की गई थी। यह गिरावट बताती है कि खनन गतिविधियों पर मौसम और उत्पादन योजना दोनों का असर पड़ा है। वहीं बिजली उत्पादन में 6.9% की भारी कमी देखने को मिली, जो पिछले साल की 2% की सकारात्मक ग्रोथ के बिल्कुल उलट है। यह गिरावट औद्योगिक गतिविधियों पर सीधे प्रभाव डालती है, क्योंकि पावर सप्लाई किसी भी उत्पादन प्रक्रिया की रीढ़ मानी जाती है।
कंज्यूमर ड्यूरेबल्स जैसे टीवी, फ्रिज और इलेक्ट्रॉनिक उपकरणों की कैटेगरी भी इस बार उम्मीदों पर खरी नहीं उतर सकी। यहां ग्रोथ -0.5% रही, जबकि कंज्यूमर नॉन-ड्यूरेबल्स में तो मांग और उत्पादन दोनों में बड़ी गिरावट दिखी और यह आंकड़ा -4.4% रहा। यह संकेत है कि घरेलू उपभोक्ता खर्च में इस अवधि में कमजोर रुझान देखने को मिला है। त्योहारी सीजन के बावजूद मांग में यह गिरावट अर्थव्यवस्था के लिए चिंता का विषय बनती जा रही है।
इस वित्त वर्ष के पहले सात महीनों यानी अप्रैल से अक्टूबर तक औद्योगिक उत्पादन की औसत ग्रोथ सिर्फ 2.7% रही है, जबकि पिछले साल यही आंकड़ा 4% था। यह साफ दिखाता है कि आर्थिक गतिविधियां इस साल चुनौतीपूर्ण परिस्थितियों से गुजर रही हैं। लंबी बारिश, सप्लाई चेन में बाधाएं, ग्लोबल इकोनॉमिक स्लोडाउन और घरेलू मांग में गिरावट – ये सभी कारक मिलकर उत्पादन की गति को कमजोर कर रहे हैं।
बाजार विशेषज्ञों और अर्थशास्त्रियों की राय भी यही संकेत देती है। बैंक ऑफ बड़ौदा के चीफ इकनॉमिस्ट मदन सवनवीस के अनुसार इस बार मॉनसून का सीजन सामान्य से ज्यादा लंबा खिंचा, जिससे माइनिंग और बिजली उत्पादन पर सीधा असर पड़ा। इसके अलावा अक्टूबर में त्योहारों के कारण वर्किंग डेज कम रहे, जिसका सीधा असर फैक्ट्री आउटपुट पर पड़ा। उन्होंने यह भी कहा कि तीसरी तिमाही इंडस्ट्री के लिए बेहद महत्वपूर्ण साबित हो सकती है, क्योंकि GST में कमी और इनकम टैक्स में राहत का प्रभाव आने वाले महीनों में उपभोक्ता खर्च बढ़ाकर उत्पादन को गति दे सकता है।
इसी बीच एक और महत्वपूर्ण संकेत HSBC इंडिया मैन्युफैक्चरिंग परचेजिंग मैनेजर्स इंडेक्स (PMI) से मिलता है, जो नवंबर में घटकर 55.6 पर आ गया। अक्टूबर में यह 59.2 था और लगातार कई महीनों से तेजी दिखा रहा था। रिपोर्ट के अनुसार, सेल्स और प्रोडक्शन में सुस्त बढ़ोतरी ने PMI को नीचे खींचा है। पीएमआई में गिरावट यह संकेत देती है कि फैक्ट्रियों में नई मांग उतनी मजबूत नहीं है जितनी पहले थी। HSBC की चीफ इंडिया इकनॉमिस्ट प्रांजल भंडारी के मुताबिक अमेरिकी टैरिफ और ग्लोबल ट्रेड टेंशन का बड़ा असर भारतीय मैन्युफैक्चरिंग पर नजर आ रहा है। विशेष रूप से नए एक्सपोर्ट ऑर्डर्स 13 महीनों के निचले स्तर पर पहुंच गए हैं, जो भविष्य में निर्यात आधारित वृद्धि के लिए चुनौती बन सकते हैं।
अक्टूबर का महीना औद्योगिक क्षेत्र के लिए धीमी रफ्तार वाला रहा। हालांकि अर्थशास्त्रियों का मानना है कि आने वाले महीनों में त्योहारों के बाद की मांग, बेहतर मौसमी परिस्थितियां और सरकार की नीतिगत पहलें इंडस्ट्री को दोबारा गति दे सकती हैं। लेकिन फिलहाल, 13 महीनों की इस सबसे धीमी ग्रोथ ने नीति-निर्माताओं और उद्योग जगत दोनों को सतर्क कर दिया है कि यदि उत्पादन को मजबूत करना है, तो ग्लोबल और घरेलू – दोनों मोर्चों पर तेजी से सुधार की जरूरत है।