महाराष्ट्र के नासिक ज़िले के एक छोटे से गांव अवानखेड़ का रहने वाला 17 वर्षीय आदित्य पिंगले आज गांवों में तकनीकी बदलाव की मिसाल बन चुका है। उसके पास न तो कोई लैब थी, न कोई बड़ी टीम और न ही लाखों की फंडिंग। लेकिन एक चीज़ थी – एक बड़ा दिल और कुछ कबाड़ के पुर्जे। आदित्य ने ऐसा काम कर दिखाया है जिससे न सिर्फ़ उसके गांव के किसान बल्कि पूरे देश के किसान राहत की सांस ले सकते हैं। उन्होंने ‘कृषिबॉट’ नाम का एक रोबोट बनाया है, जो खेतों में कीटनाशक छिड़काव का काम करता है और किसानों को भारी टैंक ढोने से बचाता है।
दर्द देखकर आया कृषिबॉट का आइडिया
आदित्य के चाचा अंगूर की खेती करते हैं। उन्हें हर रोज़ 20 लीटर के कीटनाशक टैंक को पीठ पर लादकर खेत में छिड़काव करना पड़ता था। रोज़ थक-हारकर घर आते समय उनकी पीठ और जोड़ों का दर्द साफ़ नज़र आता था। यह देखकर आदित्य का दिल भर आया। चाचा को हर दिन दर्द में देखकर आदित्य को लगा कि, कुछ तो ऐसा होना चाहिए जिससे उनका बोझ हल्का हो सके। वहीं से ‘कृषिबॉट’ का ख्याल आया।
स्कूल का सहारा, सीखने का ज़ज्बा
आदित्य के पास न तो रोबोटिक्स का कोई प्रशिक्षण था और न ही कोई टेक्नोलॉजी लैब। लेकिन 2023 में उन्होंने सलाम बॉम्बे फाउंडेशन द्वारा चलाए जा रहे एक मोबाइल रिपेयरिंग कोर्स में दाखिला लिया। इस कोर्स में उन्हें STEM और रोबोटिक्स की मूल बातें सीखने को मिलीं। फाउंडेशन से उसे कोडिंग, मोबाइल टेक्नोलॉजी और बेसिक इलेक्ट्रॉनिक्स सिखने को मिला। वहीं घर पर उनके पिता ने वेल्डिंग और औजारों से काम करना सिखाया। दोस्तों पराशराम पिंगले और अभिजीत पवार ने भी डिज़ाइन और तकनीकी सलाह में आदित्य का साथ दिया।
कबाड़ से बना पहला रोबोट मिली पहली नाकामी
बिना किसी लैब के आदित्य ने गांव के कबाड़ से पुर्जे इकट्ठा किए। पुराने खिलौनों के पहिए, बेकार बैटरियां, और स्क्रैप से बने ढांचे से उन्होंने पहला कृषिबॉट बनाया। लेकिन यह बॉट बहुत भारी था और खेतों में आसानी से नहीं चल पा रहा था। आदित्य की पहली कोशिश विफल रही लेकिन वो रुका नहीं। मैंने फिर से शुरू किया और हल्की चीज़ों से नया मॉडल बनाया।
दूसरी कोशिश में मिला कमाल का नतीजा
इस बार आदित्य ने छोटे टायर्स, हल्की बैटरी और पुराने खिलौनों से पुर्जे निकालकर नया रोबोट तैयार किया। बॉट 16 लीटर तक टैंक ढो सकता है, मोबाइल से नियंत्रित होता है और नोडएमसीयू नामक वाई-फाई माइक्रोकंट्रोलर से चलता है। उन्होंने इसमें 360 डिग्री कैमरा भी लगाया जिससे किसान अपने मोबाइल से खेत का दृश्य देख सकते हैं। साथ ही एक ऐसा स्प्रे सिस्टम जो फसल की ऊंचाई के अनुसार ऊपर-नीचे किया जा सकता है। इससे यह अलग-अलग फसलों जैसे अंगूर और पुदीना के लिए उपयोगी बन गया।
परिवार में पहला प्रयोग
आदित्य ने अपने चाचा के अंगूर के खेत और दादा के पुदीने की फसल में इसका परीक्षण किया। परिणाम पॉजिटिव रहे। आदित्य के चाचा संदीप पिंगले ने बताया कि, “पहले उन्हें छिड़काव में डेढ़ घंटा लगता था, अब बिना बोझ उठाए एक घंटे से भी कम समय में हो जाता है। यह तेज़, सुरक्षित और आरामदायक है।
प्रतियोगिता से बढ़ी पहचान
आदित्य ने अपने इस बॉट को टेकविज़न और लेगो लीग गोवा जैसी प्रतियोगिताओं में भी प्रस्तुत किया। जब हवाई यात्रा में बॉट ले जाने में समस्या आई तो उन्होंने इसे फोल्डेबल बना दिया जिससे इसे आसानी से लेकर ट्रैवल किया जा सके। अब यह रोबोट 3 घंटे तक लगातार चल सकता है और सिर्फ 40 मिनट में रिचार्ज हो जाता है।
सलाम बॉम्बे फाउंडेशन की भूमिका
फाउंडेशन के चीफ ग्रोथ ऑफिसर गौरव अरोड़ा बताते हैं, “आदित्य में स्पष्ट सोच और एक उद्देश्य की झलक थी। उन्होंने बिना किसी लैब और संसाधन के भी नवाचार कर दिखाया। यह असली इनोवेशन है – जब आपके पास कुछ नहीं होता और आप कुछ बना लेते हैं।”
भविष्य की योजनाएं
अब जब आदित्य का कृषिबॉट पूरी तरह से काम कर रहा है तो वे इसे बड़े स्तर पर किसानों तक पहुंचाना चाहते हैं। वे कहते हैं, “मैं चाहता हूं कि और भी कृषिबॉट बनाऊं और किसानों को मुफ़्त में दूं। साथ ही एक ऐसा रोबोट बनाना चाहता हूं जो कीट मारे, घास काटे और खेत की देखभाल करे।” वे बॉट को और भी कस्टमाइज़ करना चाहते हैं ताकि सिर्फ नोजल या टायर बदलकर इसे किसी भी फसल और इलाके में इस्तेमाल किया जा सके।
देश के किसानों की उम्मीद
आदित्य की कहानी यह साबित करती है कि नवाचार के लिए बड़ी लैब या मोटा पैसा ज़रूरी नहीं। बस ज़रूरत होती है एक सोच, एक मकसद और उसे पूरा करने की जिद। एक गांव का 17 वर्षीय लड़का – जो अपने पिता से वेल्डिंग सीखता है और दोस्तों के साथ स्क्रैप से पुर्जे जोड़ता है, उसने जो किया है वो न केवल प्रेरणादायक है बल्कि भारतीय खेती के भविष्य के लिए आशा की किरण भी है।