लखनऊ। सीएसआईआर-केंद्रीय औषधि अनुसंधान संस्थान (सीएसआईआर-सीडीआरआई), लखनऊ अपनी स्थापना के 75 वर्ष पूरे होने पर वर्षभर चल रहे विविध आयोजनों की श्रृंखला में लगातार वैज्ञानिक और सामाजिक सरोकारों से जुड़े विषयों पर ध्यान केंद्रित कर रहा है। इसी क्रम में संस्थान ने 28 जुलाई को “ट्रांसलेशनल रिसर्च लेक्चर सीरीज़” के अंतर्गत डायबिटीज़ जैसी गंभीर मेटाबोलिक बीमारी के नए संभावित उपचार पर आधारित एक विशेष व्याख्यान का आयोजन किया।
इंसुलिनो-मिमेटिक यौगिक पर वैज्ञानिक व्याख्यान
इस व्याख्यान का विषय था – “डायमिथाइल पेरॉक्सी वनेडेट: एक इंसुलिनो-मिमेटिक यौगिक जो इंसुलिन संवेदनशीलता को भी बेहतर बनाता है”। व्याख्यान के लिए देश के ख्याति प्राप्त एंडोक्राइनोलॉजिस्ट डॉ. सतीनाथ मुखोपाध्याय (एमडी, डीएम, एफआरसीपी – लंदन), आईपीजीएमईआर-एसएसकेएम हॉस्पिटल, कोलकाता को आमंत्रित किया गया था।
डॉ. मुखोपाध्याय ने अपने व्याख्यान में विस्तार से बताया कि किस प्रकार डायमिथाइल पेरॉक्सी वनेडेट नामक यौगिक शरीर में इंसुलिन के जैसे कार्य करता है और साथ ही यह यौगिक इंसुलिन के प्रति संवेदनशीलता को बढ़ाता है। उन्होंने बताया कि यह यौगिक शरीर में इंसुलिन सिग्नलिंग को उस स्थिति में भी सक्रिय कर सकता है जब इंसुलिन की मात्रा कम हो या पूरी तरह अनुपस्थित हो। इस गुण के चलते यह यौगिक टाइप 2 डायबिटीज़ या इंसुलिन रेसिस्टेंस से जूझ रहे मरीजों के लिए एक आशाजनक विकल्प के रूप में देखा जा रहा है।
प्री-क्लिनिकल स्टडी और संभावनाएं
डॉ. मुखोपाध्याय ने बताया कि प्री-क्लिनिकल अध्ययनों से यह साबित हुआ है कि यह यौगिक शरीर की कोशिकाओं में अधिक मात्रा में ग्लूकोज़ को अवशोषित करने में सहायक होता है। इसका अर्थ यह है कि यदि यह यौगिक दवा के रूप में विकसित होता है, तो यह डायबिटीज़ के मरीजों को बाहरी इंसुलिन पर निर्भरता से काफी हद तक राहत दे सकता है। उन्होंने इसकी सुरक्षा, कार्यप्रणाली और दवा विकास में संभावनाओं पर भी प्रकाश डाला।
कार्यक्रम की अध्यक्षता और संस्थान की भूमिका
इस व्याख्यान कार्यक्रम की अध्यक्षता सीएसआईआर-सीडीआरआई की निदेशक डॉ. राधा रंगराजन ने की। उन्होंने ट्रांसलेशनल रिसर्च की भूमिका को रेखांकित करते हुए कहा कि यह वैज्ञानिक अनुसंधान को सीधे आमजन के लाभ के लिए उपचारों में बदलने का काम करता है। उन्होंने बताया कि डायबिटीज़ जैसे जीवनशैली से जुड़ी बीमारियों के लिए नए समाधान ढूंढना न केवल एक वैज्ञानिक चुनौती है, बल्कि एक सामाजिक जिम्मेदारी भी है।
मुख्य अतिथि की उपस्थिति और TKDL की भूमिका
कार्यक्रम की मुख्य अतिथि थीं – डॉ. विश्वजननी जे. सत्तिगेरी, जो वर्तमान में सीएसआईआर-परंपरागत ज्ञान डिजिटल पुस्तकालय (TKDL), नई दिल्ली की प्रमुख हैं। डॉ. सत्तिगेरी भारत में पारंपरिक औषधीय ज्ञान के डिजिटलीकरण और वैश्विक बौद्धिक संपदा अधिकारों से सुरक्षा के लिए जानी जाती हैं। उनके नेतृत्व में TKDL एक ऐसी पहल बनी है जिसने दुनियाभर में पारंपरिक ज्ञान की चोरी (बायोपायरेसी) को रोकने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है।
विचारशील सहभागिता और ऑनलाइन सहभागिता
यह व्याख्यान न केवल ऑफलाइन बल्कि ऑनलाइन भी प्रसारित किया गया, जिसमें संस्थान के वैज्ञानिकों, चिकित्सकों, शोधकर्ताओं और विभिन्न विश्वविद्यालयों के विद्यार्थियों ने भाग लिया। व्याख्यान के बाद आयोजित प्रश्नोत्तर सत्र में छात्रों और प्रतिभागियों ने बड़े उत्साह से भाग लिया और कई वैज्ञानिक और व्यवहारिक प्रश्न पूछे गए।
अनुसंधान से उपचार तक का सफर
यह व्याख्यान इस बात का प्रमाण है कि सीएसआईआर-सीडीआरआई अनुसंधान को समाज के स्वास्थ्य से सीधे जोड़ने की दिशा में गंभीर प्रयास कर रहा है। डायबिटीज़ जैसी बीमारियों से निपटने के लिए इस तरह के यौगिक और उनके पीछे का वैज्ञानिक शोध भविष्य में बेहतर उपचार विकल्पों के द्वार खोल सकते हैं। इस कार्यक्रम के माध्यम से संस्थान ने एक बार फिर यह दिखाया है कि वह केवल प्रयोगशालाओं तक सीमित नहीं, बल्कि समाज के स्वास्थ्य और कल्याण के लिए भी सक्रिय रूप से योगदान दे रहा है।