नई दिल्ली। भारत तेजी से एक मैन्युफैक्चरिंग हब बनने की ओर बढ़ रहा है। ‘मेक इन इंडिया’, PLI स्कीम और आत्मनिर्भर भारत जैसी योजनाएं इसी दिशा में उठाए गए कदम हैं। इनका मकसद देश में निर्माण को बढ़ावा देना, विदेशों से आयात पर निर्भरता घटाना और भारत को एक्सपोर्ट का बड़ा खिलाड़ी बनाना। लेकिन इसके रास्ते में सबसे बड़ा रोड़ा है – चीन से अब भी चलती हमारी सप्लाई चेन।
खिलौनों में आत्मनिर्भरता, लेकिन अधूरी
एक समय था जब भारत के बाजार चीन में बने खिलौनों से भरे रहते थे। लेकिन अब हालात बदले हैं। भारत ने खिलौनों के आयात पर सख्ती की है, जिससे 2019 से 2024 के बीच खिलौनों का आयात 80 प्रतिशत तक गिर गया। यह 304 मिलियन डॉलर से घटकर 64.9 मिलियन डॉलर हो गया। लेकिन दूसरी तरफ, भारतीय खिलौनों का एक्सपोर्ट घट गया है। 2023-24 में यह 153.9 मिलियन डॉलर से गिरकर 152.3 मिलियन डॉलर हो गया। साथ ही खिलौनों के लिए जरूरी कंपोनेंट्स जैसे – LED, सर्किट बोर्ड, प्लास्टिक और पैकेजिंग सामग्री अब भी चीन से ही आती है।
स्मार्टफोन में बढ़त, लेकिन जड़ें अब भी चीन में
भारत अब मोबाइल फोन उत्पादन में दुनिया का दूसरा सबसे बड़ा देश बन गया है। 2024-25 में 24.1 बिलियन डॉलर के स्मार्टफोन निर्यात किए गए, जो पिछले साल से 55 फीसदी ज्यादा है। लेकिन गौर से देखें तो यह सफलता आधी अधूरी है। तैयार स्मार्टफोन के साथ-साथ भारत ने 7.15 बिलियन डॉलर के स्मार्टफोन कंपोनेंट्स भी आयात किए, जिनमें से 51.7 प्रतिशत चीन से आए। फोन पार्ट्स का 55 प्रतिशत से ज्यादा आयात भी चीन से हुआ।
टेक्नीशियन और शिपमेंट में चीन की बाधा
ICEA (इंडिया सेल्युलर एंड इलेक्ट्रॉनिक्स एसोसिएशन) का कहना है कि चीन से शिपमेंट में देरी और टेक्नीशियन वीज़ा में दिक्कत की वजह से भारत का 2026 तक का 32 अरब डॉलर एक्सपोर्ट लक्ष्य खतरे में पड़ सकता है। उनका कहना है कि वित्त वर्ष 2025 में 24 अरब डॉलर के मैन्युफैक्चरिंग एक्सपोर्ट के बाद 2026 में 32 अरब का टारगेट है, लेकिन सप्लाई चेन में चीन पर निर्भरता बड़ी बाधा बन सकती है।
चीन की साझेदारी में काम कर रहीं भारतीय कंपनियां
भारत की कुछ बड़ी कंपनियां चीन के साथ मिलकर काम कर रही हैं। जैसे कि डिक्सन टेक्नोलॉजीज, जिनकी चीन की कंपनियों में भागीदारी है। एप्पल, सैमसंग और शाओमी भले भारत में फोन बना रहे हों, लेकिन इन फोन में इस्तेमाल होने वाले अधिकतर पार्ट्स चीन से आते हैं।
इन क्षेत्रों में अब भी चीन पर निर्भरता
इलेक्ट्रॉनिक्स – कंप्यूटर, लैपटॉप, टैबलेट, मॉनिटर, फ्लैट पैनल डिस्प्ले
सेमीकंडक्टर – सिलिकॉन वेफर्स, सर्किट चिप्स
सोलर एनर्जी – सोलर सेल, सोलर पैनल
फार्मा – एरिथ्रोमाइसिन, एंटीबायोटिक API
इंडस्ट्रियल उपकरण – एम्ब्रॉयडरी मशीन, एल्युमिनियम प्लेट
क्या होगा आगे का रास्ता?
सरकार अब इलेक्ट्रॉनिक कंपोनेंट मैन्युफैक्चरिंग को बढ़ावा देने के लिए नई योजनाएं ला रही है। गुजरात में सेमीकंडक्टर फैक्ट्री बनाई जा रही है, जिससे उम्मीद है कि इलेक्ट्रॉनिक उत्पादन के लिए चीन पर निर्भरता घटेगी।
सपना बड़ा है, पर रास्ता लंबा है
‘मेक इन इंडिया’ का सपना सिर्फ नारे से नहीं, वास्तविक उत्पादन और आत्मनिर्भरता से पूरा होगा। भारत ने कुछ क्षेत्रों में बड़ी प्रगति की है, लेकिन जब तक निर्माण की हर परत-कच्चे माल से लेकर कंपोनेंट तक देश में नहीं बनेगी, तब तक चीन की परछाई से पूरी तरह आज़ादी मिलना मुश्किल है। सरकार, उद्योग और नीति-निर्माताओं को मिलकर चीन पर निर्भरता खत्म करने की रणनीति बनानी होगी। तभी ‘मेक इन इंडिया’ सच में ‘मेड बाई इंडिया’ बन पाएगा।