भारत में बैंकिंग व्यवस्था को ज्यादा पारदर्शी, सुरक्षित और मजबूत बनाने के लिए सरकार ने एक ऐतिहासिक कदम उठाया है। 1 अगस्त 2025 से नया बैंकिंग लॉ (संशोधन) अधिनियम, 2025 लागू कर दिया गया है। इस नए कानून के तहत कई पुराने नियमों को बदला गया है, जो पिछले कई दशकों से वैसे ही चले आ रहे थे। खास बात यह है कि ‘सब्स्टेंशियल इंटरेस्ट’ की सीमा 5 लाख से बढ़ाकर 2 करोड़ रुपये कर दी गई है। यह संशोधन पूरे 57 साल बाद किया गया है, जिससे यह बदलाव और भी खास बन जाता है।
किस-किस कानून में हुए बदलाव?
यह अधिनियम कुल पांच पुराने कानूनों में संशोधन करता है –
- भारतीय रिजर्व बैंक अधिनियम, 1934
- बैंकिंग विनियमन अधिनियम, 1949
- स्टेट बैंक ऑफ इंडिया अधिनियम, 1955
- बैंकिंग कंपनियां (अधिग्रहण और हस्तांतरण) अधिनियम, 1970
- बैंकिंग कंपनियां (अधिग्रहण और हस्तांतरण) अधिनियम, 1980
इन कानूनों में कुल 19 संशोधन किए गए हैं, जो बैंकिंग व्यवस्था की कार्यप्रणाली में बड़ा बदलाव लाएंगे।
कब से लागू हुए नए नियम?
सरकार ने 29 जुलाई को एक अधिसूचना जारी की, जिसमें कहा गया कि 1 अगस्त 2025 से धारा 3, 4, 5, 15, 16, 17, 18, 19 और 20 को लागू कर दिया जाएगा। इसका मतलब यह है कि अब नए नियम देशभर में प्रभावी हो चुके हैं।
‘सब्स्टेंशियल इंटरेस्ट’ की नई परिभाषा
इस अधिनियम के तहत सबसे बड़ा बदलाव ‘सब्स्टेंशियल इंटरेस्ट’ की परिभाषा में किया गया है। पहले अगर किसी व्यक्ति या संस्था की बैंक में हिस्सेदारी 5 लाख रुपये या उससे ज्यादा होती थी, तो उसे ‘सब्स्टेंशियल इंटरेस्ट’ माना जाता था। अब यह सीमा बढ़ाकर 2 करोड़ रुपये कर दी गई है। इसका मकसद बड़े निवेशकों और हितधारकों की पहचान को ज्यादा स्पष्ट और व्यावहारिक बनाना है।
सहकारी बैंकों में भी बदलाव
इस अधिनियम में सहकारी बैंकों को लेकर भी एक बड़ा कदम उठाया गया है। अब चेयरपर्सन और फुल टाइम डायरेक्टर को छोड़कर बाकी डायरेक्टर्स का कार्यकाल 8 साल से बढ़ाकर 10 साल कर दिया गया है। यह बदलाव भारत के 97वें संवैधानिक संशोधन के अनुरूप है, जिसका मकसद सहकारी बैंकों के संचालन में स्थिरता और जवाबदेही लाना है।
पब्लिक सेक्टर बैंकों को ज्यादा अधिकार
अब सरकारी बैंकों को यह अधिकार मिल गया है कि वे अनक्लेम्ड शेयर, ब्याज और बॉन्ड रिडेम्प्शन की राशि को IEPF (Investor Education and Protection Fund) में ट्रांसफर कर सकें। इससे लंबे समय से निष्क्रिय पड़ी रकम को एक उत्पादक दिशा में लगाया जा सकेगा। साथ ही, पब्लिक सेक्टर बैंकों को अब स्टैच्यूटरी ऑडिटर्स को फीस तय करने का अधिकार भी दिया गया है। इसका उद्देश्य है कि बैंक अपनी ऑडिट व्यवस्था को और अधिक स्वतंत्र और गुणवत्ता आधारित बना सकें।
बैंकिंग सेक्टर को होंगे ये फायदे
इन सभी बदलावों का सीधा असर भारतीय बैंकिंग सेक्टर की मजबूती, पारदर्शिता और सुरक्षा पर पड़ेगा। इससे बैंकों की गवर्नेंस बेहतर होगी, निवेशकों और जमाकर्ताओं को ज्यादा भरोसा मिलेगा और बैंकिंग प्रणाली अधिक प्रोफेशनल बनेगी।
बैंकिंग सिस्टम की ओर एक मजबूत कदम
नया बैंकिंग कानून सिर्फ एक कानूनी बदलाव नहीं है, बल्कि यह भारत की बैंकिंग व्यवस्था को 21वीं सदी की जरूरतों के मुताबिक ढालने की कोशिश है। लंबे समय से जिन नियमों को अपडेट नहीं किया गया था, अब उन्हें आधुनिक संदर्भ में सुधार दिया गया है। इससे बैंकिंग सेक्टर की कार्यप्रणाली सुधरेगी और आम जनता का भरोसा भी मजबूत होगा।