भारत की अर्थव्यवस्था के लिए एक नई चिंता सामने आई है। भारतीय रिजर्व बैंक (RBI) की ताजा रिपोर्ट के मुताबिक, देश का विदेशी कर्ज मार्च 2025 के अंत तक 736.3 अरब डॉलर तक पहुंच गया है। यह पिछले साल के मुकाबले 10% ज्यादा है। पिछले साल यह कर्ज 668.8 अरब डॉलर था। इसका मतलब है कि अब भारत की जीडीपी का 19.1% हिस्सा विदेशी कर्ज से जुड़ गया है जबकि पहले यह आंकड़ा 18.5% था। यानी अब हमारी अर्थव्यवस्था पर उधारी का बोझ और बढ़ गया है।
डॉलर मजबूत, रुपया कमजोर और बढ़ गया बोझ
RBI ने बताया कि इस बढ़ोतरी के पीछे डॉलर की मजबूती और रुपये की कमजोरी का भी बड़ा असर रहा है। इसे ‘मूल्यांकन प्रभाव’ (valuation effect) कहा जाता है। इसी की वजह से कर्ज के आंकड़े में 5.3 अरब डॉलर का अतिरिक्त बोझ जुड़ गया। लेकिन अगर इस प्रभाव को हटाया जाए तब भी भारत का असली विदेशी कर्ज 72.9 अरब डॉलर तक बढ़ा है जो अपने आप में बहुत बड़ा है।
किसने कितना कर्ज लिया?
अगर कर्ज लेने वालों की बात की जाए तो सबसे ज्यादा विदेशी उधारी निजी कंपनियों ने ली है, करीब 261.7 अरब डॉलर। सरकार ने 168.4 अरब डॉलर का कर्ज लिया है जबकि बैंकों ने (RBI को छोड़कर) 202.1 अरब डॉलर उधार लिया है। इससे साफ होता है कि सिर्फ सरकार ही नहीं बल्कि निजी और बैंकिंग सेक्टर भी विदेशी कर्ज पर काफी निर्भर हो गए हैं।
लंबी अवधि का कर्ज भी बढ़ा
RBI के अनुसार, एक साल से ज्यादा की अवधि वाला लंबी अवधि का कर्ज भी 601.9 अरब डॉलर तक पहुंच गया है। यह पिछले साल से 60.6 अरब डॉलर ज्यादा है। ये चिंता इसलिए बढ़ाता है क्योंकि लंबे समय तक यह बोझ बना रहता है और इसका ब्याज भी ज्यादा होता है।
क्या हो सकते हैं इसके खतरे?
अगर रुपया और कमजोर हुआ तो यह कर्ज और महंगा हो जाएगा। वहीं वैश्विक स्तर पर ब्याज दरें बढ़ती हैं तो भारत को ज्यादा पैसा चुकाना पड़ेगा। इससे सरकार की योजनाओं और बजट पर भी दबाव बढ़ सकता है।