Rupee Breaches 91-Mark: भारतीय मुद्रा बाजार के लिए यह हफ्ता बेहद अहम साबित हुआ है। अमेरिकी डॉलर के मुकाबले रुपया पहली बार 91 के स्तर को पार कर गया है। मंगलवार को इंट्रा-डे कारोबार में रुपया 91.08 के रिकॉर्ड निचले स्तर तक फिसल गया, जबकि सुबह 11:45 बजे यह 91.14 प्रति डॉलर पर ट्रेड करता देखा गया। यह गिरावट सिर्फ एक दिन की नहीं, बल्कि लगातार दबाव का नतीजा है, जिसने निवेशकों और नीति निर्माताओं दोनों की चिंता बढ़ा दी है।
5 सत्रों में 1% से ज्यादा टूटा रुपया
आंकड़ों पर नजर डालें तो पिछले 5 कारोबारी सत्रों में रुपया 1% से ज्यादा कमजोर हुआ है और इसी अवधि में इसमें करीब 1.29 रुपये की गिरावट दर्ज की गई है। साल 2022 के बाद यह रुपये की सबसे तेज गिरावट मानी जा रही है। खास बात यह है कि 2025 में सभी एशियाई मुद्राओं के मुकाबले रुपया सबसे ज्यादा कमजोर हुआ है। इस साल अब तक रुपये में लगभग 6% की गिरावट आ चुकी है।
क्यों कमजोर हो रहा है रुपया?
विशेषज्ञों का कहना है कि ऐतिहासिक तौर पर रुपया लंबी अवधि में कमजोर होता रहा है। पिछले 50 वर्षों के आंकड़ों पर नजर डालें तो रुपये में औसतन 4–5 फीसदी सालाना गिरावट देखी गई है। हालांकि, मौजूदा गिरावट की रफ्तार हाल के वर्षों के मुकाबले ज्यादा तेज है। 2024 में रुपया ओवरवैल्यूड माना जा रहा था, जबकि 2025 में यह अंडरवैल्यूड जोन में पहुंच गया है। इसका संकेत रियल इफेक्टिव एक्सचेंज रेट (REER) के 100 से नीचे फिसलने से मिलता है। बीते 10 वर्षों में यह चौथी बार है जब REER 100 के नीचे आया है, जो रुपये की कमजोर स्थिति को दर्शाता है।
बॉन्ड मार्केट पर भी दिखा असर
रुपये की कमजोरी का असर सिर्फ करेंसी मार्केट तक सीमित नहीं है, बल्कि इसका प्रभाव बॉन्ड मार्केट पर भी साफ दिखाई दे रहा है। सेंट्रल बैंक बॉन्ड की खरीदारी कर रहा है, जिससे बॉन्ड की कीमतें बढ़ रही हैं और यील्ड में उतार-चढ़ाव देखने को मिल रहा है।
10 साल की सरकारी बॉन्ड यील्ड बढ़कर 6.48 प्रतिशत तक पहुंच गई है। यह चार महीनों में एक हफ्ते की सबसे तेज बढ़त मानी जा रही है। इसके अलावा, ओवरनाइट इंडेक्स स्वैप (OIS) रेट्स में भी अचानक तेजी आई है, जिसका एक कारण ऑफशोर मार्केट में ब्याज भुगतान से जुड़ी गतिविधियां बताई जा रही हैं।
FII की बिकवाली से बढ़ा दबाव
विदेशी संस्थागत निवेशकों (FII) की लगातार बिकवाली ने रुपये और बॉन्ड बाजार दोनों पर दबाव बना रखा है। RBI ने हाल ही में 500 बिलियन रुपये के बॉन्ड खरीदे, लेकिन इसके बावजूद विदेशी निवेशकों की निकासी का असर कम नहीं हो पाया। विशेषज्ञों के मुताबिक, आने वाले दिनों में बॉन्ड यील्ड 6.55% से 6.65% के दायरे में बनी रह सकती है, जब तक विदेशी पूंजी का बहिर्गमन जारी रहेगा।
क्या कहते हैं बाजार विशेषज्ञ?
फिनरेक्स ट्रेजरी एडवाइजर्स LLP के ट्रेजरी हेड अनिल कुमार भंसाली का कहना है कि भारत–अमेरिका ट्रेड डील में देरी रुपये की गिरावट का बड़ा कारण है। उनके मुताबिक, “रुपया पहले ही 91 का स्तर पार कर चुका है और इस महीने 92 तक भी पहुंच सकता है।” उन्होंने बताया कि बाय-सेल स्वैप, टैक्स से जुड़ी रुपये की कमी, तेल कीमतों की अटकलें, एक्सपोर्टर्स द्वारा डॉलर होल्ड करना, FPI की निकासी और विदेशी निवेशकों द्वारा हिस्सेदारी व कर्ज बेचने जैसे कई फैक्टर रुपये पर दबाव बना रहे हैं।
RBI क्यों नहीं कर रहा हस्तक्षेप?
आमतौर पर रुपये में तेज गिरावट होने पर RBI डॉलर बेचकर बाजार में हस्तक्षेप करता है। लेकिन इस बार RBI का रुख अपेक्षाकृत नरम नजर आ रहा है। इसकी एक बड़ी वजह कम महंगाई दर है। नवंबर में खुदरा महंगाई सिर्फ 0.71% रही, जिससे सेंट्रल बैंक पर तुरंत दखल देने का दबाव कम हुआ है। इसके अलावा, नवंबर में भारत का व्यापार घाटा घटकर 24.53 अरब डॉलर रह गया, जो रुपये के लिए एक सकारात्मक संकेत है।
आगे क्या रहेगी रुपये की दिशा?
ग्रीनबैक एडवाइजरी के सुब्रमण्यम शर्मा का मानना है कि जब तक भारत–अमेरिका ट्रेड डील पर स्पष्टता नहीं आती और FII की बिकवाली नहीं रुकती, तब तक रुपये पर दबाव बना रहेगा। उनके अनुसार, विदेशी निवेशक अब तक करीब 18 अरब डॉलर भारतीय बाजार से निकाल चुके हैं। मौजूदा हालात में रुपये की राह आसान नहीं दिख रही है और बाजार आने वाले दिनों में और उतार-चढ़ाव के लिए तैयार नजर आ रहा है।