ऑनलाइन कैब सेवा प्रदाता उबर (Uber) ने भारत में अपने बिज़नेस मॉडल में बड़ा बदलाव किया है। कंपनी ने अब पूरे देश में सबस्क्रिप्शन-आधारित मॉडल लॉन्च कर दिया है। इस नए मॉडल के तहत अब ड्राइवर अपनी पूरी कमाई अपने पास रख सकेंगे। यानी अब उन्हें हर सवारी पर कंपनी को कमीशन नहीं देना होगा, बल्कि केवल एक तय सबस्क्रिप्शन शुल्क अदा करना होगा।
देशभर में लागू हुआ नया मॉडल
उबर ने दो हफ्ते पहले कुछ चुनिंदा शहरों में इस मॉडल की शुरुआत की थी, जिसे अब पूरे देश में लागू कर दिया गया है। इसके साथ ही ओला (Ola) और रैपिडो (Rapido) जैसी अन्य प्रमुख एग्रीगेटर कंपनियों ने भी सबस्क्रिप्शन मॉडल पर काम शुरू कर दिया है। यह कदम ड्राइवरों के लिए राहतभरा माना जा रहा है, क्योंकि अब वे हर राइड पर कंपनी को कमीशन नहीं देंगे। इसके बजाय वे रोजाना या मासिक सबस्क्रिप्शन का भुगतान करेंगे और बाकी की पूरी आय अपने पास रख पाएंगे।
क्यों आया यह बदलाव?
उबर ने यह बदलाव दो प्रमुख कारणों से किया है। पहला, उसे रैपिडो से कड़ी प्रतिस्पर्धा मिल रही है। रैपिडो ने सबस्क्रिप्शन मॉडल के जरिए ड्राइवरों को तेजी से जोड़ने में सफलता हासिल की है। दूसरा, जीएसटी (GST) के नियमों को लेकर अनिश्चितता बनी हुई है। कमीशन-आधारित मॉडल में जीएसटी की गणना जटिल हो जाती है, जबकि सबस्क्रिप्शन मॉडल अपेक्षाकृत सरल और पारदर्शी है।
कंपनी ने एक बयान में कहा, “बाजार की बदलती परिस्थितियों के अनुरूप अब हम कार, ऑटो और बाइक सभी प्लेटफॉर्म पर सबस्क्रिप्शन मॉडल अपना रहे हैं। यह बदलाव ‘SaaS’-आधारित परिचालन मॉडल की दिशा में बड़ा कदम है।”
ड्राइवरों के लिए क्या फायदा?
अब तक उबर अपने ड्राइवरों से प्रत्येक राइड पर 15 फीसदी से 20 फीसदी तक कमीशन वसूलती थी। इससे चालकों की शिकायत रहती थी कि उनकी कमाई का बड़ा हिस्सा कंपनी ले लेती है। लेकिन सबस्क्रिप्शन मॉडल में उन्हें यह सुविधा मिलेगी कि वे केवल एक तय शुल्क चुकाकर उबर के प्लेटफॉर्म पर काम कर सकते हैं। इसके बाद जो भी कमाई होगी, वह पूरी तरह ड्राइवर की होगी।
लखनऊ के एक उबर चालक ने बताया, “अब हमें हर राइड पर कमीशन नहीं देना पड़ता। एक बार सबस्क्रिप्शन भर दो, फिर दिनभर जितनी सवारी करो, सारा पैसा अपना। यह पहले से कहीं ज़्यादा फायदेमंद है।”
कैसे काम करेगा नया मॉडल?
उबर ने दो विकल्प दिए हैं – पहला दैनिक और दूसरा मासिक सबस्क्रिप्शन प्लान। दैनिक प्लान में ड्राइवर रोजाना एक निश्चित राशि देकर प्लेटफॉर्म पर काम कर सकते हैं, जबकि मासिक प्लान में उन्हें एक बार शुल्क अदा कर पूरे महीने के लिए उबर से जुड़ने की छूट मिलती है। इस व्यवस्था से उन्हें अपनी कमाई पर नियंत्रण मिलेगा और रोज़गार की स्थिरता भी बढ़ेगी।
कर प्रणाली में भी आएगा संतुलन
वर्तमान में एग्रीगेटर कंपनियां दो तरह के मॉडल पर काम करती हैं – कमीशन आधारित और SaaS (Software as a Service) आधारित। कमीशन मॉडल पर 5% से 12% जीएसटी लगता है, जबकि SaaS मॉडल पर 18% जीएसटी लगाया जाता है, जिसे ड्राइवर स्वयं चुकाते हैं। इस दोहरी कर व्यवस्था से उद्योग में असमानता पैदा हो रही थी। इसलिए अब उबर और ओला जैसी कंपनियां सबस्क्रिप्शन (SaaS) मॉडल की ओर बढ़ रही हैं ताकि कर ढांचे में स्पष्टता आ सके।
उद्योग विशेषज्ञों की राय
कैब एग्रीगेटर सेक्टर के विशेषज्ञों का कहना है कि यह बदलाव फायदेमंद साबित हो सकता है। एक विशेषज्ञ ने कहा, “जीएसटी को लेकर जब तक स्थिति साफ नहीं होती, कमीशन आधारित मॉडल तर्कसंगत नहीं रह जाता। समान सेवाओं के लिए समान टैक्स व्यवस्था जरूरी है। उबर का यह कदम उसी दिशा में सही पहल है।”
क्या है भविष्य?
उबर का यह नया मॉडल भारतीय ड्राइवरों के लिए आर्थिक रूप से अधिक स्वतंत्रता लेकर आया है। जहां पहले उनकी कमाई का बड़ा हिस्सा कंपनी के पास चला जाता था, वहीं अब वे अपनी मेहनत की पूरी कमाई खुद रख सकेंगे। अगर यह मॉडल सफल रहा, तो यह न केवल ड्राइवरों की आय बढ़ाएगा, बल्कि देशभर में लाखों युवाओं के लिए रोज़गार और आत्मनिर्भरता के नए अवसर भी खोलेगा।
उबर का सबस्क्रिप्शन मॉडल भारत के कैब एग्रीगेशन उद्योग में एक नए युग की शुरुआत है। यह बदलाव ड्राइवरों के हित में है और कंपनी की प्रतिस्पर्धा को भी मजबूत बनाएगा। आने वाले महीनों में यह देखना दिलचस्प होगा कि यह नया मॉडल यात्रियों, ड्राइवरों और पूरे उद्योग को किस दिशा में ले जाता है।