भारत की आर्थिक प्रगति के लिए एक मजबूत और स्थायी विकास मॉडल अपनाना बेहद जरूरी है। इसी संदर्भ में प्रख्यात अर्थशास्त्री और नीति विशेषज्ञ नागेश्वरन ने यह स्पष्ट किया है कि भारत को श्रम-आधारित वृद्धि मॉडल की ओर बढ़ना चाहिए। इसके साथ ही कारोबार की लागतों को कम करना भी आर्थिक विकास की गति तेज करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाएगा।

श्रम-आधारित वृद्धि मॉडल का मतलब है कि विकास का केंद्र बिंदु मानव संसाधन, यानी श्रम शक्ति हो। भारत में युवा आबादी बहुत बड़ी है और यह देश की सबसे बड़ी ताकत है। अगर हम इस श्रम शक्ति का सही और प्रभावी उपयोग करें तो देश के विकास की गति कई गुना बढ़ सकती है। नागेश्वरन के अनुसार भारत को रोजगार सृजन पर ज्यादा ध्यान देना होगा ताकि ज्यादा से ज्यादा लोग औद्योगिक और सेवा क्षेत्रों में शामिल होकर आर्थिक प्रगति में योगदान दे सकें।
भारत में आज भी विभिन्न तरह के टैक्स, कागजी कार्रवाई, और जटिल नियम-कानून कारोबार की लागत बढ़ाते हैं। इससे छोटे और मध्यम उद्योगों को काफी मुश्किलों का सामना करना पड़ता है। अगर ये लागतें कम हो जाएं तो नई कंपनियां तेजी से स्थापित हो सकेंगी और उत्पादन तथा निवेश में भी वृद्धि होगी। यह स्थिति निवेशकों के लिए भी अनुकूल माहौल बनाएगी।
नागेश्वरन ने यह भी सुझाव दिया है कि सरकार को व्यापार सुगमता के लिए प्रभावी नीतियां बनानी चाहिए। इसमें डिजिटलाइजेशन, लाइसेंसिंग प्रक्रिया में सरलता और बुनियादी ढांचे का विकास शामिल है। इससे उद्योग जगत को फायदा होगा और श्रमिकों के लिए रोजगार के अवसर बढ़ेंगे। भारत की आर्थिक विकास यात्रा में श्रम-आधारित मॉडल अपनाना इसलिए भी जरूरी है क्योंकि यह समावेशी विकास को प्रोत्साहित करता है। इसका सीधा मतलब है कि विकास का लाभ समाज के हर वर्ग तक पहुंचेगा खासकर वे लोग जो अभी तक आर्थिक रूप से पिछड़े हैं।
भारत को अपनी युवाशक्ति और श्रम क्षमता का पूरा उपयोग करना होगा और साथ ही कारोबार की लागतें घटाकर निवेश और उत्पादन को प्रोत्साहित करना होगा। यह रणनीति न केवल आर्थिक विकास को गति देगी बल्कि रोजगार सृजन और समावेशी विकास के लक्ष्य को भी पूरा करेगी। नागेश्वरन के विचार इस दिशा में एक महत्वपूर्ण मार्गदर्शन प्रदान करते हैं जो भारत को विकास के नए आयामों तक ले जा सकता है।